भारत में जन्मे इंजीनियर नोशिर शेरियारजी गोवादिया, जिन्होंने अमेरिका के बी-2 स्पिरिट बॉम्बर्स के स्टेल्थ प्रोपल्शन सिस्टम के विकास में अहम भूमिका निभाई थी, उन्हें बाद में अमेरिका की खुफिया सैन्य जानकारी चीन को लीक करने के मामले में 32 साल की सजा सुनाई गई थी.
अमेरिका ने बी-2 स्पिरिट बॉम्बर्स का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ 'ऑपरेशन मिडनाइट हैमर' में किया था. मुंबई में जन्मे गोवादिया 1960 के दशक में भारत से अमेरिका गए थे. चीन सरकार के अलावा गोवादिया ने जर्मनी, इजरायल और स्विट्जरलैंड के लोगों को भी गोपनीय रक्षा डिजाइन से जुड़ी जानकारियां बेची थीं.
चीन के लॉन्ग-रेंज स्टेल्थ बॉम्बर H-20 से कनेक्शन
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के लॉन्ग-रेंज स्टेल्थ बॉम्बर H-20 के विकास का भी सीधा कनेक्शन गोवादिया की ओर से दी गई जानकारियों से जोड़ा गया है. हालांकि चीनी अधिकारियों ने H-20 बॉम्बर की आधिकारिक घोषणा 2016 में की थी, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसे 2000 के दशक की शुरुआत में ही बना लिया गया था. उसी समय जब गोवादिया निजी सलाहकार के रूप में एक्टिव थे.
गोवादिया ने बी-2 बॉम्बर को दी हवा में गायब होने की शक्ति
गोवादिया नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन कॉरपोरेशन में डिजाइन इंजीनियर थे और उन्होंने बी-2 स्पिरिट बॉम्बर्स की रडार, इंफ्रारेड और विजुअल सिग्नेचर को कम करने वाली तकनीक विकसित करने में योगदान दिया था. इसमें विशेष एग्जॉस्ट डिजाइन और रडार वेव अवशोषित करने वाले मटेरियल शामिल थे.
उनकी तकनीकों के कारण ही बी-2 बॉम्बर को रडार पर पकड़ना बेहद मुश्किल हो गया था. इसकी रडार पर दृश्यता किसी उड़ते हुए फ्रिसबी (फेंकने वाले डिस्क) जैसी हो गई थी. उन्होंने अन्य कई प्रोपल्शन प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया.
2003 से 2005 के बीच की चीन की यात्रा
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, गोवादिया पर आरोप था कि उन्होंने 2003 से 2005 के बीच चीन की यात्रा की और वहां मिसाइल डिजाइन पर काम किया. खबरों के मुताबिक, गोवादिया को इसके बदले करीब 1.10 लाख डॉलर (लगभग 91 लाख रुपये) मिले थे, जिनसे उन्होंने हवाई स्थित माउई द्वीप पर अपने आलीशान घर का लोन चुकाया.
उनकी गिरफ्तारी 2005 में हुई और मुकदमा कई साल चला. 2010 में अमेरिकी एयरफोर्स की वेबसाइट के अनुसार, गोवादिया को कुल 17 में से 14 संघीय आरोपों में दोषी ठहराया गया, जिनमें जासूसी, आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट का उल्लंघन और अन्य गंभीर अपराध शामिल थे.
गद्दार या एयरोस्पेस इंजीनियर?
अभियोजन पक्ष का आरोप था कि गोवादिया की इस करतूत से अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान हुआ और चीन को ऐसी स्टेल्थ तकनीक मिल गई, जिससे वे अमेरिकी सैन्य क्षमता को चुनौती दे सके. वहीं, बचाव पक्ष का कहना था कि गोवादिया ने सिर्फ सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी साझा की और अमेरिकी सरकार ने अनावश्यक रूप से कई दस्तावेजों को गोपनीय घोषित कर दिया था. उन्होंने गोवादिया को गद्दार नहीं, बल्कि एक ऐसा इंजीनियर बताया जो एयरोस्पेस तकनीक को आगे बढ़ाना चाहता था, न कि अमेरिका के हितों को नुकसान पहुंचाना.
चीन में किया एरोनॉटिकल टेस्टिंग फैसिलिटी का दौरा
अमेरिकी वायुसेना की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, गोवादिया ने चीन यात्रा के दौरान एक एरोनॉटिकल टेस्टिंग फैसिलिटी (एयरक्राफ्ट टेस्टिंग सेंटर) का दौरा किया, जहां उन्होंने डिजाइन खामियां और तकनीकी कमियां बताईं. इसके अलावा उन्होंने मिसाइल एग्जॉस्ट सिस्टम और उसकी हीट सिग्नेचर (गर्मी पहचान) को लेकर प्रेजेंटेशन और ब्रीफिंग भी दीं.
जर्मनी और इजरायल को भी खुफिया जानकारी देने का आरोप
सबूतों से यह भी साबित हुआ कि गोवादिया ने स्विट्जरलैंड में एक विदेशी सरकारी अधिकारी को TH-98 यूरोकॉप्टर से संबंधित टॉप सीक्रेट जानकारी दी थी और जर्मनी और इजरायल की कंपनियों को भी गोपनीय जानकारी भेजी थी.
गोवादिया ने करीब दो दशक (1968 से 1986) तक नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन में काम किया. वह 25 जुलाई 1969 को अमेरिकी नागरिक बने थे और 1997 में उनकी सुरक्षा मंजूरी रद्द होने तक वह गोपनीय सरकारी परियोजनाओं पर काम करते रहे.