वेस्टर्न पॉवर और ईरान के साथ हुआ परमाणु समझौता दुनिया के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत है. जैसे-जैसे ईरान पर लगे प्रतिबंध अब धीरे-धीरे खत्म हो जायेंगे वैसे-वैसे ईरान का बाजार सबके लिए खुलता जाएगा. ऐसे में यह अहम हो जाता है ईरान के इस खुलते बाजार में भारत कितने अंदर तक अपनी पहुंच बनाने में सफल हो पता है.
वेस्ट के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भारत ईरान से व्यापार करता रहा है पर इस व्यापार का दायरा बेहद सिमित ही रहा. अब ईरान के आर्थिक दरवाजे पूरी तरह खुलने वाले है अमेरिका से लेकर यूरोप भी ईरान में दाखिल होने की पूरी तैयारी में है, ऐसे में भारत के लिए ईरान में अपार संभावनाओं के साथ ढेरों चुनौतियां भी है...
भारत-ईरान के बीच तेल का खेल
तेल खपत के मामले में अमेरिका, चीन, जापान और रूस के बाद भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है. वहीं तेल-अयात करने के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत का ही नंबर है. इसलिए तेल की कीमतों के साथ-साथ ईरान का तेल बाजार की हर हलचल का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है.

भारत और ईरान के बीच अभी करीब 14 अरब डॉलर के व्यापार होता है. जिसमें करीब 4.2 अरब डॉलर का ट्रेड ऐमबैलेंस है जो ईरान के पक्ष में है. वेस्टर्न प्रतिबंध का फायदा यह था कि भारत अब तक ईरान को डॉलर की जगह रूपये में ही पेमेंट करता रहा है पर अब भारत को डॉलर में पेमेंट करना पड़ेगा. ऐसे में भारत के विदेशी जमा पूंजी पर दबाव बनेगा और रूपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो सकता है.
इससे इतर जैसे ही ईरान का तेल ग्लोबल बाजार में आएगा तब कच्चे तेल की कीमतें गिरेंगी बशर्ते अमेरिका अब और शेल ऑइल के उत्पादन में कटौती न करे. सरकारी आंकड़े बताते है कि कच्चे तेल की कीमतों में हर एक डॉलर की कमी भारत को करीब 4000 करोड़ रूपये का फायदा पहुंचाती है. वहीं भारतीय तेल-उत्पादक कंपनियों के लिये तेल की कीमतें एक बड़ा सर दर्द पैदा कर सकती हैं.

मशीनों की चाल
भारत ईरान को ऑटोमोबाइल के पार्ट्स, मैकेनिकल टूल, मोटरें और केमिकल निर्यात करता है. अब भारतीय कंपनियों को ग्लोबल कंपनियों से कड़ी टक्कर मिलने वाली है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशन (FIEO) के डायरेक्टर-जनरल अजय सहाय का कहना है कि भारतीय निर्यातकों को पूर्वी यूरोप के मैन्युफैक्चर्रों से तगड़ा काम्पटीशन मिलने वाला है. वो भी मैकेनिकल टूल जैसे स्पैनर, ऑटो-टूल बनाते है. वहीं यूरों की गिरती कीमते भारतीय प्रोडक्ट्स के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला है. भारतीय मशीनों को अपनी चाल बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.
इंफ्रास्ट्रक्चर की नींव
वेस्टर्न प्रतिबंध झेल रहे ईरान को अब तक भारतीय कंपनियों का मजबूत सहारा था. पर अब प्रतिबंध हटते ही भारतीय कंपनियों के लिए ईरान में अपने पांव जमाए रह पाना टेढ़ी खीर होगी.
नई दिल्ली के लिए फारसी ब्लाक डील में जमे रह पाना मुश्किल हो रहा है. 2008 में इंडियन ऑइल और नेचुरल गैस कारपोरेशन विदेश लिमिटेड (OVL) ने फारसी ब्लाक में फर्ज़ाद-बी गैस फील्ड और ऐसे कई और जगहों को खोजा था जहां अरबों डॉलर की गैस और तेल मौजूद है. भारत कंपनियों ने 60 फीसदी से ज्यादा गैस रिज़र्व डेवलप करने का मास्टरप्लान ईरान को दिया था पर भारत के लचर रवैये की वजह से कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया. अब भारतीय कंपनियों को अमेरिका और यूरोप की कंपनियों से मुकाबला कर टेंडर जीतने होंगे.

भारत-ईरान के बीच ईरान के रेलवे को डेवलप करने के लिए समझौता हुआ था, जिसके तहत भारत को 1.5 लाख टन रेल की पटरियों की सप्लाई करनी है. पर अब इस बात की प्रबल सम्भावनाएं है की ईरान भारत से साथ फिर से नेगोशिएशन करें. चीन और रूस का ईरानी झुकाव जग जाहिर है और अब तुर्की भी ईरान को रेलवे से लेकर अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए लुभा रहा है. ऐसे में भारत को ईरान में अपने पांव जामएं रखने के लिए भागीरथी प्रयास करना होगा.
आर्थिक-सामरिक मोड़
भारत वेस्टर्न प्रतिबंध के बाद भी ईरान के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहा और भारत को ईरान ने इसके किये ढेरों पारितोषिक भी दिए हैं जिनमें सामरिक और आर्थिक क्षेत्र के लिए अहम छहबर पोर्ट भी है, जिसे विकसित करने के लिए ईरान ने भारत को करीब एक दशक पहले ऑफर किया था.
याद रहे यह अरब सागर में चीन द्वारा विकसित पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के ठीक बगल स्थित है, जिसकी शक्ल चीन ने रातों-रात बदल कर रख दी. वहीं अगर भारत को अफगानिस्तान सहित सेंट्रल एशिया तक अपनी पहुंच बनानी है तो उसका रास्ता सिर्फ छहबर पोर्ट से ही खुल सकता है.
पर अब भारतीय लेट-लतीफी ने यहां भी भारत के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर दी है, अभी तक छहबर पोर्ट में भारत कोई बड़ा निवेश करने में असफल रहा है. अब भारत ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी की कृपा के लिए प्रार्थना करे क्योकिं वेस्टर्न प्रतिबंध हटते ही अमेरिकी कंपनियां भी स्ट्रेटेजिकली लोकेटेड छहबर पोर्ट पर अपना कब्ज़ा जमाना चाहेंगी.