मध्य प्रदेश के इंदौर में जैन परिवार की 3 साल 4 माह की बच्ची वियाना जैन की संथारा के बाद मृत्यु का मामला चर्चा में है. बच्ची के माता-पिता ने दिगंबर जैन संत अभिग्रहधारी राजेश मुनि की सलाह पर 21 मार्च को उसे संथारा दिलवाया, जिसके कुछ मिनट बाद मासूम ने अंतिम सांस ली. इस घटना ने धार्मिक, कानूनी और नैतिक सवाल खड़े कर दिए हैं. मध्य प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मामले का संज्ञान लिया और इंदौर जिला प्रशासन से जवाब मांगा है.
मध्य प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने सोमवार को एक न्यूज एजेंसी से कहा, "मीडिया रिपोर्टों के आधार पर हमने इस घटना का संज्ञान लिया है. हमने इंदौर के जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी करने का निर्णय लिया है."
उन्होंने विशेष रूप से सवाल उठाया कि एक तीन वर्षीय बच्ची संथारा जैसी प्रथा के लिए सहमति कैसे दे सकती है. सिंह ने कहा, "हम जिला मजिस्ट्रेट से जवाब मांग रहे हैं और उनके उत्तर के आधार पर उचित कार्रवाई करेंगे."
दरअसल, संथारा (सल्लेखना या समाधि मरण) जैन धर्म की एक प्राचीन प्रथा है, जिसमें व्यक्ति आध्यात्मिक शुद्धि और सांसारिक मोह से मुक्ति के लिए स्वेच्छा से भोजन और पानी त्यागकर मृत्यु को गले लगाता है.
वियाना के माता-पिता, पियूष और वर्षा जैन ने बताया कि उनकी इकलौती बेटी को दिसंबर 2024 में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था. जनवरी 2025 में मुंबई में सर्जरी के बाद उसकी हालत में सुधार हुआ, लेकिन मार्च में स्थिति फिर बिगड़ गई.
पियूष जैन ने कहा, "21 मार्च की रात को हम अपनी गंभीर रूप से बीमार बेटी को जैन मुनि राजेश मुनि महाराज के दर्शन के लिए ले गए. महाराज ने उसकी हालत देखकर कहा कि उसका अंत निकट है और संथारा का व्रत दिलवाने की सलाह दी. बहुत सोच-विचार के बाद हमने सहमति दी."
मां वर्षा जैन ने भावुक होकर कहा, "वियाना बहुत दर्द में थी. यह फैसला लेना बेहद कठिन था. मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी अगले जन्म में सुखी रहे." संथारा रात 9:25 बजे शुरू हुआ और 10:05 बजे करीब 40 मिनट बाद वियाना की मृत्यु हो गई.
बता दें कि 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत अपराध घोषित किया था, लेकिन जैन समुदाय के विरोध और याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी.
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