क्या वाइट हाउस में बंद दरवाजों के पीछे बातचीत खत्म हो चुकी, पहले जेलेंस्की, अब रामाफोसा को ऑन-कैमरा घेरा ट्रंप ने?

डोनाल्ड ट्रंप के समय में डिप्लोमेसी में रियलिटी शो का तड़का लग चुका है. ट्रंप वाइट हाउस आने वाले विदेशी मेहमानों के साथ बहस करते हैं और इसका वीडियो वायरल हो जाता है. पहले यूक्रेन के नेता जेलेंस्की, अब दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति रामाफोसा के साथ उनकी तनातनी चर्चा में है. इससे पहले वाइट हाउस ने इस तरह की बातचीत कभी ऑन-कैमरा नहीं की.

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डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात में निजता को तवज्जो देते नहीं दिख रहे. (Photo- AP) डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात में निजता को तवज्जो देते नहीं दिख रहे. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 मई 2025,
  • अपडेटेड 6:01 PM IST

अमेरिका की पहचान उसकी ताकत ही नहीं, खुफिया तरीके से अपना काम करना भी रहा. खासकर वाइट हाउस में दो नेताओं के बीच जो कुछ भी होता रहा, वो सामने तभी आया, जब खुद दोनों ने चाहा. लेकिन बंद कमरों की कूटनीति अब खत्म होती दिख रही है. डोनाल्ड ट्रंप दूसरे राष्ट्र प्रमुखों से मिलकर अगर कोई तनाव वाली बात कर रहे हैं, तो उसकी भी जानकारी मीडिया के पास है. कुछ समय पहले यूक्रेनी नेता के बाद अब दक्षिण अफ्रीकी लीडर के साथ उसकी बहस वायरल है. तो क्या ट्रंप गोपनीयता की परंपरा तोड़ रहे हैं?

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बंद दरवाजे खोलते रहे नए रास्ते

आमतौर पर दो लीडरों की मीटिंग बंद दरवाजों के भीतर होती है, फिर चाहे चर्चा कितनी ही सामान्य हो. कई बार ये भी होता है कि सामान्य मीटिंग के दौरान ही बड़ी डील्स हो जाती हैं, या फिर कोई तनाव आ जाता है. इनका असर कूटनीति पर तुरंत न पड़े, इसके लिए क्लोज्ड डोर मीटिंग की जाती रही. 

गोपनीयता का पालन वाइट हाउस से लेकर क्रेमलिन और एशियाई देश भी करते रहे. ये डिप्लोमेटिक गोपनीयता तब तक बनी रहती है, जब तक कि दोनों पक्ष बात को सार्वजनिक करने पर हामी न भरें. 

मीडिया को कब जाना होता है बाहर

बैठक का छोटा ही हिस्सा सार्वजनिक रहा. जैसे शुरू में दोनों नेता कैमरों के सामने बैठते और दो-तीन मिनट की ओपनिंग स्टेटमेंट देते हैं. यह 2 से 5 मिनट की फॉर्मल फुटेज होती है जिसमें नेता हाथ मिलाएंगे और अच्छे रिश्ते जैसी दो-चार बातें कहेंगे. इसके बाद प्रेस को बाहर भेज दिया जाता है. अब जो बातचीत है, वही असल है. नेताओं की असली, रणनीतिक बातचीत कैमरे पर नहीं होती, बल्कि केवल दुभाषियों और इक्का-दुक्का अफसरों के बीच रहती है. 

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तो फिर ट्रंप के जमाने में सबकुछ सार्वजनिक क्यों हो रहा 

यह एक नया ट्रेंड चल पड़ा है. ट्रंप राजनयिक प्रोटोकॉल को एक तरफ रखकर नेताओं पर सीधे आरोप लगा रहे हैं और उस हिस्से को ऑन-कैमरा दिखा रहे हैं. कुछ समय पहले यूक्रेन के नेता वोलोदिमीर जेलेंस्की को लताड़ती हुई उनकी वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें वे आरोप लगा रहे थे कि उनका देश अमेरिकी मदद के बिना रूस के सामने टिक नहीं सकता.

अब साउथ अफ्रीका के नेता रामाफोसा के साथ बातचीत का वीडियो जिसमें ट्रंप कहते हैं कि उनके यहां श्वेत किसानों की हत्या हो रही है, सार्वजनिक हो चुका. उन्होंने किम जोंग की चिट्ठियों को भी लव लेटर कहते हुए पब्लिक कर दिया था.

पहले होती थी ब्लैक होल डिप्लोमेसी

उनसे पहले लगभग सारे अमेरिकी नेता अपनी सीक्रेसी के लिए जाने जाते रहे. सत्तर के दशक में जब रिचर्ड निक्सन लीडर थे, अंदरखाने इतना कुछ हुआ कि जब राज खुला, जनता स्तब्ध रह गई. इसके बाद ही तय हुआ कि वाइट हाउस में हो रही मुलाकातें ब्लैक होल न रहें. प्रेस आने लगा. सवाल पूछे जाने लगे. लेकिन असल डिप्लोमेसी अब भी कैमरे के पीछे ही होती है. 

कब-कब ट्रंप कैमरे पर ही खटास दिखाते रहे

साल 2017 में वाइट हाउस में ट्रंप और मर्केल के बीच मुलाकात के दौरान ट्रंप ने कैमरे के सामने हाथ मिलाने से इनकार कर दिया. इसपर काफी चर्चा रही थी. अभी अफ्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा को भी उन्होंने कैमरे के सामने ही घेरा. इसके बाद रामाफोसा के प्रेस सेक्रेटरी ने बयान दिया कि कुछ सबजेक्ट संवेदनशील होते हैं और उन्हें आपसी यकीन के दायरे में ही रहना चाहिए. 

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ट्रंप की ऑन-कैमरा डिप्लोमेसी पर कई लीडर खुले तौर पर, जबकि कई पीछे से एतराज जता चुके. उनपर आरोप है कि कई मौकों पर वाइट हाउस में विदेशी नेताओं के साथ बातचीत को जानबूझकर उन्होंने कैमरे के सामने अजीब मोड़ दे दिया. फ्रांस से लेकर कनाडा इसपर एतराज जता चुके कि ट्रंप का तरीका डिप्लोमेटिक तौर-तरीकों से अलग है, जो कि ठीक नहीं.

ऑफ कैमरा बातचीत क्यों फायदेमंद

इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपतियों, फिर चाहे वे क्लिंटन हों, बुश या फिर बाइडेन, किसी ने इस तरह की बातचीत कभी ऑन-कैमरा नहीं की. अमेरिका आमतौर पर गोपनीयता बनाए रखता है ताकि राजनयिक रिश्ते बिगड़ें नहीं, और बिगाड़ हो भी तो रिपेयर हो सकने की गुंजाइश हो. कई बार बातचीत जब पब्लिक डोमेन में आ जाती है, तो हर देश उसका अलग तरह से मतलब निकालता है, जिससे रिश्तों में बिगाड़ ही आती है. इसके अलावा, कोई भी नेता खुले कैमरे पर बहस या शर्मिंदगी से बचना चाहता है. और इस तरह की राजनीति से अमेरिका की विश्वसनीयता डिग सकती है. 

फिर ट्रंप क्यों कर रहे ऐसा

हर लीडर की कुछ यूएसपी या कहें खासियत होती है, जो उसे बाकियों से अलग बनाती है. ट्रंप के मामले में उनकी बेबाकी यूएसपी रही. वे अपने वोटबेस को बताना चाहते हैं कि वे साफगोई रखते हैं. ट्रंप खुद को नो-नॉनसेंस लीडर की तरह पेश करते रहे, जो बिना लागलपेट बोलता है, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो.

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इसके अलावा ये बात भी है कि वे हर नेता से ऐसे बात नहीं करते, बल्कि उन्हीं को घेरते हैं, जिसे घेरकर उन्हें कोई फायदा हो रहा हो. जेलेंस्की के मामले में बोलकर वे रूस के ज्यादा करीब जा चुके. या फिर रामाफोसा पर लगा आरोप ट्रंप को श्वेतों के रहनुमा की तरह पेश कर सकता है.

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