आतंकवाद की जड़ कहां है? चिदंबरम-अबू आजमी को जम्‍मू-कश्‍मीर के एसपी का जरूरी जवाब

दिल्ली ब्लास्ट के बाद आतंकवाद की जड़ों पर पी. चिदंबरम के सवाल का जम्मू-कश्मीर के एक पुलिस अफसर ने पेशेवर जवाब दिया है. पुलिस अफसर के मुताबिकस, आतंकवाद अन्याय का नतीजा नहीं, धार्मिक कट्टरता को पीड़ित मानसिकता समझने की गलती है.

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आतंकवाद के पैदा होने और पनपने पर पी. चिदंबरम और अबू आजमी के सवाल वाजिब हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सटीक जवाब भी मिल रहा है. (Photo: PTI) आतंकवाद के पैदा होने और पनपने पर पी. चिदंबरम और अबू आजमी के सवाल वाजिब हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सटीक जवाब भी मिल रहा है. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:30 PM IST

दिल्ली ब्लास्ट की जांच जारी है. दिन भर लगातार नए खुलासे हो रहे हैं. और, अब तो सरकार ने भी मान लिया है कि ये आतंकवादी हमला था. लेकिन, ये पहलगाम हमले से अलग है. दिल्ली धमाके में पहलगाम की तरह विदेशी आतंकवादी शामिल नहीं हैं. इसी के बाद आतंकवाद की पैदाइश पर महाराष्ट्र से समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने जो लाइन ली है, पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम उसी को अपने तरीके से आगे बढ़ाया है. दोनों की पोस्‍ट में कॉमन बात ये है कि दोनों आतंकियों को परिस्थिति का मारा बता रहे हैं. अबू आजमी को तो नहीं, लेकिन देश के पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम को एक पुलिस अफसर ने माकूल और विस्तार से जवाब दिया है.

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एक प्रोफेशनल और एक्सपर्ट की तरह समझाते हुए पुलिस अफसर ने भारत के साथ ही दुनिया के कई देशों में फैले आतंकवाद का उदाहरण भी दिया है. जम्मू-कश्मीर में तैनात एसपी प्रणव महाजन ने बड़े ही साफ शब्दों में बताया है, 'आतंकवाद अन्याय का नतीजा नहीं, एक मानसिक बीमारी है, और फलती-फूलती है तब है जब हम कट्टरता को पीड़ित मानसिकता समझने की भूल कर बैठते हैं.' 

अबू आजमी और चिदंबरम ने आतंकवाद की पैदाइश पर क्‍या कहा-

अपनी पोस्ट के आखिर में पी. चिदंबरम ने जो सवाल उठाया है, वो भी वही सवाल है जो अबू आजमी उठा रहे हैं. भले ही ये इत्तफाक हो, लेकिन ये पॉलिटिकल लाइन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को तो सूट करती ही है. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने लखनऊ में कहा, 'हम देख रहे हैं, जब चुनाव होता है तो इस तरह की चीज होती है... इसकी जांच होनी चाहिए. जो लोग ब्लास्ट में शामिल हैं, उन्हें पकड़कर 6 महीने के अंदर फांसी देनी चाहिए... मुंबई में जो ट्रेन में हमला हुआ था, उसमें निर्दोष लोग पकड़े गये थे... ऐसा इस केस में नहीं होना चाहिए. जुल्म और नाइंसाफी से आतंकवाद पैदा होता है... आतंकवाद को खत्म किया जाना चाहिए... दिल्ली में बलास्ट होना मतलब सरकार की चूक है.'

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अबू आजमी की बात को आगे बढ़ाते हुए पी. चिदंबरम लिखते हैं, 'ये बात मैं पहले भी कह चुका हूं, और पहलगाम अटैक के बाद भी याद दिलाई है कि आतंकवादी दो तरीके के होते हैं - विदेशों में प्रशिक्षित और घुसपैठ करके आने वाले आतंकवादी, और देश के भीतर ही पैदा हुए आतंकवादी.'

यूपीए सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री रह चुके चिदंबरम का कहना है, संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चली बहस के दौरान भी मैंने यही बात कही थी... ‘होम-ग्रोन टेररिस्ट’ का जिक्र करने पर मेरा मजाक उड़ाया गया, और मुझे ट्रोल किया गया... मुझे कहना होगा, सरकार ने चुप्पी साधे रखी... क्योंकि, सरकार भी जानती है कि देश के भीतर पैदा होने वाले आतंकवादी भी मौजूद हैं... इस पोस्ट का असली मकसद ये है कि हमें खुद से पूछना चाहिए कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं, जो भारतीय नागरिकों और वो भी पढ़े लिखे लोगों को आतंकवादी बनने तक धकेल देती हैं.'

चिदंबरम को एक एसपी का प्रोफेशनल जवाब- 'आतंकवाद ऐसे पैदा होता है...'

चिंबदरम के ट्वीट पर जम्मू-कश्मीर में एसपी प्रणव महाजन अपने जवाब में आतंकी, आतंकवाद, उनके इकोसिस्‍टम और उन्‍हें पीडि़त मानने वाली मानसिकता की परतें उतार देते हैं. पढि़ए उनका पूरा रिप्‍लाय-

'सर, पूरे आदर के साथ कहना चाहूंगा कि जब-जब इस तरह की बहस होती है, हम एक रक्षात्मक लहजे में चले जाते हैं. जैसे कि जब भी कोई भारतीय नागरिक अपराध या आतंक की राह पकड़ता है, तो उसकी गलती नहीं बल्कि हमारे महान देश या उसके सिस्‍टम की गलती है. मानो देश ने उसके साथ अन्‍याय कर दिया हो. यही अपराध-बोध वाला नैरेटिव हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है.

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आतंकियों में पाई जाने वाली यह प्रवृत्ति केवल भारत तक सीमित नहीं है. दुनिया के हर कोने में. मिडिल ईस्‍ट से लेकर यूरोप और अमेरिका तक कई शिक्षित और सम्पन्न लोग आतंक की राह पर चले हैं. ओसामा बिन लादेन से लेकर लंदन और ब्रसेल्स के हमलावरों तक. वे न तो गरीबी के शिकार थे, न उपेक्षा के. वे जहरीली विचारधाराओं और मजहबी ब्रेनवॉशिंग के शिकार थे.

स्पष्ट है कि शिक्षा और आर्थिक समृद्धि किसी को कट्टरपंथ से बचाने की गारंटी नहीं देती. कई बार तो आतंकियों ने अपनी शिक्षा और संसाधनों का इस्तेमाल उन्हें और भी अधिक घातक बनने में किया है.

असल सवाल यह है वह कौन-सी ब्रेनवॉशिंग है जो इंसानों को यह यकीन दिला देती है कि वे मजहब  या बदले के नाम पर निर्दोषों की जान लें? वह कौन-सी सामाजिक सोच है जो नफरत और तथाकथित "शहादत" को मानवता और राष्ट्रभक्ति से ऊपर रख देती है?

जब तक हम मजहबी आतंकवाद से लेकर उसे स्‍पांसर करने वाले ग्‍लोबल फंडिंग नेटवर्क के इस जहरीले ईकोसिस्‍टम का सच्चाई से सामना करने का साहस नहीं दिखाएंगे, तब तक हम खुद को दोष देते रहेंगे और असली अपराधी खुले घूमते रहेंगे. दुर्भाग्य से, यह नेटवर्क संगठित, अंतरराष्ट्रीय और फंडिंग से लैस है.

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हर बार अपने ही समाज पर सवाल उठाने के बजाय, शायद यह सोचना जरूरी है कि यह कट्टरपंथ बार-बार एक ही वैचारिक गड्ढे से क्यों फूटता है?

आतंकवाद गरीबी या भेदभाव से नहीं जन्म लेता. वह नफरत, ब्रेनवॉशिंग और मजहबी मान्‍यताओं की सुनियोजित विकृति से जन्म लेता है.

आतंकवाद अन्याय का परिणाम नहीं है. यह मानसिक रोग है, और तब पनपता है जब हम उन्माद को पीड़ित-भाव में देखने की भूल करते हैं.'

 

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