हिमाचल की बाढ़ हो या इंडोनेशिया की... जहां-जहां पेड़ काटे गए, वहां-वहां मौत और बर्बादी ही आई. हमारे बुजुर्ग कहते थे – जंगल है तो जीवन है. आज विज्ञान भी यही कह रहा है. फिर भी हम चैन की नींद सो रहे हैं और हर साल लाखों हेक्टेयर जंगल काट रहे हैं. नतीजा हमारे सामने है – हिमाचल प्रदेश में 2023-2024 की भयानक बाढ़ और भूस्खलन, केरल की बाढ़, उत्तराखंड की त्रासदी, इंडोनेशिया में हर साल की बाढ़ और भूस्खलन. सबका एक ही कारण – जंगल खत्म.
जंगल सिर्फ लकड़ी का गोदाम नहीं होते. वे पहाड़ों को बांधकर रखते हैं. उनकी जड़ें मिट्टी को इतनी मजबूती से पकड़ती हैं कि भारी बारिश में भी मिट्टी खिसकती नहीं. पेड़ बारिश के पानी को सोखते हैं, धीरे-धीरे छोड़ते हैं, जिससे अचानक बाढ़ नहीं आती. पेड़ बादल बनने में भी मदद करते हैं. जब हम पेड़ काटते हैं तो पहाड़ नंगा हो जाता है, मिट्टी ढीली पड़ जाती है. पहला जोर का बारिश हुआ नहीं कि पूरा का पूरा पहाड़ नदी बन जाता है.
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हिमाचल में पिछले दो साल में जो कुछ हुआ, वह किसी को नहीं भूलना चाहिए. कुल्लू, मनाली, लाहौल-स्पीति, किन्नौर – हर तरफ सेब के बाग और रिसॉर्ट बनाने के लिए जंगल साफ किए गए. सड़कें चौड़ी करने के नाम पर हजारों पेड़ काटे गए. नतीजा? जुलाई-अगस्त 2023 और 2024 में बादल फटे और पूरा हिमाचल बह गया. सैकड़ों लोग मरे, हजारों घर तबाह, अरबों का नुकसान. जो इलाका कभी सुरक्षित था, वहां आज भी लोग रात को डर के साये में सोते हैं कि कहीं पहाड़ न गिर जाए.
इंडोनेशिया में तो यह हर साल का नजारा है. पाम ऑयल के लिए लाखों हेक्टेयर जंगल काट दिए गए. अब बारिश होते ही जावा, सुमात्रा, बोर्नियो में भयानक बाढ़ और भूस्खलन आते हैं. 2021-2022 में एक ही साल में हजारों लोग मरे. जो जंगल कभी पानी सोखते थे, अब वहां कीचड़ की नदियां बहती हैं.
हैती (2004, 2008) – लगभग पूरा जंगल खत्म, तूफान आया तो 5000 से ज्यादा लोग एक साथ मरे
हैती में 98% जंगल काटकर कोयला बनाने के लिए बेच दिए गए. जब 2004 में तूफान जीन और 2008 में चार तूफान आए तो पहाड़ों की मिट्टी समुद्र में बह गई. एक ही रात में हजारों गांव मिट गए. पड़ोसी देश डोमिनिकन रिपब्लिक में जंगल बचे थे, वहां नुकसान बहुत कम हुआ. फर्क सिर्फ जंगल का था.
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चीन – 1998 की यांग्त्से नदी की भयानक बाढ़ (4000 से ज्यादा मौतें)
1950-1980 के बीच यांग्त्से नदी के ऊपरी इलाके में बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए. 1998 में जब भारी बारिश हुई तो पानी रोकने वाला कुछ नहीं बचा. 4000 से ज्यादा लोग मरे, 1.8 करोड़ लोग बेघर हुए. इसके बाद चीन ने दुनिया का सबसे बड़ा पेड़ लगाने का अभियान शुरू किया.
ब्राजील – अमेजन जंगल काटने के बाद 2021-2024 की रिकॉर्ड बाढ़ और सूखा
अमेजन को पृथ्वी का फेफड़ा कहते हैं. पिछले 20 साल में 20% से ज्यादा अमेजन काट दिया गया. नतीजा? एक तरफ रिकॉर्ड बाढ़. दूसरी तरफ रिकॉर्ड सूखा. 2024 में मानुस शहर में नदी सूख गई, वहीं दूसरी जगहों पर बाढ़ से हजारों लोग प्रभावित हुए. वैज्ञानिक कहते हैं – अमेजन के पेड़ ही दक्षिण अमेरिका में बारिश लाते थे, अब वे कम हो गए तो मौसम पागल हो गया.
केरल, भारत – 2018 और 2019 की लगातार बाढ़ (लगभग 500 मौतें हर साल)
पश्चिमी घाट के जंगल तेजी से काटे गए – रिसॉर्ट, रबर के बाग, खदान. 2018 में 100 साल की सबसे भयानक बाढ़ आई. एक ही हफ्ते में पूरा केरल डूब गया. अगले साल फिर वही हुआ. आज भी वैज्ञानिक रिपोर्ट कहती है – अगर वेस्टर्न घाट के 60% जंगल और काटे गए तो केरल हर साल डूबेगा.
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USDA Forest Service के अनुसार जंगल की जड़ें मिट्टी को 50000 गुना ज्यादा मजबूती से पकड़ती हैं. IIT कानपुर की 2021 स्टडी के मुताबिक एक हेक्टेयर घना जंगल 1 घंटे में 30000 लीटर बारिश का पानी सोख लेता है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के अनुसार जब जंगल कट जाता है तो मिट्टी की इरोशन रेट 500 से 1000 गुना तक बढ़ जाती है. पेड़ हवा से नमी खींचकर बादल बनाते हैं. अमेजन के पेड़ अकेले दक्षिण अमेरिका की 20% बारिश पैदा करते हैं.
एक बड़ा पेड़ दिन में 400 लीटर पानी वाष्प बनाकर छोड़ता है – यानी एक जंगल पूरा मौसम कंट्रोल करता है. जब ये पेड़ नहीं रहते तो बारिश का पानी सीधे पहाड़ से नीचे की ओर दौड़ता है. मिट्टी साथ ले जाता है और भूस्खलन + बाढ़ पैदा करता है.
हम हर बार कहते हैं – अब सबक ले लेंगे. फिर अगले ही साल नया प्रोजेक्ट पास हो जाता है. नया रिसॉर्ट बन जाता है. नई सड़क के लिए हजारों पेड़ कट जाते हैं. सरकार कहती है – विकास चाहिए. लेकिन क्या यह विकास है कि आज हम दो पैसे कमाएं और आने वाली पीढ़ी को बाढ़ और सूखा भुगतने को छोड़ जाएं?
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हमें समझना होगा – जंगल काटकर हम अपनी ही कब्र खोद रहे हैं. हर कटे पेड़ का हिसाब प्रकृति रखती है. हर नंगे पहाड़ का बदला पानी और मिट्टी लेती है. हिमाचल, केरल, उत्तराखंड, इंडोनेशिया, हैती – ये सब हमारे लिए आखिरी चेतावनी हैं. अगर अब भी नहीं चेते तो अगली बाढ़ में हमारा नाम भी उस लिस्ट में जुड़ जाएगा.
सख्त कानून बनाओ – एक भी पेड़ बिना वैज्ञानिक कारण के न कटे. जो काटा है, उससे दस गुना पेड़ लगाओ. पहाड़ों पर बड़े होटल-रिसॉर्ट बंद करो. हर गांव में पंचायत को जंगल बचाने का अधिकार दो. हमें खुद फैसला करना है – हमें पैसा चाहिए या जिंदगी?
ऋचीक मिश्रा