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पाकिस्तान की राह पर बांग्लादेश? भारत के लिए लश्कर-जैश जैसा सिरदर्द बन सकते हैं ये कट्टरपंथी संगठन

बांग्लादेश में भारत विरोधी बयान देने वाले शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा और बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता ने भारत की चिंता बढ़ा दी है. ढाका में अखबारों के दफ्तर जलाने, अवामी लीग कार्यालय पर हमले और भारतीय उच्चायोग के घिराव के बीच कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियां फिर तेज होती दिख रही हैं.

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शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका सहित कई शहरों में हिंसा हो रही है. (Photo: ITG)
शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका सहित कई शहरों में हिंसा हो रही है. (Photo: ITG)

बांग्लादेश एक बार फिर सुलग रहा है. भारत के खिलाफ तीखी बयानबाजी करने वाले शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका में हिंसा हो रही है. प्रदर्शनकारियों ने दो अखबारों के दफ्तरों और अवामी लीग के कार्यालय को फूंक दिया, भारतीय उच्चायोग का घिराव किया, पत्थरबाजी की और भारत विरोधी नारे लगाए. राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा बांग्लादेश लगातार भारत के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है. भारत एक तरफ तो पाकिस्तान से आतंकवाद की चुनौती का सामना कर ही रहा है, ऐसे में अगर बांग्लादेश भी कट्टरपंथियों के नियंत्रण में आ गया तो जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों के लिए वहां सिर उठाना आसान हो जाएगा. 

बांग्लादेश में हाल के वर्षों में कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों की गतिविधियों में तेजी देखी जा रही है, जिसे लेकर भारत की सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ी है. पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन पहले भी बांग्लादेशी कट्टरपंथी गुटों से संपर्क में रहे हैं. इन संपर्कों का मकसद भारत के पूर्वी हिस्से में अस्थिरता फैलाना और दबाव बनाना रहा है.

कट्टरपंथी संगठनों को मिल रहा लश्कर और जैश का साथ

कुछ महीनों पहले एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों के साथ हाथ मिला लिया है. इनका मकसद भारतीय युवाओं को ब्रेनवॉश कर कट्टरपंथी बनाना है. रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन लश्कर और जैश को विश्वविद्यालयों तक पहुंचने में मदद कर रहे हैं. 

फिर से सिर उठा रहे कट्टरपंथी संगठन

बांग्लादेश में जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश, अंसारुल्लाह बांग्ला टीम और हिज्ब-उत-तहरीर जैसे कट्टरपंथी संगठनों का पुराना इतिहास रहा है. इन संगठनों पर पहले भी बम धमाकों, टारगेट किलिंग और कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के आरोप लगते रहे हैं. शेख हसीना सरकार के दौर में इन पर कड़ी कार्रवाई हुई, जिससे इनका नेटवर्क कमजोर पड़ा, लेकिन हालिया राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक ढील के बीच इनके फिर से सक्रिय होने की आशंका जताई जा रही है.

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बांग्लादेश की लंबी और संवेदनशील सीमा

भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता बांग्लादेश की लंबी और संवेदनशील सीमा है. पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और मेघालय से लगी सीमा पहले से ही अवैध घुसपैठ, तस्करी और नकली नोटों के मामलों के लिए जानी जाती है. अगर कट्टरपंथी संगठनों को यहां दोबारा पनपने का मौका मिलता है, तो यह सीमा आतंकियों की आवाजाही, स्लीपर सेल और हथियारों की तस्करी का रास्ता बन सकती है, जैसा पाकिस्तान के मामले में देखा गया है.

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