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काबुल तक जिनपिंग के 'ड्रीम प्रोजेक्ट' CPEC का विस्तार... चीन, अफगान और PAK के विदेश मंत्रियों के बीच क्या हुई बात?

भारत सीपीईसी का मुखर विरोधी रहा है क्योंकि यह कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है. नई दिल्ली चीन की बेल्ट एंड रोड (BRI) पहल के भी खिलाफ है क्योंकि इसी परियोजना में सीपीईसी शामिल है.

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काबुल में चीन, अफगान और पाक के बीच त्रिपक्षीय वार्ता (Photo: X/DPM_PK)
काबुल में चीन, अफगान और पाक के बीच त्रिपक्षीय वार्ता (Photo: X/DPM_PK)

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने बुधवार को चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की मेजबानी की. तीनों विदेश मंत्रियों के बीच यहां छठा त्रिपक्षीय सम्मेलन हुआ और CPEC, आतंकवाद समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई. चीन के विदेश मंत्री वांग यी सीधे नई दिल्ली से काबुल पहुंचे थे, जबकि पाकिस्तान की ओर से उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने इस बैठक में हिस्सा लिया.

काबुल तक CPEC का विस्तार

इस त्रिपक्षीय बैठक में चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का काबुल तक विस्तार और कई अलग-अलग क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार, चीनी विदेश मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने काबुल में छठे त्रिपक्षीय विदेश मंत्रियों की वार्ता में हिस्सा लिया, जिसमें राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया. 

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अरबों डॉलर की लागत वाले सीपीईसी को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है. इसके विस्तार पर समझौता ऐसे वक्त में हुआ है, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की SCO शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इस महीने के आखिर में चीन की यात्रा पर जाएंगे और इस दौरान बीजिंग और इस्लामाबाद मिलकर परियोजना के दूसरे फेज की शुरुआत कर सकते हैं.

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आतंकवाद को लेकर भी चर्चा

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि तीनों पक्ष 'आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयासों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.' साथ ही बयान में कहा गया, 'व्यापार, क्षेत्रीय विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति और ड्रग्स तस्करी से निपटने के साथ-साथ सीपीईसी का अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तार करने में पर तीनों देशों ने अपनी प्रतिबद्धता जताई है.' साल 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यह चीनी विदेश मंत्री की पहली अफगानिस्तान यात्रा है, जबकि अप्रैल के बाद से इशाक डार की काबुल की यह तीसरी यात्रा है.

काबुल में चीन, पाक, अफगानिस्तान की त्रिपक्षीय वार्ता (Photo: X/DPM_PK)

रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच तनाव कम करने में भूमिका निभाई है. विदेश कार्यालय के मुताबिक, अपने अफगान समकक्ष के साथ द्विपक्षीय बैठक में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने दावा किया कि अफगानिस्तान से ऑपरेट आतंकवादी संगठनों ने उनके देश में हमले बढ़ा दिए हैं.

हैरानी की बात यह है कि पूरी दुनिया में आतंकवाद एक्सपोर्ट करने वाला पाकिस्तान खुद को इससे पीड़ित बता रहा है और अपने देशों में हुई वारदातों के लिए अफगानिस्तान को जिम्मेदार ठहरा रहा है. हालांकि भारत पर भी पाकिस्तान ऐसे ही आरोप लगाता रहा है.

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मई में बीजिंग में हुई पांचवीं त्रिपक्षीय बैठक में, तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काबुल तक सीपीईसी का विस्तार करने पर सहमति जताई थी. भारत सीपीईसी का मुखर विरोधी रहा है क्योंकि यह कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है. नई दिल्ली चीन की बेल्ट एंड रोड (BRI) पहल के भी खिलाफ है क्योंकि इस प्रोजेक्ट में ही सीपीईसी शामिल है. भारत का साफ कहना है कि पीओके में किसी भी तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट देश की संप्रभुता के खिलाफ है.

क्या है CPEC प्रोजेक्ट?

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी CPEC प्रोजेक्ट दोनों देशों के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना है. साल 2015 में CPEC की घोषणा हुई थी, जिसके तहत करीब 2442 किमी लंबी सड़क जो चीन के शिंजियांग शहर को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने का प्रस्ताव है. सीपीईसी के तहत चीन ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है और पानी की तरह अरबों डॉलर बहा रहा है. इस पोर्ट पर चीन 46 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है, क्योंकि यह कॉरिडोर का सबसे अहम हिस्सा है. 

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इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन खाड़ी देशों से आने वाले तेल और गैस को बंदरगाह, रेलवे और सड़क के रास्ते कम समय और कम खर्च में अपने देश तक पहुंचाना चाहता है. लेकिन बलूचिस्तान के लोग प्रोजेक्ट को अपने संसाधनों पर कब्जे के रूप में देखते हैं. यही वजह है कि लंबे समय इस इलाके में CPEC का विरोध हो रहा है और बलूच लोगों को अपने संसाधन छिनने का डर है. 

यह प्रोजेक्ट PoK और अक्साई चीन जैसे विवादित इलाकों से होकर गुजरता है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का भारत हमेशा से  विरोध करता रहा है. साथ ही प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान ने अपना ग्वादर बंदरगाह चीन को सौंप दिया है, ऐसे में भारत की चिंता है कि कुछ वर्षों बाद ग्वादर पोर्ट चीनी सैनिकों का ठिकाना बन सकता है.

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