रूस की राजधानी मॉस्को के क्रेमलिन में आजतक की मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप और इंडिया टुडे की फॉरेन अफेयर्स एडिटर गीता मोहन को दिए वर्ल्ड एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में डिफेंस सेक्टर पर बातचीत की. उन्होंने बताया कि हम सिर्फ हथियार नहीं, तकनीक और विश्वास साझा करते हैं.
गीता मोहन - भारत और रूस के बीच एक दूसरा अहम मुद्दा परमाणु सहयोग को लेकर है. भारत को अब तक रूस से इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा सहयोग मिला है. क्या हम इस बार किसी बड़े परमाणु समझौते की अपेक्षा कर सकते हैं?
व्लादिमीर पुतिन- हां, इसे लेकर हम जरूर घोषणा करने वाले हैं. ये सही है कि इस क्षेत्र में हम सबसे बड़े हितधारकों में से एक हैं. बल्कि हितधारक नहीं, हम परमाणु उर्जा प्लांट के क्षेत्र में आधुनिक और भरोसेमंद उपकरणों के दुनिया के सबसे बड़े निर्माता हैं.
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एक रूसी कंपनी ही इस क्षेत्र में दुनिया की सबसे अग्रणी कंपनी है. इस कंपनी अब तक विदेशों में 22 न्यूक्लियर रिएक्टर्स बना चुकी है. और ये सभी बेहद उपयोगी साबित हुए हैं. कोई शक नहीं कि रूस दुनिया भर में छोटे न्यूक्लियर प्लांट्स बनाने में महारथ रखता है. इनमें से कई रूस में पहले ही इस्तेमाल में हैं.
हम इन्हें जमीन, समुद्र या फिर पानी की सतह पर इस्तेमाल करने के विकल्प भी दे सकते हैं. इस तरह से इन्हें ऐसे क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है जहां बड़े पावर प्लांट बनाने का विकल्प नहीं है. या फिर जहां पहुंचना मुश्किल है.
अंजना ओम कश्यप- आपसे मेरा अगला सवाल रक्षा के क्षेत्र को लेकर है. भारत रूस में बने हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार है. इस क्षेत्र में रुस से भारत की कुल खरीद लगभग 38 फीसदी है. ऐसे में जब भारत अमेरिका की ओर से प्रतिबंधों का सामना कर रहा है तो इन बदली हुई परिस्थितियों में रूस भारत का साथ किस रूप में देगा?
व्लादिमीर पुतिन- मैं समझता हूं कि भारत से आज दुनिया का कोई भी देश वैसे बात नहीं कर सकता जैसे आज से 77 साल पहले किया करता था. भारत आज एक शक्तिशाली देश है. वो पहले की तरह ब्रिटिश शासन के अधीन नहीं है. ये बात सभी को समझनी होगी.
खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत अब विदेशी दबाव में नहीं आने वाला. भारत के लोग गर्व कर सकते हैं कि उनका प्रधानमंत्री किसी के दबाव में काम नहीं करता. साथ ही वो किसी के साथ टकराव का रास्ता भी नहीं अपनाते. दरअसल हम किसी के साथ भी टकराव नहीं चाहते. केवल अपने वैध हितों की रक्षा चाहते हैं.
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हमारा 90 फीसदी से ज्यादा लेनदेन हमारी राष्ट्रीय मुद्रा में होता है. हालांकि बिचौलियों को लेकर थोड़ी समस्या जरूर आती है. पर इसके लिए हम साझा व्यवस्था बना सकते हैं, जहां रूस और भारत के बैंक बिना किसी रुकावट आपस में लेनदेन कर सकें. हम इस पर लगातार काम कर रहे हैं. एक बार ये व्यवस्था अमल में आ जाए तो व्यापार को लेकर बाहरी दबाव से जुड़ी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी.
अंजना ओम कश्यप- ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रूस से मिले हथियारों के बल पर भारत ने जंग में जबरदस्त जीत हासिल की और इसीलिए आज हम आपसे जानना चाहते हैं कि भारत को मिलने वाले पांच S-400 एयर डिफेंस सिस्टम रूस कब तक दे देगा. दूसरा, S-500 की डिलिवरी कब तक अपेक्षित है. और तीसरा सवाल कि पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान Su-57 भारत को कब तक मिल पाएंगे?
व्लादिमीर पुतिन- आप तो इस फील्ड की एक्सपर्ट लगती हैं. मुझे लगा जैसे मैं रक्षा सौदे से जुड़ी किसी बैठक में मौजूद हूं. पर मैं यहां कहना चाहूंगा कि भारत हमारे सबसे भरोसेमंद साझेदारों में से एक है. हम सिर्फ भारत को अपने हथियार बेच नहीं रहे हैं. और भारत इन्हें केवल खरीद नहीं रहा है.
हमारे बीच ये संबंध इस सबसे ऊपर है. हमें ये आपसी सहयोग अच्छा लगता है. उतना ही जितना भारत को. और हम केवल हथियार ही नहीं बेच रहे बल्कि टेक्नोलॉजी भी साझा कर रहे हैं. रक्षा के क्षेत्र में ऐसा आमतौर पर नहीं होता. क्योंकि इसके लिए दो देशों के बीच अटूट विश्वास की जरूरत होती है. पर हमारा सहयोग यहीं तक सीमित नहीं है.
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हम पानी के जहाजों से लेकर, मिसाइल और हवाई जहाज बनाने का काम साझा रूप से कर रहे हैं. आपने Su- 57 की बात की. पर भारत और भी कई तरह के रूसी जंगी जहाजों का इस्तेमाल करता है. साथ ही टी-90 टैंक जिन्हें भारत खुद बना रहा है. ये बेहतरीन टैंक हैं. और ब्रह्मोस मिसाइल भी. जिन्हें भारत रूस के साथ मिल कर मेक इन इंडिया मिशन के तहत बना रहा है. इसमें कलाश्निकोव रायफल भी शामिल हैं.
हालांकि यहां हम उन्नत टेक्नोलॉजी की बात कर रहे हैं. और इसीलिए युद्ध में आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल को देखते हुए उनका महत्व कहीं ज्यादा बढ़ गया है. और अब तो भारत के रक्षा विशेषज्ञ भी रूसी सहयोग से इन बातों को अच्छी तरह से समझते हैं कि टेक्नोलॉजी और हथियारों का अलग-अलग परिस्थितियों में कैसे बेहतर इस्तेमाल किया जाए.
अंजना ओम कश्यप / गीता मोहन