खुली हवा में सांस लेने छुट्टी पर जा रहे दिल्ली-मुंबई के लोग, AQI हॉलिडे बना नया ट्रेंड

अब दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में रहने वालों के लिए सफर का नया ट्रेंड बन गया है AQI हॉलिडे. खराब हवा के चलते लोग नाइटलाइफ, लग्जरी पूल या शहर की भीड़ से दूर, जंगल और स्वच्छ हवा वाले स्थलों की ओर जा रहे हैं.

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आज की सबसे बड़ी विलासिता है ताजी हवा (Photos credit: Bamboo Forest Resort & Spa, Tadoba) आज की सबसे बड़ी विलासिता है ताजी हवा (Photos credit: Bamboo Forest Resort & Spa, Tadoba)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 06 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:02 AM IST

क्या आपने कभी सोचा था कि एक दिन आपको सिर्फ सांस लेने के लिए भी पैसे खर्च करने पड़ेंगे? यह मजाक नहीं है. आजकल, दिल्ली-एनसीआर और मुंबई जैसे बड़े शहरों में हवा की क्वालिटी (AQI) इतनी खराब हो गई है कि अब यह तय करती है कि लोग छुट्टियां कहां मनाएंगे. अब शहर के लोग नाइटलाइफ या बड़े इन्फिनिटी पूल वाली जगहों को नहीं खोज रहे, बल्कि उनकी तलाश एक बहुत ही जरूरी चीज है, जिसका नाम है ताजी हवा.

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दरअसल, ताजी हवा अब आलीशान कमरों से भी बड़ी विलासिता बन गई है. यह एक नया ट्रेंड है, जिसे लोग 'AQI हॉलिडे' कह रहे हैं. यानी, खराब हवा से बचने के लिए छुट्टी पर जाना. आखिर क्यों हो रहा है यह बदलाव, आइए समझते हैं.

शहरों में हवा ही दुश्मन बन गई

दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में अब एक नया मौसम शुरू हो गया है. ऐसा मौसम, जिसमें सुबह चाय की खुशबू नहीं, बल्कि N95 मास्क की गंध महसूस होती है. लोग बालकनी में खड़े होकर आसमान नहीं देखते, बल्कि फोन पर AQI चेक करते हैं कि आज हवा कम जहरीली है या ज्यादा. शामें भी अब पार्क में बच्चों की हंसी के साथ नहीं, बल्कि एयर प्यूरीफायर की आवाज सुनते हुए घर के अंदर बीतती हैं.

पहले त्योहारों के समय फ्रिज में रसगुल्ला और गाजर का हलवा रखे रहते थे, आज उसी जगह खांसी की दवाइयां और इनहेलेशन वाली मशीन रखी मिलती है. हफ्ते भर की थकान इतनी ज्दाया हो जाती है कि शनिवार की सुबह भी हमारे शरीर को लगता है, जैसे अब भी हम ऑफिस में ही हैं. इसीलिए, शुक्रवार की शाम 7 बजते ही, हमारी उंगलियां खुद-ब-खुद फ़ोन उठा लेती हैं और हम बार-बार प्रदूषण का मैप देखते हैं. हमारी बस यही उम्मीद होती है कि कहीं कोई साफ-सुथरी जगह दिख जाए, कोई ऐसी जगह, जहां भागकर दो दिन बिना मास्क के, जी भरकर सांस ली जा सके.

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इसीलिए, अब महाराष्ट्र के ताडोबा और गोथांगांव जैसी जगहें, जो पहले सिर्फ बाघ देखने वालों के लिए थीं, चुपचाप नए वेलनेस गेटवे बन गई हैं. यहां कोई बनावटी स्पा नहीं है, बल्कि यह जगहें जमीन से जुड़ी हुई हैं और सचमुच फेफड़ों को खोलने का काम करती हैं. ताड़ोबा जो पहले सिर्फ वाइल्ड लाइफ के शौकीनों के लिए था, अब वहां थके हुए सॉफ्टवेयर इंजीनियर, विज्ञापन जगत के लोग और ऐसे माता-पिता आ रहे हैं जिन्हें सांस लेने में भारी दिक्कत महसूस हो रही है.

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विलासिता की बदली परिभाषा

ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व के पास बसे गोथांगांव में, लग्जरी रिसॉर्ट्स को आजकल ऐसे लोग मिल रहे हैं, जो बस शहर में रहने की रोजमर्रा की परेशानी से थक चुके हैं. यहां आपको एक शानदार छुट्टी की सारी सुख-सुविधाएं तो मिलती हैं, लेकिन ये सब शहर के शोर-शराबे से बहुत दूर होते हैं. यहां आप सुबह बांस के पेड़ों से आती कोयल की आवाज से जागते हैं. नाश्ते में यहां लोकल समुदायों द्वारा उगाए गए बाजरा और ताजी सब्ज़ियां मिलती हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि आपका फोन का इस्तेमाल अपने आप कम हो जाता है, क्योंकि आपके आस-पास देखने के लिए आकाश और हरियाली की भरमार है, जो स्क्रीन से कहीं ज्यादा आकर्षक है.

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फेफड़ों की थेरेपी के लिए जंगल पलायन कर रहे हैं लोग  (Photos credit: Bamboo Forest Resort & Spa, Tadoba)

जंगल आपको आराम करने पर मजबूर करता है

ताडोबा में बाघों को देखने की सफारी अब भी लोगों का पसंदीदा अनुभव है, लेकिन अब कई लोग सफारी के रास्ते से हटकर जंगल की शांति के लिए भी आ रहे हैं. शहर में हमारा दिमाग हमेशा हाई अलर्ट पर रहता है, लेकिन जंगल में आते ही शरीर और मन एक अलग, धीरे-धीरे जीने का तरीका याद करने लगते हैं.

ताडोबा स्थित बैम्बू फ़ॉरेस्ट रिज़ॉर्ट एंड स्पा की अनुपमा मुखर्जी लोहाना रोज यह बदलाव देखती हैं. उनका कहना है कि लोग यहां फोन बजाते और दिमाग दौड़ाते हुए आते हैं, लेकिन दूसरे दिन तक उनका शरीर अपने आप धीमा पड़ जाता है, कंधे ढीले हो जाते हैं, और नींद गहरी हो जाती है. वह कहती हैं, "जंगल आपको आराम करने के लिए नहीं कहता, यह आपको आराम करने के लिए मजबूर करता है." जंगल की नरम रोशनी, साफ हवा और शांति मिलकर एक ऐसा प्राकृतिक उपचार स्थल बन जाती है, जिसे अब लोग सच में महसूस कर रहे हैं.

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मनोरंजन नहीं, अब यात्रा है लाइफ-सेविंग प्लान

आज के सांस्कृतिक दौर में यात्रा सिर्फ मनोरंजन या घूमने-फिरने तक सीमित नहीं रह गई है. यह अब रखरखाव, रणनीति और जीवन-रक्षा का हिस्सा बन गई है. डॉक्टर अब खुलकर बता रहे हैं कि प्रदूषित हवा में लगातार रहने से क्या नुकसान होते हैं. यही वजह है कि शहरी भारतीय अब प्रकृति को अपनी देखभाल की दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं. संक्षेप में, जंगल की छुट्टियां अब महज एक भोग-विलास नहीं, बल्कि एक समझदारी भरा और जरूरी विकल्प बन गया है.

हम सुविधा नहीं, स्वास्थ्य चुन रहे हैं

इस 'AQI हॉलिडे' की सबसे अच्छी बात यह है कि जब आप वापस आते हैं, तो आप सिर्फ यादें नहीं, बल्कि एक अलग तरह की ताजगी और सेहत लेकर आते हैं. हमारा शरीर पेड़ों की शांति, अंधेरे की गहराई और धूल से न छनकर आने वाले आसमान को याद करता है. मॉल की बजाय जंगल को चुनकर, हम एक ऐसी जरूरत को पूरा कर रहे हैं जो घूमने की चाहत से भी ज़्यादा गहरी है. हम अब सुविधा को छोड़कर स्वास्थ्य को, और बस जिंदगी जीने की जगह, बेहतर जीवन को चुन रहे हैं. यही वजह है कि स्वच्छ हवा में सांस लेने की क्षमता ही आज की सबसे बड़ी विलासिता बन गई है.

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