देश की राजधानी दिल्ली के लिए बीता 10 नवंबर एक मनहूस दिन था. शहर के बीच लालकिले के पास सड़क पर चलती एक कार में अचानक ब्लास्ट होता है. शाम तकरीबन 7 बजे हुआ ये धमाका इतना तेज था कि, इसकी ज़द में आने वाले लोग और वाहन तक कई फुट हवा में उड़ गए थे. दिल्ली के सबसे व्यस्ततम इलाकों में से एक चांदनी चौक के पास हुए इस ब्लास्ट में 10 लोगों की मौत हुई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए.
इस ब्लास्ट के बाद स्थानीय पुलिस और जांच एजेंसियां तत्तकाल हरकत में आई और धमाके की जांच शुरू हुई. पता चला कि, ये ब्लास्ट एक सफेद रंग की पुरानी आई20 कार में हुआ था. लेकिन जांच एजेंसियों के सामने सबसे बड़ा और पहला सवाल यह था कि आखिर यह कार किसके नाम पर रजिस्टर्ड है. हरियाणा के आरटीओ में रजिस्टर्ड कार के नंबर प्लेट (HR 26 CE 7674) से धमाके के सिरे जुड़ने शुरू हुए. जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, यह सवाल और उलझता चला गया.
बताया जाता है कि, ये कार कई बार फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए खरीदी-बेची गई थी. इस पुरानी i20 कार के मौजूदा मालिक का पता लगाने में अधिकारियों को घंटों नहीं, कई दिनों की मशक्कत करनी पड़ी. इससे एक बार फिर सामने आ गया कि, भारत का RC ट्रांसफर सिस्टम कागज़ों में भले ही आधुनिक हो चुका है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अभी भी पुराने ढर्रे पर अटकी है.
जांच ने यह साफ कर दिया कि पुरानी गाड़ियों के लिए देश का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) ट्रांसफर सिस्टम बहुत लचर और सुस्त है. देशभर के यूज़्ड-कार डीलर लंबे समय से इसी समस्या से जूझ रहे हैं. अलग-अलग राज्यों में रजिस्ट्रेशन ट्रांसफर प्रक्रियाओं में भारी अंतर है. किसी जगह ट्रांसफर हफ्तों में हो जाता है, तो किसी राज्य में महीनों की देरी आम बात है.
केंद्र सरकार द्वारा VAHAN सिस्टम के ज़रिये प्रक्रिया को डिजिटल और सरल बनाने की कोशिशों के बावजूद, खासकर इंटर-स्टेट RC ट्रांसफर में देरी पहले जैसी ही बनी हुई है. नतीजा यह कि गाड़ी बेच चुके लोग महीनों तक चालान, दुर्घटनाओं या किसी संभावित गलत इस्तेमाल की कानूनी जिम्मेदारी उठाते रहते हैं.
बिजनेस टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में रोड ट्रांसपोर्ट मंत्रालय ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए ऑथराइज़्ड डीलर ऑफ रजिस्टर्ड व्हीकल्स (ADRV) फ्रेमवर्क शुरू किया था. इसका उद्देश्य यह था कि जैसे ही गाड़ी किसी डीलर को सौंपी जाए, उसी क्षण वह डीलर गाड़ी का “डीम्ड ओनर” बन जाए. इससे असली मालिक पर से सभी जिम्मेदारियां हट जातीं और RC ट्रांसफर होने तक गाड़ी की जवाबदेही डीलर पर रहती है.
लेकिन असल समस्या इसकी लागू होने की रफ्तार है. VAHAN डाटा के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में अनुमानित 30,000-40,000 यूज़्ड कारों के डीलरों में से सिर्फ करीब 1,500 ही अब तक ADRV के रूप में रजिस्टर्ड हो पाए हैं. कई राज्यों में प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई है. नतीजा यह कि यह व्यवस्था आधी-अधूरी रह गई है और डीलरों में भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है.
प्री-ओन्ड कार बिजनेस के कारोबारियों का मानना है कि समस्या सिर्फ RC की देरी तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम को पुनर्गठित करने की जरूरत है. CARS24 जैसी कंपनियां, जो बड़े पैमाने पर ट्रांज़ैक्शंस हैंडल करती हैं, RC ट्रांसफर को खुद RTO के साथ फॉलो करती हैं और ग्राहकों के लिए “सेलर प्रोटेक्शन पॉलिसी” भी देती हैं. ताकि दस्तावेज़ी देरी के दौरान उन्हें कोई कानूनी नुकसान न उठाना पड़े.
लेकिन इंडस्ट्री के दिग्गज साफ कहते हैं कि प्राइवेट लेवल की व्यवस्था किसी भी तरह सरकारी सुधार की जगह नहीं ले सकती. CARS24 के प्रवक्ता के अनुसार, “भारत का यूज़्ड-कार मार्केट तेजी से बढ़ा है, लेकिन उसका नियमन और राज्य स्तर पर डिजिटलीकरण उतनी तेजी से नहीं बढ़ पाया है. डीम्ड-ओनरशिप मॉडल अच्छा कदम है, लेकिन यह तभी असरदार होगा जब सभी राज्य इसे पूरी तरह अपनाएं.”
डीलर्स का मानना है कि अगर ये कदम लागू होते हैं, तो न केवल पुरानी गाड़ियों की खरीद-फरोख्त सुरक्षित होगी, बल्कि ऐसी घटनाओं में जांच एजेंसियों के सामने आने वाली बड़ी खामियां भी दूर होंगी.
यह ब्लास्ट भले ही सुरक्षा एजेंसियों को एक बड़े खतरे का संकेत दे गया हो, लेकिन इससे अधिक यह हमारी प्रशासनिक व्यवस्था को आईना दिखा गया. और बता गया कि बदलते भारत में पुरानी कारों का कागज़ी सफर अब और लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर सकता.