30 साल में समंदर निगल गया सुंदरबन के दो आइलैंड- भंगादूनी और जम्बूद्वीप... अब इन शहरों को खतरा

30 साल में सुंदरबन के भंगादूनी और जम्बूद्वीप समुद्र में गायब हो गए. समुद्र स्तर बढ़ने, मैन्ग्रूव कटाई और जलवायु परिवर्तन ने 23 वर्ग किमी जमीन निगल ली. 2050 तक सुंदरबन के 15% द्वीप डूबेंगे. 45 लाख लोग बेघर होंगे. मुंबई, चेन्नई, कोच्चि भी खतरे में हैं. मैन्ग्रूव बचाना होगा नहीं तो पूरा तट डूब जाएगा.

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ये तस्वीर है सुंदरबन के जम्बू्द्वीप की. देखिए कैसे ये आईलैंड खत्म हो चुका है और खिसक भी रहा है. (Photo: FSI) ये तस्वीर है सुंदरबन के जम्बू्द्वीप की. देखिए कैसे ये आईलैंड खत्म हो चुका है और खिसक भी रहा है. (Photo: FSI)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:27 PM IST

सुंदरबन के मैन्ग्रूव जंगलों को दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक कवच माना जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से यह कवच खुद टूट रहा है. 30 सालों में भंगादूनी और जम्बूद्वीप जैसे दो द्वीप लगभग गायब हो चुके हैं. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की 2023 रिपोर्ट के मुताबिक, देश का कुल मैन्ग्रूव कवर 4,992 वर्ग किमी है, लेकिन 2021 से 7.43 वर्ग किमी कम हो गया.

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पश्चिम बंगाल में सुंदरबन का मैन्ग्रूव 2 वर्ग किमी सिकुड़ा, जबकि गुजरात में 36 वर्ग किमी की भारी कमी आई. अगर यही सिलसिला चला, तो 2050 तक 113 तटीय शहरों का हिस्सा डूब सकता है. आइए, वैज्ञानिक कारणों और ताजा आंकड़ों के साथ समझें यह संकट.

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भंगादूनी और जम्बूद्वीप: 30 सालों में समुद्र का शिकार कैसे बने?

सुंदरबन के दक्षिणी छोर पर बसे भंगादूनी द्वीप की कहानी दर्दनाक है. 1975 में सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे में यह एक हरा-भरा मैन्ग्रूव द्वीप था. लैंडसैट-2 सैटेलाइट ने उसी साल इसकी तस्वीर ली, जो 1:50,000 स्केल पर बनी. लेकिन 1991 में लैंडसैट-5 ने दिखाया कि द्वीप सिकुड़ चुका था – समुद्री लहरों और नमक के जमाव से मैन्ग्रूव की जड़ें कमजोर पड़ गईं. 2016 तक लैंडसैट-8 की तस्वीरों में यह 1975 के आकार का आधा रह गया. FSI के अनुपम घोष ने बताया कि 1991-2016 में 23 वर्ग किमी जमीन समुद्र में डूब गई.

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भंगादूनी आइलैंड की 1975 और 2016 की तस्वीर. अभी स्थिति और बिगड़ गई है. (Photo: FSI)

जम्बूद्वीप की हालत भी वैसी ही है. 1991 की तस्वीरों में यह बड़ा था, लेकिन 2016 तक न सिर्फ आकार सिकुड़ा, बल्कि जगह भी बदल गई – निचला हिस्सा लहरों के साथ खिसक गया. 2024-2025 की सैटेलाइट डेटा (NASA और WWF) से पता चलता है कि सुंदरबन में सालाना 3 सेमी तक जमीन डूब रही है, जो वैश्विक औसत से दोगुना है.

वैज्ञानिक कारण: समुद्र क्यों निगल रहा द्वीपों को?

मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन से समुद्र स्तर का बढ़ना. IPCC की 2023 रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल वार्मिंग से समुद्र का पानी फैल रहा है- थर्मल एक्सपैंशन और हिमालय की बर्फ पिघल रही है. सुंदरबन में समुद्र स्तर सालाना 3.9 मिमी बढ़ रहा है – वैश्विक औसत (1.7 मिमी) से दोगुना. नमक का बढ़ता स्तर (सलाइनिटी) मैन्ग्रूव की जड़ों को नष्ट कर रहा है, जो मिट्टी को बांधे रखती हैं.

  • समुद्र स्तर वृद्धि (SLR): 2100 तक 62-87 सेमी बढ़ोतरी (INCOIS 2025 रिपोर्ट).
  • तटीय क्षरण (Erosion): 97% तट रेखा कट रही है; 1969-2001 में 163 वर्ग किमी जमीन गायब (Jadavpur University स्टडी).
  • मानवीय गतिविधियां: डैम से गंगा-ब्रह्मपुत्र का पानी कम, मछली पकड़ने के जाल मैन्ग्रूव नष्ट कर रहे.
  • साइक्लोन: 2019-2024 में फानी, अम्फान, यास जैसे तूफानों ने 40,000 घर उजाड़े.

वैज्ञानिक रूप से, मैन्ग्रूव CO2 सोखते हैं (कार्बन सिंक), लेकिन 20% कमी से मौसम चक्र बिगड़ रहा है.

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FSI 2023 रिपोर्ट से मैन्ग्रूव का हाल

FSI की 18वीं इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (2023) में...

  • कुल मैन्ग्रूव: 4,992 वर्ग किमी (0.15% देश का क्षेत्र).
  • कमी: 2021 से 7.43 वर्ग किमी; गुजरात (-36.39), अंडमान (-4.65), पश्चिम बंगाल (-2).
  • वृद्धि: आंध्र (+13), महाराष्ट्र (+12), ओडिशा (+8).
  • सुंदरबन : 25 सालों में 4 द्वीप (बेडफोर्ड, लोहाचारा, कबासगादी, साउथ तलपत्ती) पूरी तरह गायब.
  • 2024-2025 अपडेट (Down to Earth): सुंदरबन में सालाना 3 सेमी डूबना; मूसुनी द्वीप का 15% हिस्सा 2030 तक गायब हो जाएगा.

भारत के और कितने द्वीप-इलाके खतरे में?  

भारत के 102 द्वीपों वाले सुंदरबन में 50+ बसे हुए, लेकिन 4 पहले ही गायब हो चुके हैं. WWF-INCOIS 2025 के अनुसार, ये इलारे खतरे में हैं...

  • सुंदरबन में: घोरामारा, मूसुनी, सागर (30 वर्ग किमी खो चुका); 15% क्षेत्र 2030 तक डूब सकता.
  • अन्य द्वीप/क्षेत्र: अंडमान-निकोबार (1 वर्ग किमी मैन्ग्रूव कम); लक्षद्वीप के निचले द्वीप.
  • तटीय शहर: 113 शहर 2050 तक जोखिम में (IDR 2024) – गुजरात (भावनगर 87 सेमी SLR), केरल (कोच्चि), आंध्र (विशाखापत्तनम 62 सेमी), मुंबई, कोलकाता, चेन्नई. 1500 वर्ग किमी जमीन 2050 तक क्षरण से गायब (WRI).

2050 तक भारत के कई तटीय इलाके भयानक खतरे में

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में 15% द्वीप डूब जाएंगे, जिससे करीब 45 लाख लोग प्रभावित होंगे. गुजरात के भावनगर में समुद्र का स्तर 87 सेमी तक बढ़ेगा और 10 लाख से ज्यादा लोग जोखिम में आएंगे. तमिलनाडु के चेन्नई में बाढ़ और तटीय क्षरण से 70 लाख लोगों की जिंदगी दांव पर लगी है.

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महाराष्ट्र के मुंबई में हर साल 2 मिलीमीटर की दर से जमीन डूब रही है, जिससे 2 करोड़ से ज्यादा लोग खतरे में हैं. केरल के कोच्चि सहित देश के 113 तटीय शहरों में से एक है, जहां 5 लाख से ज्यादा लोग सीधे प्रभावित होंगे. ये आंकड़े चेतावनी हैं – अगर अभी नहीं चेते तो पूरा तट खाली हो जाएगा.

खतरे के बादल: क्या करें बचाव?

यह सिर्फ पर्यावरण संकट नहीं, लाखों जिंदगियां दांव पर हैं. सरकार को मैन्ग्रूव बहाली, सी-वॉल और जलवायु अनुकूलन नीति (NDMA 2023) पर जोर देना चाहिए. लेकिन असली सवाल: क्या हम समय रहते जागेंगे वरना सुंदरबन की तरह पूरा तट डूब जाएगा?

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