चक्रवात दित्वाह 2025 के उत्तर हिंद महासागर साइक्लोन सीजन का चौथा चक्रवात है, जो 26 नवंबर को श्रीलंका के दक्षिण-पूर्वी तट के पास बना. यह यमन द्वारा सुझाए गए नाम से जाना जाता है, जो सोकोट्रा द्वीप की डेटवा जलसंधि से लिया गया है. दित्वाह ने श्रीलंका में यह 20 सालों की सबसे भयानक बाढ़ लेकर आया. 10 लाख लोग प्रभावित हुए और 400 से ज्यादा लापता बताए जा रहे हैं.
390 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. फिर यह बंगाल की खाड़ी में चला गया. भारत के तमिलनाडु तट के साथ-साथ चलते हुए कमजोर हो गया. 2 दिसंबर 2025 तक यह डीप डिप्रेशन बन चुका था, लेकिन चेन्नई, तिरुवल्लुर और कांचीपुरम जैसे इलाकों में भारी बारिश जारी रखी. रेड अलर्ट जारी होने से स्कूल-कॉलेज बंद हो गए. 83 उड़ानें रद्द हुईं और सड़कें जलमग्न हो गईं. तमिलनाडु में 3 लोगों की मौत हुई और 149 मवेशी मारे गए.
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चक्रवात, तूफान (टाइफून) या हरिकेन – ये सब एक ही तरह के तूफान हैं, जिन्हें ट्रॉपिकल साइक्लोन कहा जाता है. ये गर्म समुद्री जल पर बनते हैं और घूमते हुए बादलों का एक बड़ा चक्र बनाते हैं. वैज्ञानिक कारण सरल हैं...
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ये तूफान भूमध्यरेखा से कम से कम 5 डिग्री दूर बनते हैं. जब हवा की रफ्तार 119 किमी/घंटा से ज्यादा हो जाती है, तो इसे चक्रवात (भारतीय महासागर), टाइफून (पश्चिमी प्रशांत) या हरिकेन (अटलांटिक) कहते हैं. जलवायु परिवर्तन से समुद्र गर्म हो रहे हैं, जिससे ये तूफान ज्यादा तेज, ज्यादा बारिश वाले और लंबे समय तक चलने वाले बन रहे हैं.
चक्रवात, टाइफून या हरिकेन सिर्फ तेज हवाओं के नहीं, बल्कि कई खतरे लाते हैं. ये दुनिया को प्रभावित करते हैं क्योंकि...
सालाना ये तूफान 85 बार बनते हैं, जिनमें से 45 मजबूत हो जाते हैं. पिछले 50 सालों में इन्होंने 7.79 लाख मौतें और 1.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान किया है.
पिछले दो सालों में ये तूफान ज्यादा घातक बने. कुछ उदाहरण...
ये उदाहरण दिखाते हैं कि तूफान तेजी से मजबूत हो रहे हैं, और प्रभाव दूर-दराज इलाकों तक पहुंच रहा है.
चक्रवात दित्वाह जैसा तूफान श्रीलंका-भारत तक सीमित लगता है, लेकिन ये वैश्विक समस्या हैं. 40% आबादी तटों पर रहती है. जलवायु परिवर्तन से तूफान ज्यादा तीव्र हो रहे हैं. एशिया-अफ्रीका में गरीब देश सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, जहां पुनर्निर्माण मुश्किल हो जात है. आर्थिक नुकसान से वैश्विक व्यापार प्रभावित होता है – जैसे दित्वाह ने उड़ानें रद्द कर दीं. लंबे समय में, ये बाढ़ फसलें बर्बाद करती हैं. भुखमरी फैलाती हैं और लोग माइग्रेट करते हैं.
समाधान: जलवायु परिवर्तन रोकें – कार्बन उत्सर्जन कम करें. मजबूत चेतावनी सिस्टम, वनों की रक्षा और बाढ़-रोधी इमारतें बनाएं. दित्वाह ने साबित किया – पहले से तैयारी से जानें बचाई जा सकती हैं. दुनिया को एकजुट होकर इन तूफानों से लड़ना होगा, वरना भविष्य और खतरनाक होगा.
ऋचीक मिश्रा