
भारत के किसान खेती को लेकर काफी जागरूक हो गए हैं. वह पारंपरिक खेती छोड़ अब नई-नई और उन्नत किस्म के फसलों की खेती कर रहे हैं. इसी में से एक फसल है स्ट्राबेरी, जिसे मुनाफे की फसल की संज्ञा दी जाती है. पहले ये फसल केवल पहाड़ी इलाकों के ग्रामीण करते थे, लेकिन आजकल उत्तर प्रदेश और हरियाणा की विपरीत परिस्थितियों में भी पॉलीहाउस तकनीक के माध्यम से इसकी खेती की जा रही है.
एक एकड़ में 12 से 15 लाख मुनाफा
हिमांचल प्रदेश के सिरमौर जिले के रहने वाले दीपक शांडिल और अशोक कमल 5 से 6 एकड़ में स्ट्राबेरी की खेती करते हैं. दीपक शांडिल कहते हैं कि एक एकड़ में सब कुछ मिलाकर पौधे की कीमत से लेकर मरल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों का उपयोग कर 2 से 3 लाख की लागत आ जाती है, जिसके बाद उन्हें लगभग 12 से 15 लाख तक का मुनाफा हो जाता है.

मल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन तकनीक
उद्यानिकी और कृषि विभाग की तरफ से इसके लिए अनुदान भी मिलता है. जिसमे प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन फुवारा सिंचाई आदि यंत्र पर 40 से 50% तक अनुदान भी मिल जाता है. दीपक आगे बताते हैं कि मल्चिंग तकनीक का इस फसल की खेती में खास महत्व है. दरअसल खेतों में फसल लगाते समय एक पॉलीथीन लगाई जाती है, जिससे इसके अंदर की नमी बनी रहे. दूसरा ड्रिप इरिगेशन की मदद से आप जितनी सिंचाई की आवश्यकता है उतनी कर सकने में सक्षम होते हैं, इससे पहाड़ी क्षेत्रों पर पानी की बर्बादी भी कम होती है.

स्ट्राबेरी की फसल के लिए कैसी मिट्टी की जरूरत
इस फसल की खेती के लिए कोई मिट्टी तय नहीं है. फिर भी अच्छी उपज लेने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है. इसकी खेती के लिए ph 5.0 से 6.5 तक मान वाली मिट्टी में फसल उगाई जाती है. इसकी खेती के लिए 25 से 35 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है. तापमान बढ़ने पर पौधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है.
मदर प्लांट से तैयार करते हैं नर्सरी
अन्य फसलों की तरह इसे भी लगाने का एक तरीका होता है. अशोक कमल बताते हैं कि इसकी फसल करने से पहले इसकी नर्सरी तैयार करनी पड़ती है. इसके लिए वे बताते हैं कि हमें कैलिफॉर्निया से इसका मदर प्लांट मंगाते हैं फिर उससे बेबी प्लांट तैयार करते हैं. ये करना हम फरवरी से शुरू कर देते हैं और जून-जूलाई तक इसकी नर्सरी पूरी तरह तैयार हो जाती है. जिसके बाद सितंबर के प्रथम सप्ताह से इसे हम खेतों में लगाना शुरू कर देते हैं. 40 दिन में इसकी फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है, जिसके बाद इसकी तुड़ाई शुरू कर दी जाती है.

कहां उपलब्ध है बाजार
स्ट्राबेरी की फसल से जैम, जूस, आइसक्रीम, मिल्क-शेक, टॉफियां बनाने के काम आती है. साथ ही विटामिन C की मात्रा अधिक होने की वजह से लोग इस फल का भी लोग सेवन करते हैं. इसके अलावा दुनिया भर में ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में इसकी एक अहम् भूमिका होती है. ज्यादातर किसान मुनाफा इतना बेहतर नहीं कमा पाते हैं क्योंकि उनको इस फल को किस बाजार में और किस भाव में बेचना है, ये मालूम नहीं होता है. हालांकि अब किसानों में जागरूकता बढ़ रही है और साथ ही सरकार भी इसके बाजार को बढ़ावा देने का काम कर रही है. जिससे किसानों की परेशानियां कम हो रही हैं, मुनाफा भी बढ़ रहा है.