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बड़ा कन्फ्यूजन है! छठ मनाकर लौटें या वोट देकर...? मतदान की तारीखों से दुव‍िधा में फंसे बिहार के प्रवासी 

छठ पूजा और बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें इतनी पास आ गई हैं कि लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए ये त्योहार अब एक दुविधा बन गया है. उन्हें तय करना है कि अपने गांव जाकर छठ मनाएं या फिर वहीं रुककर रोज़गार बचाएं. 6 और 11 नवंबर को होने वाली वोटिंग से पहले 25 से 28 अक्टूबर तक छठ पूजा का पर्व पड़ने से उनके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है.

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छठ का उत्सव और मतदान की तारीखों में क्लैश (Image for representation: PTI)
छठ का उत्सव और मतदान की तारीखों में क्लैश (Image for representation: PTI)

इस साल बिहार के प्रवासी मजदूरों के लिए एक कठिन स्थिति बन गई है. राज्य का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार छठ विधानसभा चुनावों से एक हफ्ते पहले खत्म हो रहा है. बिहार में चुनाव की पहली चरण की वोटिंग 6 नवंबर और दूसरी चरण की 11 नवंबर को होनी है. इसका मतलब है कि मजदूरों को छठ और चुनाव दोनों में ह‍िस्सा लेने के लिए एक बार ही सफर करना होगा. 

क्या है छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा सिर्फ छठी मैया की भक्ति नहीं है बल्कि दुनिया भर के बिहारी लोगों के लिए अपने घर लौटने का अनिवार्य त्योहार भी है. इस साल चार दिन का छठ पूजा पर्व 25 से 28 अक्टूबर तक है. लेकिन चुनाव की तारीखों के कारण बिहार के प्रवासी मजदूर मुश्किल की स्थि‍ति में हैं. 

गौरतलब है कि बिहार व‍िधानसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर (121 सीटों पर) को होगी. इसके बाद दूसरे चरण की वोटिंग 11 नवंबर को होगी. 

क्या है प्रवासी मजदूरों की मुश्किल

इंड‍िया टुडे डिजिटल ने प्रवासी मजदूरों से बात की तो पता चला कि छठ और चुनाव के बीच 8 दिन का अंतर उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है. प्रवासी मजदूरों के मामले में बिहार भारत में दूसरे नंबर पर है. वैसे पहले नंबर पर उत्तर प्रदेश है. श्रम मंत्रालय के अनुसार बिहार से लगभग तीन करोड़ प्रवासी मजदूर हैं जो बड़े-बड़े शहरों में काम कर रहे हैं. 

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राजनीतिक पार्टियों ने चाहा था कि चुनाव छठ के तुरंत बाद हों ताकि ज्यादा लोग वोट डाल सकें. लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि बिहार में चुनाव की सबसे जल्दी तारीख 6 नवंबर हो सकती है.

प्रवासियों की परेशानियां

दिल्ली में दैन‍िक मजदूरी करने वाले दरभंगा के रज्जू ने कहा कि मैं चुनाव की तारीखों का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. अब पता चला है कि वोटिंग दो चरणों पहले 6 नवंबर और फिर 11 नवंबर में होगी. ये हमारे लिए मुश्किल स्थिति बन गई है. अब हमें तय करना होगा कि छठ पूजा मनाएं या वोट दें. ये सच में बड़ी दुविधा बन गई है.

ऐसे समझ‍िए कि दरभंगा में मतदान 6 नवंबर को है और छठ पूजा 25 से 28 अक्टूबर तक है. रज्जू और उनके परिवार जो कभी छठ पूजा नहीं छोड़ते, अब सोच रहे हैं कि दो हफ्ते कैसे घर और काम दोनों संभालेंगे.

सिर्फ मजदूर नहीं, व्हाइट कॉलर एंप्लाई भी परेशान 

ब्लू कॉलर जॉब वाले मजदूर जो दैनिक वेतन पर निर्भर हैं, उनके लिए 8-10 दिन बिना काम किए घर पर रहना मुश्किल है. लेकिन, व्हाइट कॉलर कर्मचारी भी चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद परेशान हैं. गुरुग्राम में आईटी कंपनी में काम करने वाले मधेपुरा के 29 साल के रविंद्र वैभव का कहना है कि ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल पाया इसलिए कार से अपने घर जाऊंगा. मैं छठ पूजा पर ही घर में रह पाऊंगा, अब मतदान के लिए 8–10 दिन की छुट्टी लेना संभव नहीं है.

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वो आगे कहते हैं कि मैं अपने सीनियर्स को मनाने की कोशिश करूंगा कि पहले चरण के मतदान तक वर्क फ्रॉम होम कर सकूं. अगर नहीं मानते तो मुझे बिना वोट डाले ही लौटना पड़ेगा.

छठ और चुनाव का टकराव

छठ बिहार का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है और ये दिवाली के छह दिन बाद है. चुनाव शेड्यूल के कारण प्रवासी मजदूरों के लिए ये त्योहार एक कठिन चुनाव में बदल गया है. अधिकांश प्रवासी मजदूर काम, परिवार और वोट डालने की इच्छा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. छठ पूजा और वोटिंग की तारीखें पास आने से वे कन्फ्यूजन में पड़ गए हैं कि जाएं तो कहां?

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(Report: Zafar Abbas)
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