देश का आम बजट आने में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है. और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि प्रणब दा इस बजट में क्या करेंगे? क्या आम आदमी को महंगाई से राहत मिलेगी? क्या सरकार गठबंधन धर्म तोड़कर कुछ कड़े कदम उठा पाएगी? और सबसे बड़ा सवाल, क्या इस बार इनकम टैक्स में रिलैक्स देंगे दादा.
महंगाई की चक्की में पिसती जिंदगी के सामने सौ मुश्किलें हैं. आमदनी और खर्चे के बीच तालमेल बिठाना और भी मुश्किल. ऊपर से टैक्स की मार. एक बार फिर उम्मीद भरी निगाहें प्रणब दादा की तरफ उठ रही हैं. सबको उम्मीद है कि दादा इस बार टैक्स में छूट जरूर बढ़ाएंगे.
-डायरेक्ट टैक्स कोड पर बनी संसदीय समिति ने भी टैक्स छूट की बेसिक लिमिट 3 लाख रूपये करने की सिफारिश की है.
- अभी तक ये छूट 1 लाख 80 हज़ार रूपये है. और महिलाओं के लिए एक लाख 90 हज़ार रूपये.
-80 सी के तहत मिलने वाली छूट को भी संसदीय समिति ने दो लाख 50 हज़ार करने की वकालत की है.
-फिलहाल ये छूट 1 लाख रूपये है.
अब दादा के बजट पिटारे से क्या निकलेगा, ये तो उनका ब्रीफकेस खुलने के बाद पता चलेगा, लेकिन लेकिन दादा से ये तो उम्मीद की ही जा सकती है कि इस बार टैक्स स्लेब में बदलाव करते वक्त दादा महंगाई को भी ध्यान में रखेंगे.
2014 दूर नहीं है, जब यूपीए सरकार को एक बार फिर से आम आदमी के बीच सेंध लग सकती है.
एक तरफ लोग टैक्स में छूट की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो दूसरी तरफ सरकार भी मुश्किल में है. सरकार का हाल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाला हो रहा है.
-सरकार का वित्तीय घाटा काबू से बाहर हो रहा है.
-जीडीपी विकास दर लगातार गिर रही है.
-महंगाई कुछ कम होने के बाद एक बार फिर से रफ्तार पकड़ रही है.
-सरकार को रिटेल सेक्टर में एफडीआई लाने का फैसला वापस लेना पड़ा.
-जीएसटी को लेकर अभी तक केंद्र सरकार राज्य सरकारों को मनाने में कामयाब नहीं हुई है.
-पिछले बजट में विनिवेश से 40 हज़ार करोड़ जुटाने का टारगेट रखा गया था. लेकिन सरकार बड़ी मुश्किल से सिर्फ 14 हज़ार करोड़ रूपये ही जुटा पाई.
केंद्र में कई दलों के गठबंधन की वजह से सरकार न तो भ्रष्टाचार के मामले में फैसले ले पा रही है और न ही रिफार्म को लेकर.
ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि सरकार अपना दो लाख करोड़ रूपये से भी ज़्यादा का सब्सिडी बिल कैसे कम कर पाती है. हाल ही में पांच राज्यों में चुनावों के नतीजों के बाद कांग्रेस बैकफुट में है और प्रणब दादा के सामने सबसे बड़ी नजीर है रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी की, रेल किराया बढ़ाने के तुरत बाद ही वो बड़ी मुश्किल में फंस गए.
ऐसे में ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि प्रणब दा के बजट में अर्थनीति पर राजनीति भारी पड़ती है या नहीं.