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बजट 2018: इकबाल से लेकर तिरुवल्लुवर तक, वित्त मंत्रियों का शायरों वाला अंदाज

(budget 2018) बजट में केंद्रीय वित्त मंत्रियों के भाषण आमतौर पर काफी लंबे और आम जनता को समझने के लिहाज से थोड़े बोरिंग होते हैं, क्योंकि ये जटिल आर्थिक शब्दावलियों से भरे होते हैं. लेकिन हमारे तमाम वित्त मंत्री अपने बजट भाषण को कविता और शेर-ओ-शायरी या हास-परिहास से रंगीन बनाने की भी कोशिश करते रहे हैं.

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budget 2018
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बजट में केंद्रीय वित्त मंत्रियों के भाषण आमतौर पर काफी लंबे और आम जनता को समझने के लिहाज से थोड़े बोरिंग होते हैं, क्योंकि ये जटिल आर्थिक शब्दावलियों से भरे होते हैं. लेकिन हमारे तमाम वित्त मंत्री अपने बजट भाषण को कविता और शेर-ओ-शायरी या हास-परिहास से रंगीन बनाने की भी कोशिश करते रहे हैं.

पिछले साल यानी 2017 के ही बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नोटबंदी के दीर्घकालिक फायदों के बारे में लोगों को समझाने और इससे न घबराने का आह्वान करते हुए दो पंक्तियां पढ़ी थीं,

 'इस मोड़ पर घबरा के न थम जाएं आप, जो बात नई है उसे अपनाएं आप, डरते हैं नई राह पे ये क्यूं चलने से, हम आगे-आगे चलते हैं, आ जाएं आप.' उसी भाषण में अरुण जेटली ने कहा था कि काले धन को खत्म करना सरकार के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है. इसको भी कविता की पंक्तियों से समझाने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा था, 'नई दुनिया है, नया दौर है, नई उमंग, कुछ थे पहले के तरीके, तो हैं कुछ आज के ढंग, रोशनी आके अंधेरों से जो टकराई है, काले धन को भी बदलना पड़ा आज अपना रंग.'  

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अरुण जेटली से पहले भी तमाम वित्त मंत्री कविता, शेरो-शायरी करते रहे हैं. भारत में आर्थिक उदारीकरण के जनक मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री रहने के दौरान 1991 के अपने बजट भाषण में मशहूर शायर इकबाल की कुछ पंक्तियां सुनाई थीं. उन्होंने कहा था, 'यूनान-ओ-मिस्र-रोम सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशा हमारा.'

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम भी वित्त मंत्री के रूप में कई बार बजट पेश कर चुके हैं. अपने बजट में अक्सर वह तमिल कवि-दार्शनिक तिरुवल्लुवर की कविताओं की पंक्तियां पढ़ते रहे. साल 1997 के बजट को चिदम्बरम का ड्रीम बजट कहा गया. इस बजट में चिदम्बरम ने तमिल कवि तिरुवल्लुवर ये पंक्तियां पढ़ी थीं- ' इदिप्परई इल्लाथा इमारा मन्नान केदुप्पार इलानुअम केदुम (उस राजा पर नजर रखें जो ऐसे लोगों पर भरोसा नहीं करता जो उससे खरी बात कहते हैं, उसका कोई दुश्मन न हो तो भी वह बर्बाद हो सकता है).

यही नहीं कविताओं, शेर-ओ-शायरी के अलावा कई वित्तमंत्री बजट में हास-परिहास का पुट भी डालते रहे. उदाहरण के लिए यशवंत सिन्हा ने साल 2002 में बजट पेश करते हुए एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की चर्चा करते हुए कहा, 'पिछले तीन साल में हर साल फिल्मों का निर्यात करीब दोगुना बढ़ा. अब समय आ गया है कि हम ऐसी वित्तीय व्यवस्था करें जिसमें हम मनोरंजन उद्योग के लिए ज्यादा 'खुशी' दे सकें और उनका 'गम' दूर कर सकें.'

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साल 1987 में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री के साथ वित्त मंत्री भी थे. उन्होंने साल 1987-88 का बजट पेश करने के दौरान बताया कि किस तरह वह सिगरेट पर उसकी लंबाई के हिसाब से टैक्स लगा रहे हैं. राजीव गांधी ने मजाकिया लहजे में कहा, 'मुझे ज्यादा राजस्व जुटाना है. इसके लिए मुझे वित्त मंत्री के भरोसमंद दोस्तों और स्वास्थ्य मंत्री के दुश्मनों का सहारा लेना होगा.'

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