क्या सरकार और जीएसटी काउंसिल की ओर से सैकड़ों सामान पर टैक्स की दर घटाने से उपभोक्ताओं के रोज़ाना इस्तेमाल की चीज़ों के दामों में कमी आई है? इसका जवाब ना है जो कि सरकार के पास आए फीडबैक के मुताबिक है. वजह है कि बड़ी संख्या में कंपनियां और कारोबार टैक्स घटने का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दे रहे हैं और अतिरिक्त टैक्स को मुनाफे की तरह लेकर अपनी जेब भर रहे हैं.
ऐसी प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए वित्त मंत्रालय अब कड़े कदम उठा सकता है. मंत्रालय की ओर से जीएसटी कानून में संशोधन पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है जिससे उपभोक्ताओं को जीएसटी की घटी दरों का लाभ नहीं देने वाली कंपनियों और कारोबारों पर सख्त पेनल्टी (दंड) का प्रावधान किया जा सके. अभी तक ऐसे उल्लंघन पर कानून में 10,000 रुपये या जो टैक्स छुपाया गया है, दोनों में से जो ज्यादा है उसे पेनल्टी के तौर पर वसूले जाने का प्रावधान है.
लेकिन ये विधाई उपचार करने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा क्योंकि सरकार की योजना वित्त विधेयक में ये जरूरी संशोधन अगले साल के शुरू में लाने की है. प्रस्ताव को कई मंत्रालयों के पैनल से सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी मिल चुकी है. इस पैनल में वित्त और विधि मंत्रालयों के अधिकारी भी शामिल हैं.
सूत्रों का कहना है कि सरकार को पता चला है कि कंपनियां टैक्स में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं पहुंचाने के लिए तरह तरह के बहाने दे रही हैं. इससे टैक्स कटौती के उद्देश्य को ही चोट पहुंच रही है. बीते साल 1 जुलाई से देश भर में जीएसटी के तहत समान टैक्स के लॉन्च के बाद से शीर्ष नियामक जीएसटी काउंसिल 384 चीज़ों और 68 सेवाओं पर टैक्स की दर घटा चुकी हैं. इस काउंसिल में केंद्र, राज्य सरकरों और केंद्र शासित प्रदेशों के सदस्य शामिल हैं. आखिरी बार इस साल 21 जुलाई को करीब 100 उत्पादों और सेवाओं पर टैक्स दर घटाई गई.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 27 जुलाई को अपने ब्लॉग में जिक्र किया था कि जीएसटी के लॉन्च होने के बाद विभिन्न उत्पादों और सेवाओं पर टैक्स दर घटाने से सरकार को कुल 70,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ.
सरकार का मानना है कि केंद्र और राज्य सरकारों को राजस्व का नुकसान हो रहा है. इसलिए टैक्स दरों की कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को मिलना चाहिए ना कि वो कंपनियों और कारोबारों की जेबों में मुनाफे के तौर पर जाए.
फिलहाल इस तरह की अधिकतर मुनाफाखोरी पकड़ से बाहर हैं. कुछ मामलों में या तो शिकायतों या नियमित निरीक्षण से पाया गया कि हर कंपनी और बिजनेस हाउस के पास टैक्स कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में नाकाम रहने के लिए कोई ना कोई बहाना है. कुछ कंपनियों का दावा है कि वो उपभोक्ताओं तक इसलिए लाभ नहीं पहुंचा सके क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ गई है. कुछ कंपनियों ने चालाकी बरतते हुए पूरा लाभ उपभोक्ताओं तक ना पहुंचा कर उसका कुछ हिस्सा ही पहुंचाया.
ऐसे भी आरोप हैं कि टैक्स दरें घटने के बाद कुछ कंपनियों ने चुनींदा तौर पर दाम घटा दिए. कंपनियों की ओर से अपना मुनाफा ऊंचा रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. कुछ कंपनियों ने उत्पाद के कम लोकप्रिय बड़े पैक्स के दाम तो घटा दिए लेकिन उसी उत्पाद के छोटे पैक्स पर दाम नहीं घटाए.
राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,‘ये गलत तरीके हैं और उन्हें रोकना होगा. इसके लिए असरदार प्रतिरोधक लाए जाने की आवश्यकता है.’कुछ कंपनियों ने कीमतों में बढ़ोतरी के लिए ईंधन की बढ़ी कीमतें और डॉलर के मुकाबले रुपये की अस्थिरता को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है.
सरकार चिंतित है क्योंकि कंपनियों की ओर से टैक्स दर कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को ना देने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है. अभी खुदरा मुद्रास्फीति 5 फीसदी से नीचे हैं, लेकिन ईंधन की ऊंची कीमतों और रुपये के गिरने से इसके बढ़ने के आसार हैं.
जीएसटी काउंसिल ने नेशनल एंटी प्रोफिटियरिंग अथॉरिटी (NAA) बनाई है जिससे कि उपभोक्ताओं से सही टैक्स चार्ज हो और जीएसटी के नाम पर कंपनियां और कारोबार मुनाफाखोरी में ना संलग्न हों. अथॉरिटी में 4 स्तर हैं- NAA, सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेस (CBIC) में डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ एंटी-प्रोफिटियरिंग और हर राज्य में स्टैंडिंग और स्क्रीनिंग कमेटियां.
इस साल अगस्त तक 32 स्क्रीनिंग कमेटियां गठित की जा चुकी हैं जिनमें 29 राज्यों में और 3 केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली, चंडीगढ़ और पुड्डुचेरी) में हैं. शिकायतों के आधार पर इस ढांचे ने कुछ मामलों में आदेश जारी किए हैं. अभी 130 मामलों में सुनवाई की जा रही हैं. हालांकि सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उल्लंघन की तुलना में कार्रवाई का स्तर बहुत थोड़ा है.