Buffalo for Dairy Farming: खेती के बाद गांवों में आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत पशुपालन ही है. ज्यादातर किसान गाय या भैंस पालन को ही प्राथमिकता देते हैं. साथ ही पशुपालन के ही सहारे अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और बढ़िया मुनाफा कमाते हैं.
गांवों में भैंस पालन को सबसे ज्यादा तरजीह दिया जाता है. दरअसल, ज्यादातर भैंसे कम देखभाल में अधिक दूध का उत्पादन करती हैं. यही वजह है कि व्यवसाय के लिहाज से भैंसों का पालन अन्य पशुओं के मुकाबले काफी बेहतर माना जाता है.
देश में भैंसों की 26 ऐसी नस्लें हैं, जिनका पान दूध व्यवपार के लिए किया जाता है. इनमें से चिल्का, मेहसाना, सुर्ती और तोड़ा जैसी भैंसें पशुपालकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. इन सभी भैंसों का दूध उत्पादन अन्य नस्ल की भैंसों की तुलना में अधिक होता है.
सुर्ती भैंस
इस भैंस का रंग रंग, सिल्वर सलेटी और काला भी होता है. नुकीला धड़ और लंबे सिर से आप इसे पहचान सकते हैं. सुर्ती नस्ल के भैंस के दूध में वसा की 8 से 12 फीसदी मात्रा पाई जाती है. प्रति ब्यांत में सुर्ती भैंस से 900 से 1300 लीटर दूध उत्पादन होता है.
मेहसाना भैंस
काले-भूरे रंग की मेहसान भैंस प्रति ब्यांत में 1200 से 1500 लीटर तक दूध उत्पादन ले सकते हैं. इसकी पहचान आप दरांती आकार के घुमावदार सींगों से कर सकते हैं.
तोड़ा भैंस
तमिलनाडु के ज्यादातर इलाकों में इसी भैंस का दूध मिलता है. प्रति ब्यांत में तोड़ा भैंस के दूध उत्पादन क्षमता 500 से 600 लीटर होती है. छोटे और सीमांत किसानों के लिए इस भैंस का पालन काफी फायदेमंद हो सकता है.
चिल्का भैंस देश के कई इलाकों में इसे देसी भैंस भी कहते हैं. यह भैंस अपने मध्यम आकार और काले-भूरे रंग से पहचानी जाती है. चिल्का भैंस से प्रति ब्याज में 500 से 600 लीटर दूध उत्पादन करती है.