नोबेल शांति पुरस्कार जिसे शांति का तमगा माना जाता है, अक्सर ऐसा लगता है मानो जिओ-पालिटिक्स का अखाड़ा हो. वो अखाड़ा जहां योग्यता से ज्यादा युद्ध-विराम की सियासत और पश्चिमी पसंद का सिक्का चलता है. अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार यह पुरस्कार उन लोगों को मिलना चाहिए जो राष्ट्रों के बीच भाईचारा, युद्ध-विरोधी प्रयास या शांति की कोशिशों को बढ़ावा देकर एक बेहतर दुनिया के लिए कोशिश करते हैं. लेकिन कई बार इस पुरस्कार को ऐसे लोग ले उड़े जिनकी भूमिका शांति स्थापित करने में कम और हथियारों का बाजार बनाने में ज्यादा थी.
1973 में हेनरी किसिंजर को वियतनाम में "शांति" लाने के लिए ये ताज पहनाया गया था, जबकि इस देश पर बमबारी के उनके फैसले अभी भी इतिहास में गूंजते हैं. नोबेल शांति पुरस्कारों का चयन तो विवादों में रहा ही है, इससे ज्यादा विवाद तो इन पुरस्कारों के लिए इन शख्सियतों का नॉमिनेशन रहा है.
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ऐसे व्यक्ति नॉमिनेट किए गए जिन पर विश्व युद्धों को छेड़ने, नरसंहारों को करने का दोष है. आप यह जानकर हैरान हो सकते हैं कि तानाशाह एडोल्फ हिटलर, फासीवादी विचारधारा के पैरोकार बेनिटो मुसोलिनी और सोवियत रूस में भयानक नरसंहार करवाने वाला स्टालिन भी नोबेल शांति पुरस्कारों के लिए नॉमिनेट हो चुका है.
इसलिए नार्वे की नोबेल समिति, जो इस पुरस्कार के विजेताओं को चुनती है की "निष्पक्षता" पर सवाल उठते हैं. क्योंकि ये पुरस्कार बार-बार वैचारिक झुकाव और सियासी डील्स का शिकार बनता है.
गौरतलब है कि इस बार नोबेल पुरस्कार के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इजरायल और पाकिस्तान ने नॉमिनेट किया है. इन देशों का मानना है कि ट्रंप ने हालिया जंगों के दौरान पीसमेकर की भूमिका निभाई है.
आइए जानते हैं कि इतिहास में कौन-कौन सी विवादित शक्तियां नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हो चुकी हैं.
हिटलर
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से पहले जर्मन तानाशाह हिटलर अपने इरादे दुनिया को दिखा चुका था. 1938 में हिटलर ने ऑस्ट्रिया का विलय किया और म्यूनिख समझौते के तहत चेकोस्लोवाकिया के सुडेटेनलैंड पर कब्जा किया. यूं तो ये कदम कथित तौर पर "युद्ध टालने" के लिए थे, लेकिन वास्तव में यह यूरोप में नाजी विस्तारवाद का हिस्सा थे.
हिटलर को यूं तो कोई सीधे कुछ कह नहीं सकता था. इसलिए स्वीडेन के सांसद एरिक गॉटफ्रिड क्रिश्चियन ब्रांट ने अपना विरोध जताने का एक तरीका निकाला. वे एक कट्टर नाजी-विरोधी और समाजवादी थे. उन्होंने तत्कालीन यूरोपीय नेताओं की तुष्टिकरण नीति पर तंज कसने के लिए हिटलर का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट कर दिया. उन्होंने तर्क दिया कि अगर नाजी शासन को शांति का प्रतीक माना जा सकता है, तो यह पुरस्कार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है. उनका पत्र व्यंग्यपूर्ण था, जिसमें हिटलर को "शांति का दूत" कहकर मजाक उड़ाया गया.
गौरतलब है कि उस समय नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन की प्रक्रिया अपेक्षाकृत ढीली थी. सांसद, प्रोफेसर, और अन्य विशिष्ट लोग नामांकन कर सकते थे. ब्रांट ने इस खामी का इस्तेमाल दुनिया के सामने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए किया.
नामांकन के बाद तुरंत विवाद खड़ा हुआ. ब्रांट ने बाद में स्पष्ट किया कि यह एक व्यंग्य था और उनका मकसद नोबेल समिति को शर्मिंदगी में डालना था. इस नॉमिनेशन को तुरंत खारिज कर दिया गया. 1939 का पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था.
मुसोलिनी
सेकेंड वर्ल्ड वॉर में हिलटर का साथी रहा मुसोलिनी भी नोबेल पुरस्कारों के आभामंडल से नहीं बच सका. 1935 में मुसोलिनी के जर्मन और इतालवी समर्थकों ने मुसोलिनी का नाम नोबेल शांति पुरस्कारों के लिए भेजा.
1930 के दशक में मुसोलिनी की फासीवादी सरकार यूरोप में एक ताकतवर शक्ति के रूप में उभर रही थी. 1935 में इटली ने इथियोपिया पर हमला किया, जिसे मुसोलिनी ने "सभ्यता का मिशन" करार दिया. कुछ समर्थकों ने इसे औपनिवेशिक विस्तार और "शांति स्थापना" के रूप में प्रचारित किया. मुसोलिनी को नामांकित करने का प्रस्ताव जर्मन और इतालवी समर्थकों ने किया, जिनमें जर्मनी के प्रोफेसर और राजनेता शामिल थे.
उन्होंने तर्क दिया कि मुसोलिनी ने इटली में आर्थिक स्थिरता और "आंतरिक शांति" लाई थी, साथ ही यूरोप में फासीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देकर साम्यवाद का मुकाबला किया.
इस नामांकन ने व्यापक विवाद खड़ा किया, क्योंकि मुसोलिनी की आक्रामक नीतियां, खासकर इथियोपिया पर हमला शांति के सिद्धांतों के खिलाफ थीं. नोबेल समिति ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और उनका नाम खारिज कर दिया गया.
स्टालिन
दुनिया के क्रूरतम तानाशाहों में शुमार और लाखों की हत्या करवाने वाले स्टालिन के समर्थकों ने भी उसका नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए बढ़ा दिया था. सोवियत संघ के स्टालिन को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 1945 और 1948 में नामांकित किया गया था. यह नामांकन द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध की शुरुआती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में हुआ.
1945 में स्टालिन को नार्वे के सांसद हाल्वड लैंग ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था. उन्होंने तर्क दिया था कि स्टालिन ने नाज़ी जर्मनी के खिलाफ युद्ध में सोवियत संघ का नेतृत्व कर वैश्विक शांति में योगदान दिया. द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की जीत में सोवियत संघ की भूमिका को कुछ लोग "शांति स्थापना" के रूप में देख रहे थे.
1948 में स्टालिन का नामांकन चेकोस्लोवाकिया के सांसद व्लादिमीर क्लेमेंटिस ने किया जो कम्युनिस्ट प्रभाव में थे. उन्होंने स्टालिन की "युद्ध-विरोधी नीतियों" और साम्यवादी विचारधारा को बढ़ावा देने की प्रशंसा की. हालांकि ये नामांकन सोवियत प्रचार और शीत युद्ध की सियासत का हिस्सा थे.
स्टालिन का शासन लाखों लोगों के नरसंहार (गुलाग, होलोडोमोर) और दमनकारी नीतियों के लिए कुख्यात था. उस समय नोबेल नामांकन प्रक्रिया में कोई सख्त जांच नहीं थी, इससे विवादास्पद नाम भी पुरस्कार की रेस में शामिल हो जाते थे.
नोबेल कमेटी ने स्टालिन का नामांकन गंभीरता से नहीं लिया. 1945 का पुरस्कार कॉर्डेल हल और 1948 का पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया.
फीडेल कास्त्रो
क्यूबा के मार्क्सवादी नेता फीडेल कास्त्रो को 2001 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. नॉर्वे के सांसद हाल्गेयर लैंगेलैंड ने उनका नाम प्रस्तावित किया. उन्होंने यह तर्क दिया कि कास्त्रो ने क्यूबा में शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित कीं. ये अधिकार मानव कल्याण को बढ़ावा देती हैं. लैंगेलैंड ने तर्क देते हुए कहा, "वोटिंग का अधिकार या इन सुविधाओं में से क्या बेहतर है?"
बता दें कि कास्त्रो का शासन मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए कुख्यात था. इस वजह से ये नामांकन विवादास्पद हो गया. नोबेल कमेटी ने इस नामांकन को खारिज कर दिया.
व्लादिमीर पुतिन
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 2013, 2014, और 2020 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया. 2013 में रूस की इंटरनेशनल अकादमी ऑफ स्पिरिचुअल यूनिटी ने उन्हें सीरिया में रसायनिक हथियारों के उपयोग के खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए नामांकित किया. पुतिन ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को हथियार नष्ट करने के लिए राजी किया, जिसे "शांतिपूर्ण समाधान" माना गया. 2014 में यूक्रेन संकट के बावजूद इसी समूह ने उनके नामांकन को दोहराया. 2020 में रूसी लेखक सर्गेई कोमकोव ने उनके वैश्विक शांति प्रयासों का हवाला दिया.
हालांकि पुतिन की नीतियां जैसे कीमिया पर अधिग्रहण, यूक्रेन पर आक्रमण ने इस नॉमिनेशन को विवादास्पद बनाया.