नीतीश कुमार क्यों अपनी रैलियों में भागलपुर दंगे का जिक्र कर रहे हैं?

बिहार के भागलपुर दंगे ने प्रदेश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को झकझोर दिया. इस दंगा का राजनीतिक असर ऐसा पड़ा कि मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर हुआ और जनता दल के करीब आया. इसके बाद लालू यादव ने सत्ता की कमान संभाली तो उन्होंने मुस्लिमों को अपने कोर वोट बनाकर रखा, लेकिन भागलपुर दंगे के जख्मों पर मरहम लगाने काम नीतीश कुमार ने 2006 में किया. इसीलिए नीतीश हर रैली में इसका जिक्र कर रहे हैं.

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 14 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST
  • 1989 में बिहार के भागलपुर में दंगा हुआ था
  • नीतीश ने 2006 में दंगे के लिए आयोग बनाया
  • भागलपुर दंगे से बदल गई बिहार की सियासत

तीन दशक पहले अक्टूबर 1989 में बिहार के भागलपुर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसने प्रदेश के पुराने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को झकझोर दिया. इस दंगा का राजनीतिक असर ऐसा पड़ा कि मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर हुआ और जनता दल के करीब आया. इसके बाद लालू यादव ने सत्ता की कमान संभाली तो उन्होंने मुस्लिमों को अपने कोर वोट बनाकर रखा, लेकिन भागलपुर दंगे के जख्मों पर मरहम लगाने काम नीतीश कुमार ने 2006 में किया. यही वजह है कि नीतीश कुमार अपनी हर अपनी रैलियां में भागलपुर दंगे का जिक्र कर मुस्लिमों को राजनीतिक संदेश देने के साथ-साथ लालू-राबड़ी सरकार को कठघरे में खड़ा करने का काम कर रहे हैं. 

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नीतीश कुमार मंगलवार को वर्चुअल रैली के दौरान मुस्लिमों को साधते नजर आए. उन्होंने कहा कि हमसे पहले जिन लोगों ने बिहार में सत्ता चलाई उन्होंने क्या किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि भागलपुर दंगे में उन्होंने (लालू-राबड़ी-कांग्रेस) कुछ नहीं किया लेकिन जब हमारी सरकार बनी तो हमने आयोग बनाकर पूरे मामले की जांच करवाई. दंगे के मृतक आश्रित को पहले 2500 और अब 5000 पेंशन राशि देने का काम किया और दंगा पीड़ितों के मकानों की क्षतिपूर्ति की गई. 

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए लोग बात करते हैं और वोट लेते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं करता है. इस तरह से उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भागलपुर का दंगा पीड़ितों के लिए लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में कोई मदद नहीं की गई, लेकिन उनकी सरकार ने पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने का ही नहीं बल्कि आरोपियों को सजा भी दिलाने का काम करके दिखाया है. नीतीश कुमार यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी लालू-राबड़ी से ज्यादा मुसलमानों के हितों का ख्याल रखते हैं. 

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नीतीश कुमार ने इस बार के चुनाव में पहली बार भागलपुर दंगा का जिक्र नहीं किया बल्कि तीसरी बार उन्होंने अपनी रैली में यह बात कही है. पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी कहते हैं कि नीतीश कुमार का दोबारा से बीजेपी के साथ जाना बिहार के मुस्लिमों को रास नहीं आ रहा है. इसीलिए मुस्लिम समुदाय को साधने के लिए बार-बार भागलपुर दंगे का जिक्र करके यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो मुस्लिमों के कितने बड़े हमदर्द हैं, लेकिन बिहार का मुस्लिम इस बात को समझ रहा है कि न तो पहले वाली बीजेपी है और न ही पहले वाले नीतीश कुमार हैं.  

वहीं, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार शहाब तनवीर कहते हैं कि बिहार में कांग्रेस के शासनकाल में 1989 में भागलपुर दंगा हुआ था. इस दंगे में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1000 लोग मारे गए थे. 15 साल तक लालू यादव और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन भागलपुर दंगे को लेकर कोई कदम नहीं उठाया. वह कहते हैं कि दंगे के आरोपियों की फेहरिस्त में काफी संख्या में यादव समुदाय के लोग शामिल थे, जिसके चलते लालू यादव ने इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर रखा था. ऐसे में नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही भागलपुर दंगे की जांच के लिए आयोग का गठन किया. 

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नीतीश कुमार ने फरवरी, 2006 में सेवानिवृत्त न्यायाधीश एनएन सिंह की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था. आयोग ने कई अधिकारियों को इसके लिए जवाबदेह ठहराते हुए दंगा पीड़ितों की सहायता और उनके पुनर्वास पर जोर दिया था. आयोग ने सुझाव दिया कि सरकार उन दंगा पीड़ितों को आर्थिक और कानूनी मदद दे, जो दबाव में बेची गई अपनी जमीन-जायदाद वापस पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहते हैं. 

शहाब तनवीर कहते हैं कि आयोग की तमाम सिफारिशों को नीतीश कुमार ने स्वीकार किया था. वह कहते हैं कि नीतीश कुमार भागलपुर दंगे का जिक्र इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि आरजेडी इस मुद्दे पर बोलने की हैसियत में नहीं है. आरजेडी और कांग्रेस एक साथ खड़ी है. भागलपुर का दंगा बिहार के बुजुर्गों मुसलमानों के दिमाग में आज भी है, जिसके खातिर नीतीश कुमार बार-बार याद दिला रहे हैं कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी मुस्लिम के हक में काम करने में पीछे नहीं हैं. नीतीश कुमार 2015 में महागठबंधन का हिस्सा थे तो इस बात का जिक्र तक नहीं किया था. इसी कड़ी में उन्होंने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में भी उतारकर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है. 

 

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