scorecardresearch
 

रियलिटी चेक: कॉरपोरेट टैक्स कटौती से निवेश या रोजगार बढ़ना मुश्किल

निजी कॉरपोरेट सेक्टर इसलिए निवेश नहीं कर रहा, क्योंकि पिछले कई साल से मांग में कमी ने उन्हें उत्पादन और क्षमता इस्तेमाल में कटौती करने को मजबूर किया है. इसके अलावा रोजगार में जो बढ़त हो रही है, वह भी मैन्युफैक्चरिंग में नहीं बल्कि दूसरे सेक्टर में हो रही है.

Advertisement
X
वित्त मंत्री ने किया था कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का ऐलान (फाइल फाेटो: रॉयटर्स)
वित्त मंत्री ने किया था कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का ऐलान (फाइल फाेटो: रॉयटर्स)

  • वित्त मंत्री ने 20 सितंबर को कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का ऐलान किया
  • यह कहा गया कि इससे निवेश आएगा और रोजगार बढ़ेगा
  • कई अध्ययन से वास्तविकता इसके विपरीत दिख रही है

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर को देश की कंपनियों और नई घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए काॅरपोरेट टैक्स में कटौती कर दी. नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए काॅरपोरेट टैक्स की दर 25 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी और बाकी सभी कंपनियों के लिए 30 से 22 फीसदी कर दी गई. वित्त मंत्री ने तब कहा था, ‘कर रियायतों से मेक इन इंडिया (मैन्युफैक्चरिंग) के लिए निवेश आएगा, रोजगार बढ़ेगा और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी जिससे सरकार को ज्यादा राजस्व हासिल होगा.'  लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? आइए इसकी वास्तविकता की जांच करते हैं.

निवेश में तेजीः एक मिथक ही है

Advertisement

अर्थव्यवस्था में बचत और निवेश के पैटर्न का विश्लेषण करते हुए रिजर्व बैंक ने 31 मार्च, 2019 की अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि निजी काॅरपोरेट सेक्टर की बचत पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है-वित्त वर्ष 2012 में जीडीपी के 9.5 फीसदी से बढ़कर यह वित्त वर्ष 2018 में जीडीपी के 11.6 फीसदी तक पहुंच गई. दूसरी तरफ, इसी दौरान काॅरपोरेट सेक्टर का निवेश (सकल पूंजी निर्माण) 13.3 फीसदी से घटकर 12.1 फीसदी रह गया है.

इसमें कहा गया हैः ‘हाल के वर्षों में निजी काॅरपोरेट सेक्टर की बचत-निवेश की खाई लगभग पट चुकी है और इसका ज्यादातर निवेश उसकी अपनी बचत से ही हो रहा है, जो इस बात का संकेत है कि ताजे निवेश के लिए भूख घट रही है.'  

corporate-tax-1_100119124119.jpg

रिजर्व बैंक ने इस बात की व्याख्या नहीं की है कि आखिर काॅरपोरेट सेक्टर में नए निवेश के लिए भूख क्यों खत्म हो गई है, लेकिन उसके आंकड़ों से इसका पता चल जाता है.

आंकड़ों से पता चलता है कि निवेश के लिए कोई भी प्रोत्साहन या मांग नहीं है, क्योंकि खपत की मांग में लंबे समय से गिरावट आ रही है, जो कि मैन्युफैक्चरिंग वस्तुओं एवं सेवाओं के मामले में कमजोर क्षमता इस्तेमाल (CU) और उत्पादन से साफ जाहिर हो रहा है.

Advertisement

क्षमता इस्तेमाल (सीयू) असल में किसी मौजूदा कारखाना आदि की क्षमता इस्तेमाल की मात्रा बताता है. आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें गिरावट आ रही है और यह वित्त वर्ष 2013 के दौरान 70 से 75 फीसदी के निचले स्तर तक सीमित रही है. इसके पहले वित्त वर्ष 2010 और 20111 में ही यह 80 फीसदी के स्तर तक पहुंच पाया था.

corporate-tax-2_100119124156.jpg

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ( IIP) से खनन एवं खदान, विनिर्माण और बिजली जैसे क्षेत्रों में उत्पादन को मापा जाता है. मैन्युफैक्चरिंग आईआईपी में ग्रोथ (जिसका 2011-12 सीरीज में 77.63 फीसदी वेटेज था) वित्त वर्ष 2012 से 2019 के दौरान भी गिरकर औसतन 4 फीसदी रहा है. यह दर न केवल इन वर्षों में जीडीपी ग्रोथ से कम रही है, बल्कि यह वित्त वर्ष 2005 से 2011 के बीच (2004-05 बेस) के पिछले 6 साल के दौरान इसके अपने ग्रोथ के मुकाबले भी कम है, जब औसत ग्रोथ 10 फीसदी का था.

corporate-tax-3_100119124301.jpg

कोई मैन्युफैक्चरिंग में निवेश क्यों करेगा?

ज्यादा गुंजाइश तो इस बात की दिख रही है कि काॅरपोरेट टैक्स में कटौती से कंपनियों के पास जो अतिरिक्त धन आएगा, उसे कहीं और खर्च किया जाएगा-शोबाजी वाली खपत, सट्टेबाजी या किसी और चीज में.

इसे अमेरिकी उदाहरण से समझा जा सकता है.

Advertisement

काॅरपोरेट टैक्स कटौती का अमेरिकी उदाहरणः निवेश पर असर अनिश्चित

अमेरिका में भी ऐसे ही तर्कों के आधार पर काॅरपोरेट टैक्स में कटौती की गई (35 फीसदी से 21फीसदी), लेकिन भारत के विपरीत वहां पेरोल टैक्स और व्यक्तिगत आयकर यानी पर्सनल इनकम टैक्स में भी कटौती की गई. 22 मई, 2019 को अमेरिकी कांग्रेस ने इसके असर पर एक स्टडी जारी किया और इसमें कहा गया, 'हालांकि निवेश में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन विभिन्न तरह के एसेट के लिए ग्रोथ पैटर्न आपूर्ति पक्ष के प्रोत्साहन वाले असर की दिशा और आकार के अनुरूप नहीं लगते, जिसकी करों में बदलाव से उम्मीद की जाती है.' 

XLRI जमशेदपुर के लेबर इकोनाॅमिस्ट प्रोफेसर के.आर. श्यामसुंदर बताते हैं कि आखिर इसका मतलब क्या है, 'इसका साधारण मतलब यह है कि निवेश पर काॅरपोरेट टैक्स का असर निश्चित नहीं है और यदि निवेश पर इसका सकारात्मक असर पड़ा हो तो भी इस असर की मात्रा कई अन्य मैक्रोइकोनाॅमिक वैरिएबल्स पर निर्भर करती है.' 

दिलचस्प यह है कि अमेरिका में काॅरपोरेट टैक्स और पेरोल टैक्स में कटौती से सरकारी खजाने को क्रमशः 40 अरब डाॅलर और 7 अरब डाॅलर का नुकसान हुआ, जबकि व्यक्तिगत आयकर से 45 अरब डाॅलर का ज्यादा राजस्व हासिल हुआ. यही नहीं, इस कवायद से ‘निजी खपत की वजह से' खपत में जीडीपी के 0.4 फीसदी तक की बढ़त हो गई. लेकिन ‘लोगों के वेतन में जबरदस्त बढ़त का कोई संकेत नहीं मिला' जैसा कि वादा किया गया था. इसकी जगह ‘शेयरों का रिकाॅर्ड बायबैक हुआ, जो 2018 के अंत तक 1 लाख करोड़ डाॅलर के आंकड़े तक पहुंच गया.'  

Advertisement

नोबेल पुरस्कार प्राप्त विद्वान पाॅल क्रगमैन ने पहले ही यह कहा था, ‘टैक्स कट से ऐसा लगता है कि काॅरपोरेशन के स्तर पर कुछ बड़ी वित्तीय गतिविधियां होती दिखती हैं, लेकिन यह सब बुनियादी रूप से अकाउंटिंग की बाजीगरी होती है, जिसका कोई महत्व नहीं होता.' उन्होंने यह भी कहा था कि काॅरपोरेट टैक्स कटौती का ‘अर्थव्यवस्था पर वास्तविक असर बहुत कम होता है.' 

नौकरियों के सृजन पर असर: बहुत कम या अनश्चित

नए निवेश न आने का मतलब यह है कि नए रोजगार का सृजन भी नहीं होगा. हालांकि निवेश और रोजगार के बारे में एक और पहलू भी है जिस पर लोगों का कम ध्यान जाता है.

इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (ISID) के प्रोफेसर सत्याकी रॉय ने उन सेक्टर के लिए इन दोनों के बीच सह-संबंध का अध्ययन किया जिनमें 1980 और 2004 के बीच तुलनात्मक रूप से ऊंचा रोजगार देखा गया. उनके इनके बीच ‘कोई संबंध नहीं’ दिखा.

उनके अध्ययन से यह बात सामने आई कि रोजगार में ऊंची बढ़त तो मैन्युफैक्चरिंग के अलावा दूसरे सेक्टर में देखी गई- निर्माण, ट्रेड, होटल एवं रेस्टोरेंट, ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज, संचार और वित्तीय सेवाएं. साथ ही, यह सब ग्रोथ ऊंचे निवेश की वजह से नहीं हुआ है. इसके विपरीत, इन सेक्टर के लिए ग्रॉस फिक्‍सड कैपिटल फॉर्मेशन यानी GFCF तेजी से घटा है.

Advertisement

इस परंपरागत आर्थिक समझदारी के विपरीत दिख रहे पहलू को समझाने के लिए उन्होंने तीन बातें बताई हैं: (a) इन सेक्टर में रोजगार में ग्रोथ काफी हद तक इस वजह से है कि घटती आय की वजह से बड़ी संख्या में लोग कृषि‍ कार्यों से बाहर जाने को मजबूर हुए हैं (b) इसकी वजह से इन सेक्टर में असंगठित मजदूरों की संख्या में तेजी से बढ़त हुई है (दोगुने से ज्यादा) (c) मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर जैसी वित्तीय सेवाएं ज्यादा पूंजी खपत वाले हो गए हैं और इन सेक्टर में ऊंचे निवेश से इस अनुपात में रोजगार में बढ़त नहीं हो पाती.

इसी तरह का एक अध्ययन साल 2000 से 2018 के बीच किया गया, रोजगार के लिए आईएलओ और नेशनल एकाउंट्स ऑफ स्टेटि‍स्टिक्स फॉर इनवेस्टमेंट के GFCF के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए. इस अध्ययन के निष्कर्ष भी काफी मिलते-जुलते हैं.

आईएलओ के आंकड़ों से भी यह खुलासा होता है कि मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार सृजन में बढ़त कम हुआ है, जबकि निर्माण, वित्तीय सेवाओं, ट्रांसपोर्ट और रियल एस्टेट जैसे दूसरे सेक्टर में ज्यादा.

corporate-tax-4_100119124426.jpg

जहां तक इन ऊंचे रोजगार ग्रोथ वाले सेक्टर में निवेश (GFCF) और रोजगार के बीच सह-संबंध की बात है, नीचे के चार ग्राफ से आपको साफ तौर पर दिख जाएगा कि इनमें क्या संबंध है. 

Advertisement

corporate-tax-5_100119124556.jpg

corporate-tax-6_100119124614.jpg

corporate-tax-7_100119124635.jpg

corporate-tax-8_100119124700.jpg

इन सभी मामलों में और अध्ययन की जरूरत है कि वास्तव में क्या हो रहा है, लेकिन प्रोफेसर रॉय कहते हैं कि इनके निहितार्थ साफ हैं: कॉरपोरेट टैक्स कटौती से जो अतिरिक्त राशि‍ बचेगी उसको मैन्युफैक्चरिंग में लगाए जाने की गुंजाइश कम है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में खपत की मांग कमजोर है और खपत पर होने वाले व्यय को लेकर कोई उत्साही नजरिया भी नहीं है, जो कि रिजर्व बैंक के कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे से भी साफ दिखता है. इसलिए अब समय आ गया है कि ज्यादा अध्ययन, ज्यादा भरोसेमंद आंकड़ों और संयत अपेक्षा के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहे संरचनात्मक बदलावों के बारे में ज्यादा यथार्थवादी नजरिया अपनाया जाए. 

Advertisement
Advertisement