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पाकिस्तान के लिए टेंशन, US-चीन की भी रहेगी नजर... तालिबान के मंत्री के दिल्ली दौरे की इतनी अहमियत क्यों?

तालिबान के मंत्री का भारत दौरा अफगानिस्तान के पाकिस्तान-चीन और अमेरिकी त्रिकोण से निकलने की छटपटाहट है. अफगानिस्तान दक्षिण एशिया में सक्रिय भूमिका चाहता है. हालांकि बगराम एयरबेस को लेकर ट्रंप की नई डिमांड ने तालिबानी नेतृत्व को संकट में डाल दिया है. 6 दिन की भारत यात्रा पर आने से ठीक पहले इसी सवाल पर चर्चा के लिए अमीर खान मुत्ताकी रूस में थे.

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अमीर खान मुत्ताकी एस जयशंकर और अजित डोभाल से मिलेंगे  (Photo: AP)
अमीर खान मुत्ताकी एस जयशंकर और अजित डोभाल से मिलेंगे (Photo: AP)

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी 9 अक्टूबर 2025 को दिल्ली पहुंच गए हैं. मुत्ताकी पूरे 6 दिनों तक भारत में रहेंगे. अमीर खान मुत्ताकी का ये भारत दौरा इसलिए खास है क्योंकि भारत ने अब तक अफगानिस्तान तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है. बावजूद इसके मुत्ताकी भारत दौरे पर आए हैं. मुत्ताकी के इस दौरे को भारत-अफगानिस्तान संबंधों में एक नया अध्याय माना जा रहा है.

अमीर खान के इस दौरे पर पाकिस्तान के अलावा चीन और अमेरिका भी टकटकी लगाए बैठे हुए हैं. क्योंकि भारत और अफगानिस्तान के बीच संबंधों में किसी तरह का भी रिअलाइनमेंट चीन और अमेरिका के हितों को अफगानिस्तान में प्रभावित कर सकता है. 

पाकिस्तान को तालिबानी मंत्री के दौरे से टेंशन क्यों?

भारत-अफगानिस्तान संबंधों में इस्लामाबाद अहम फैक्टर होता है. पाकिस्तान अफगानिस्तान से अपने संबंधों को परिभाषित करते हुए मजहब और नजदीकी पड़ोसी का वास्ता देता है. पाकिस्तान को लगता है कि इस्लामिक मुल्क होने की वजह से तालिबान उसका सहज ही बिरादर है. इस्लामाबाद ने तालिबान को अपना सहयोगी माना है और काबुल को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है. 

तालिबान सरकार ने सत्ता आने के बाद खुद को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहने की कोशिश की है और अब भारत के साथ आर्थिक, सुरक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर सहयोग को प्राथमिकता दे रही है. इससे पाकिस्तान का वह पारंपरिक प्रभाव कम हो सकता है, जो तालिबान शासन में उसके आंतरिक और सीमा सुरक्षा हितों के लिए जरूरी था. 

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मुत्ताकी का दिल्ली झुकाव पाकिस्तान को अलग-थलग महसूस करा सकता है, खासकर जब UNSC कमेटी की कुर्सी पाकिस्तान के पास है. विशेषज्ञ कहते हैं कि यह पाकिस्तान की क्षेत्रीय प्रभावशालीता को चुनौती देगा. 

रक्षा एक्सपर्ट ब्रह्म चेलानी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, "तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की नई दिल्ली यात्रा-जो संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों से विशेष छूट के कारण संभव हुई है. भारत-तालिबान संबंधों में एक सतर्क रिसेट का प्रतीक है, जहां दोनों पक्ष अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए व्यावहारिक जुड़ाव को प्राथमिकता दे रहे हैं.  यह यात्रा अफगानिस्तान की रिजनल पावर डायनामिक्स में संभावित बदलाव का संकेत देती है, क्योंकि भारत और तालिबान चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं, और काबुल अमेरिका को बगराम एयरबेस पर पुनः कब्जा करने की अनुमति देने के ट्रंप के दबाव का विरोध कर रहा है."

उन्होंने कहा कि यह घटनाक्रम तालिबान के जनक पाकिस्तान के लिए एक झटका है, और मुत्ताकी की मेजबानी तालिबान शासन को वास्तविक मान्यता देने की दिशा में भारत का एक महत्वपूर्ण कदम है. 

बगराम एयरबेस का मसला

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अफगानिस्तान स्थित अति महत्वपूर्ण बगराम एयरबेस की मांग करके दक्षिण एशिया में हलचल मचा दी है. अफगानिस्तान ने इस एयरबेस को अमेरिका को देने से साफ साफ इनकार किया है. ये एक ऐसा मसला है जिस पर पाकिस्तान अमेरिका के खिलाफ है. क्योंकि पाकिस्तान भी नहीं चाहता है कि इस एयरबेस के बहाने अमेरिका उसकी गर्दन पर सवार हो जाए और आसानी से उसकी निगहबानी करे. 

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इसलिए पाकिस्तान ने भी अमेरिका की इस मांग से आपत्ति जताई है. 

दिल्ली पहुंचने से पहले अमीर खान मुत्ताकी रूस में थे. रूस में उन्होंने विदेश मंत्री से मुलाकात की और माना जाता है कि दोनों नेताओं के बीच बगराम एयरबेस का मुद्दा उठा. 

डॉन की रिपोर्ट के अनुसार बगराम के मुद्दे पर रूस ने अफगानिस्तान को समर्थन दिया है. और रूस भी नहीं चाहता है कि ये एयरबेस अमेरिका को मिले. रूस ही एकमात्र देश है जिसने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता दी है.

चीन की चिंता

अमेरिका और चीन दोनों ही तालिबान विदेश मंत्री मुत्ताकी की भारत यात्रा को क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन और सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से देख रहे हैं. 
अमेरिका द्वारा बगराम एयरबेस की डिमांड ने चीन की भी टेंशन बढ़ा दी है. अमेरिका चाहता है कि अफगानिस्तान चीन के सीधे प्रभाव से दूर रहे और भारत जैसे क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ भी संतुलन बना रहे.

जबकि चीन की चाहत ठीक इसके विपरीत है. अब चीन ये जानना चाहेगा कि क्या बगराम एयरबेस के मुद्दे पर भारत कोई प्रतिक्रिया देता है. 

चीन को मुत्ताकी इस यात्रा को चुनौती की तरह देखता है. क्योंकि भारत-तालिबान संबंध गहरे होने से उसकी 'सीपैक' परियोजना और अफगानिस्तान में निवेश पर दबाव आ सकता है. अगर भारत अफगान नीति में मजबूत भूमिका निभाता है, तो चीन को अपने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट्स (CPEC) पर भी रणनीतिक खतरा महसूस होगा.

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जयशंकर और डोभाल से मुलाकात

माना जा रहा है कि मुत्ताकी भारत के विदेश मंत्रालय के साथ इस मुद्दे पर भी चर्चा कर सकते हैं. मुत्ताकी भारत में विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात करेंगे. इस दौरान द्विपक्षीय संबंध, अफगानिस्तान में भारत का निवेश, वीजा नियमों में आसानी जैसे मुद्दों पप चर्चा हो सकती है,

भारत में आज सुबह अमीर खान मुत्ताकी का स्वागत करते हुए भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने अमीर खान अमीर खान मुत्ताकी के लिए अफगानिस्तान के विदेश मंत्री शब्द का प्रयोग किया. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमीर ख़ान मुत्ताक़ी का नई दिल्ली आगमन पर हार्दिक स्वागत है. हम उनके साथ द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए उत्सुक हैं.

देवबंद मदरसा और ताजमहल का दौरा करेंगे मुत्ताकी

अमीर खान मुत्ताकी भारत में पूरे 6 दिन रहेंगे. इस दौरान वह दारुल उलूम देवबंद मदरसा और ताजमहल का दौरा करेंगे. 

अफ़ग़ान विदेश मंत्री पिछले महीने नई दिल्ली आने वाले थे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के तहत उन पर लगे यात्रा प्रतिबंध के कारण इसे रद्द कर दिया गया था. बाद में भारत की पहल पर यूएनएससी समिति ने 30 सितंबर को मुत्ताकी को 9 से 16 अक्टूबर तक नई दिल्ली की यात्रा की अनुमति देते हुए यात्रा प्रतिबंध में अस्थायी छूट को मंजूरी दे दी है. 

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संबंधों में नया चैप्टर 

मुत्ताकी की भारत यात्रा से काबुल में तालिबान के साथ भारत के संबंधों में एक नया आयाम जुड़ने की उम्मीद है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 मई को मुत्ताकी से फोन पर बातचीत की थी. 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यह नई दिल्ली और काबुल के बीच उच्चतम स्तर का संपर्क था. इससे पहले जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिस्री और मुत्ताकी के बीच बातचीत के बाद तालिबान शासन ने भारत को एक "महत्वपूर्ण" क्षेत्रीय और आर्थिक शक्ति बताया था.

भारत ने अभी तक तालिबान को मान्यता नहीं दी है और काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन की वकालत कर रहा है.

नई दिल्ली इस बात पर भी ज़ोर दे रहा है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी देश के ख़िलाफ़ आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए. 
 

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