भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बड़ा कदम उठने वाला है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के 4-5 दिसंबर के भारत दौरे के दौरान रूस के रोसाटॉम के साथ छोटे मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर (SMR) की डील पर मुहर लग सकती है. यह डील न सिर्फ भारत को साफ और सस्ती बिजली देगी.
एक SMR पूरा शहर रोशन करने में सक्षम होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत की नेट जीरो लक्ष्य (2070) तेजी से पूरा होगा.
पुतिन का यह दौरा सिर्फ रक्षा (Su-57, S-400) तक सीमित नहीं, बल्कि ऊर्जा सहयोग का बड़ा मंच बनेगा. क्रेमलिन के स्पोक्सपर्सन दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि हम छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों पर प्रस्ताव ला रहे हैं. रूस के पास छोटे और लचीले न्यूक्लियर रिएक्टरों की महत्वपूर्ण तकनीक है. रोसाटॉम के सीईओ एलेक्सी लिकाचेव पुतिन के साथ दिल्ली आएंगे, जहां कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट के विस्तार के साथ SMR पर फोकस होगा.
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SMR का प्लान: शुरुआत में 5-10 रिएक्टर रूस से आएंगे, फिर भारत में लोकल प्रोडक्शन होगा. प्रत्येक रिएक्टर 50-300 मेगावाट (एमडब्ल्यूई) बिजली पैदा करेगा. कुल लागत: 20,000 करोड़ रुपये का न्यूक्लियर एनर्जी मिशन, जिसमें भारत के 'छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर' प्रोजेक्ट को बूस्ट मिलेगा. 2033 तक 5 भारतीय SMR चालू होंगे.
बैकग्राउंड: भारत की बिजली मांग 2025 में 1500 बिलियन यूनिट है, जो 2030 तक दोगुनी हो जाएगी. कोयला पर निर्भरता कम करने के लिए एसएमआर जरूरी. रूस पहले से कुडनकुलम में 6 बड़े रिएक्टर (1,000 एमडब्ल्यू प्रत्येक) बना रहा है, अब छोटे वर्जन पर शिफ्ट होना है. यह डील टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (टीओटी) के साथ होगी, ताकि भारत खुद बना सके.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने बजट 2025 में इस मिशन की घोषणा की, जो रूस के साथ मिलकर भारत को न्यूक्लियर एक्सपोर्ट हब बना सकता है.
SMR पारंपरिक बड़े न्यूक्लियर रिएक्टरों का छोटा और सुरक्षित वर्जन हैं. ये फैक्ट्री में बनते हैं. ट्रक से ले जाए जाते हैं. साइट पर जोड़े जाते हैं. एक एसएमआर 300 MWe तक बिजली पैदा करता है, जो एक बड़े रिएक्टर (1,000 MWe) का एक-तिहाई है.
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काम करने का तरीका: न्यूक्लियर फिशन से हीट पैदा होती है. यूरेनियम या थोरियम ईंधन परमाणु विखंडन से गर्मी बनाता है, जो पानी को भाप में बदलती है. भाप टर्बाइन घुमाती है, जो जनरेटर से बिजली पैदा करता है. SMR में लाइट वॉटर, लिक्विड मेटल या मोल्टन सॉल्ट कूलेंट यूज होता है. ये सीलबंद होते हैं, इसलिए ईंधन 30 साल तक चले बिना रिफ्यूलिंग.
पावर आउटपुट: एक 300 एमडब्ल्यूई SMR रोज 7.2 मिलियन किलोवाट-घंटे (केवीडब्ल्यूएच) बिजली बनाता है. एक छोटा शहर (जैसे 2-3 लाख आबादी वाला) को रोशन करने के लिए 200-500 एमडब्ल्यूई काफी है. कई SMR जोड़कर बड़े शहर (जैसे दिल्ली के एक हिस्से) की बिजली मिल सकती है.
सुरक्षा: छोटा साइज से हीट कम, मेल्टडाउन रिस्क कम. पैसिव कूलिंग सिस्टम से बिना बिजली के भी ठंडा रहता है. वेस्ट कम और रिसाइकलिंग आसान. ये रिएक्टर कोयले या गैस से साफ बिजली देते हैं, कार्बन एमिशन जीरो.
SMR पारंपरिक रिएक्टरों से अलग हैं, जो 10-15 साल लगाते हैं. एसएमआर 2-3 साल में बन जाते हैं. मुख्य फायदे...
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भारत में SMR क्रांति लाएंगे. बजट 2025 के 20000 करोड़ मिशन से 2033 तक 5 SMR चालू हो जाएगा. रूस से टेक ट्रांसफर से भारत अपना 'भारत SMR' बनाएगा.
यह डील भारत-रूस दोस्ती को नई ऊंचाई देगी. कुडनकुलम के बाद SMR से भारत न्यूक्लियर पावरहाउस बनेगा. पुतिन-मोदी मीटिंग पर नजरें टिकी हैं. क्या होगा फाइनल? जल्द पता चलेगा.
ऋचीक मिश्रा