क्या है Muse सॉफ्टवेयर? एक साइबर अटैक से कई साल पीछे चला गया था यूरोप, दिखा ऐसा नजारा

यूरोपीय देशों के कुछ एयरपोर्ट को शनिवार के दिन साइबर अटैक का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से Muse नाम का सॉफ्टवेयर ठप पड़ गया. ये सिस्टम यूरोप समेत दुनिया के देशों के एयरपोर्ट पर ऑटो चेक-इन और बोर्डिंग की सुविधा देता है. इससे एयरलाइंस कंपनियों को टाइम सेविंग के साथ रुपये भी बचते हैं.

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साइबर अटैक के बाद ब्रुसेल्स इंटरनेशनल एयरपोर्टस पर पैसेंजर्स को मैनुअल चेक-इन करना पड़ा. (Photo: AP) साइबर अटैक के बाद ब्रुसेल्स इंटरनेशनल एयरपोर्टस पर पैसेंजर्स को मैनुअल चेक-इन करना पड़ा. (Photo: AP)

रोहित कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:33 PM IST

यूरोपीय समेत दुनियाभर के कुछ एयरपोर्ट को शनिवार के दिन साइबर अटैक का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से कई लोगों को परेशानी और नुकसान भी हुआ. साइबर अटैक की वजह से असल में ऑटोमैटिक होने वाला काम अचानक ठप हो गया. इसकी वजह से कई लोगों की फ्लाइट रद्द हुईं तो कुछ फ्लाइट्स ने देरी से उड़ान भरी. 

एयरपोर्ट पर अधिकतर काम ऑटोमैटिक तरीके से होते हैं. लेकिन शनिवार को हीथ्रो एयरपोर्ट, ब्रुसेल्स और बर्लिन पर एक साइबर अटैक की वजह से एयरपोर्ट का चेक-इन सिस्टम ठप हो गया. इसके बाद यूरोप जैसे देशों को मैनुअल चेक-इन और बोर्डिंग लिस्ट बनानी पड़ी, ये प्रैक्टिस वे कई साल पहले फॉलो करते थे.  

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Muse नामक सॉफ्टवेयर पर हमला

साइबर हमलावर ने Muse नामक सॉफ्टवेयर पर हमला किया, जिसकी वजह से एयरपोर्ट के कई काम ठप हो गए. यहां तक की कई एयरपोर्ट्स पर फ्लाइट्स ने देरी से उड़ान भरी और कुछ को रद्द करना पड़ा. 

बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट्स में बताया कि RTX कंपनी ने कहा कि वे इस साइबर संबंधित समस्या को पहचान चुके हैं और कुछ समय के अंदर ठीक भी किया. कंपनी ने आगे बताया कि उनका Muse software प्रभावित हुआ है, जिसे  Collins Aerospace प्रोवाइड कराती है और ये कंपनी RTX की सहायक कंपनी है. 

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Muse सॉफ्टवेयर क्या है? 

ये Muse सॉफ्टवेयर, एक पैसेंजर प्रोसेसिंग सिस्टम है, जो  एयरलाइंस कंपनियों को एक ही चेक-इन गेट और बोर्डिंग गेट को यूज करने की परमिशन देता है. सिंपल शब्दों में समझें तो एयर लाइंस कंपनियां एक ही हार्डवेयर सिस्टम के तहत चेक-इन और बोर्डिंग का काम पूरा करा लेती हैं.  

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समय और पैसा दोनों की बचत  

Muse सॉफ्टवेयर की मदद से एयरलाइंस कंपनियों को चेक-इन और बोर्डिंग कराने के लिए अलग से कर्मचारी लगाने की जरूरत नहीं होती है.  जब ये सिस्टम ठफ हुआ तो वहां क्षमता के मुताबिक मैनुअल चेक-इन का काम करने वाले कर्मचारी मौजूद नहीं थे. इसके बाद अफरा-तफरी जैसा माहौल बन गया.

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लोगों को लंबी लाइन में लगना पड़ा

इसके बाद लोगों को बोर्डिंग और चेक-इन जैसे काम के लिए लंबी लाइनों में लगना पड़ा. फिर कंपनियों को आनन-फानन में कई काम मैनुअली करने पड़े. फोन आदि से मैनुअली बोर्डिंग लिस्ट तैयार करनी पड़ी. इस वजह से कई लोगों को घंटों तक इंतजार भी करना पड़ा. 

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