सुंदरबन के मैन्ग्रूव जंगलों को दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक कवच माना जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से यह कवच खुद टूट रहा है. 30 सालों में भंगादूनी और जम्बूद्वीप जैसे दो द्वीप लगभग गायब हो चुके हैं. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की 2023 रिपोर्ट के मुताबिक, देश का कुल मैन्ग्रूव कवर 4,992 वर्ग किमी है, लेकिन 2021 से 7.43 वर्ग किमी कम हो गया.
पश्चिम बंगाल में सुंदरबन का मैन्ग्रूव 2 वर्ग किमी सिकुड़ा, जबकि गुजरात में 36 वर्ग किमी की भारी कमी आई. अगर यही सिलसिला चला, तो 2050 तक 113 तटीय शहरों का हिस्सा डूब सकता है. आइए, वैज्ञानिक कारणों और ताजा आंकड़ों के साथ समझें यह संकट.
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सुंदरबन के दक्षिणी छोर पर बसे भंगादूनी द्वीप की कहानी दर्दनाक है. 1975 में सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे में यह एक हरा-भरा मैन्ग्रूव द्वीप था. लैंडसैट-2 सैटेलाइट ने उसी साल इसकी तस्वीर ली, जो 1:50,000 स्केल पर बनी. लेकिन 1991 में लैंडसैट-5 ने दिखाया कि द्वीप सिकुड़ चुका था – समुद्री लहरों और नमक के जमाव से मैन्ग्रूव की जड़ें कमजोर पड़ गईं. 2016 तक लैंडसैट-8 की तस्वीरों में यह 1975 के आकार का आधा रह गया. FSI के अनुपम घोष ने बताया कि 1991-2016 में 23 वर्ग किमी जमीन समुद्र में डूब गई.
जम्बूद्वीप की हालत भी वैसी ही है. 1991 की तस्वीरों में यह बड़ा था, लेकिन 2016 तक न सिर्फ आकार सिकुड़ा, बल्कि जगह भी बदल गई – निचला हिस्सा लहरों के साथ खिसक गया. 2024-2025 की सैटेलाइट डेटा (NASA और WWF) से पता चलता है कि सुंदरबन में सालाना 3 सेमी तक जमीन डूब रही है, जो वैश्विक औसत से दोगुना है.
मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन से समुद्र स्तर का बढ़ना. IPCC की 2023 रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल वार्मिंग से समुद्र का पानी फैल रहा है- थर्मल एक्सपैंशन और हिमालय की बर्फ पिघल रही है. सुंदरबन में समुद्र स्तर सालाना 3.9 मिमी बढ़ रहा है – वैश्विक औसत (1.7 मिमी) से दोगुना. नमक का बढ़ता स्तर (सलाइनिटी) मैन्ग्रूव की जड़ों को नष्ट कर रहा है, जो मिट्टी को बांधे रखती हैं.
वैज्ञानिक रूप से, मैन्ग्रूव CO2 सोखते हैं (कार्बन सिंक), लेकिन 20% कमी से मौसम चक्र बिगड़ रहा है.
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FSI की 18वीं इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (2023) में...
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पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में 15% द्वीप डूब जाएंगे, जिससे करीब 45 लाख लोग प्रभावित होंगे. गुजरात के भावनगर में समुद्र का स्तर 87 सेमी तक बढ़ेगा और 10 लाख से ज्यादा लोग जोखिम में आएंगे. तमिलनाडु के चेन्नई में बाढ़ और तटीय क्षरण से 70 लाख लोगों की जिंदगी दांव पर लगी है.
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महाराष्ट्र के मुंबई में हर साल 2 मिलीमीटर की दर से जमीन डूब रही है, जिससे 2 करोड़ से ज्यादा लोग खतरे में हैं. केरल के कोच्चि सहित देश के 113 तटीय शहरों में से एक है, जहां 5 लाख से ज्यादा लोग सीधे प्रभावित होंगे. ये आंकड़े चेतावनी हैं – अगर अभी नहीं चेते तो पूरा तट खाली हो जाएगा.
यह सिर्फ पर्यावरण संकट नहीं, लाखों जिंदगियां दांव पर हैं. सरकार को मैन्ग्रूव बहाली, सी-वॉल और जलवायु अनुकूलन नीति (NDMA 2023) पर जोर देना चाहिए. लेकिन असली सवाल: क्या हम समय रहते जागेंगे वरना सुंदरबन की तरह पूरा तट डूब जाएगा?
ऋचीक मिश्रा