जोशीमठ के दरकते पहाड़ हों, माणा का एवलांच या अब धराली में बादल फटने से मची तबाही... आखिर उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन में क्यों होते हैं ज्यादा हादसे

धराली त्रासदी ने गढ़वाल की भौगोलिक, पर्यावरणीय और मानवीय कमजोरियों को उजागर किया है. क्षेत्र की नाजुक मिट्टी, हिमनदियों का पिघलना, अनियोजित विकास और जलवायु परिवर्तन इसे आपदाओं के लिए संवेदनशील बनाते हैं. कुमाऊं की तुलना में गढ़वाल की स्थिति अधिक जटिल है. इसे रोकने के लिए टिकाऊ विकास, जंगल संरक्षण और बेहतर आपदा प्रबंधन की जरूरत है.

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देखिए किस तरह फ्लैश फ्लड के बाद बदल गई धराली की तस्वीर. (Photo: ITG) देखिए किस तरह फ्लैश फ्लड के बाद बदल गई धराली की तस्वीर. (Photo: ITG)

कुमार कुणाल

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 6:40 PM IST

उत्तरकाशी जिले के हरसिल के पास धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने की भयंकर घटना हुई. इसने खीर गंगा नदी में अचानक बाढ़ ला दी, जिससे क्षेत्र में भारी तबाही मच गई. गढ़वाल हिमालय की भौगोलिक स्थिति, पर्यावरणीय कारक और मानवीय गतिविधियां इसे भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील बनाती हैं.

खड़ी ढलानें, ढीली मिट्टी और बार-बार होने वाली भारी बारिश इस क्षेत्र को अस्थिर बनाती हैं. इसके अलावा, अनियंत्रित निर्माण, जंगल कटाई और सड़क निर्माण ने इसकी नाजुक स्थिति को और बढ़ा दिया है. यही कारण है कि गढ़वाल, कुमाऊं की तुलना में अधिक संवेदनशील है.

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गढ़वाल क्षेत्र में भूस्खलन के कारण

स्थानीय भूगोल: उत्तरकाशी की मिट्टी और भौगोलिक संरचना इस क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं के लिए जोखिम में डालती है. यहां की मिट्टी में ढीले पदार्थ जैसे जलोढ़, कोल्यूवियम और हिमनदी शामिल हैं. भारी बारिश में ये मिट्टी पानी सोख लेती है, जिससे उनकी मजबूती कम हो जाती है. भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है.

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हिमनदीय प्रभाव: धराली की घटना इसका एक बड़ा उदाहरण है, जहां हिमनदीय अवसाद बाढ़ के पानी के साथ बह गए. इससे मलबे का सैलाब आया, जिसमें भारी मात्रा में मिट्टी, पत्थर और अन्य सामग्री नीचे की ओर बही, जिसने बस्तियों और ढांचों को भारी नुकसान पहुंचाया.

मानवीय गतिविधियांः गढ़वाल में तेजी से हो रहा बुनियादी ढांचे का विकास एक प्रमुख कारण है. सड़क निर्माण, जलविद्युत परियोजनाएं और गंगोत्री जैसे क्षेत्रों में पर्यटन के लिए बनाए गए ढांचे अक्सर पहाड़ों को काटने और विस्फोट करने से बनते हैं. ये गतिविधियां ढलानों को कमजोर करती हैं, जिससे भूस्खलन और सड़क अवरुद्ध होने की घटनाएं बढ़ती हैं. कई बार इन परियोजनाओं में क्षेत्र की जटिल भूगोलिक स्थिति को नजरअंदाज किया जाता है, जिससे पर्यावरणीय जोखिम बढ़ता है.

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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: गढ़वाल में बढ़ता तापमान हिमनदियों को तेजी से पिघला रहा है, जिससे अस्थिर मिट्टी और अवसाद सामने आ रहे हैं. यह नदियों में कटाव और भूस्खलन का खतरा बढ़ाता है. अनियमित और भारी बारिश की घटनाएँ भी ढलानों को और अस्थिर करती हैं.

गढ़वाल कुमाऊं से अधिक जोखिम में क्यों?

जलविद्युत परियोजनाएं: गढ़वाल में कई बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं हैं, जिनमें सुरंग खोदना, विस्फोट और मलबा हटाना शामिल है. ये गतिविधियां ढलानों को कमजोर करती हैं. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं. कुमाऊं में ऐसी परियोजनाएं छोटे स्तर की हैं, इसलिए वहां कम जोखिम है.

हिमनदियों का पिघलना: गंगोत्री जैसे हिमनदों का तेजी से पीछे हटना गढ़वाल में अस्थिर मलबे को छोड़ रहा है, जो धराली जैसी घटनाओं का कारण बनता है. कुमाऊं में कम हिमनद होने से ऐसा खतरा कम है.

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नदियों की प्रकृति: गढ़वाल की भागीरथी और अलकनंदा जैसी नदियां तेज बहाव और खड़ी ढलानों वाली हैं, जो कटाव को बढ़ाती हैं. कुमाऊं की कोसी और रामगंगा नदियां कम तीव्र हैं, इसलिए वहां कटाव का प्रभाव कम है.

पर्यटन का दबाव: गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे तीर्थस्थल गढ़वाल में भारी भीड़ खींचते हैं. चार धाम राजमार्ग जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए ढलानों की कटाई और जंगल कटाई होती है, जो मिट्टी के कटाव को बढ़ाती है. कुमाऊं में पर्यटन अधिक बिखरा हुआ है, जिससे पर्यावरण पर कम दबाव पड़ता है. 2013 की सुप्रीम कोर्ट की एक रिपोर्ट ने भी उत्तराखंड की पर्यावरणीय नाजुकता पर चिंता जताई थी.

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