घर के अंदर और बाहर वायु प्रदूषण लाखों लोगों की मौत का कारण बन रहा है. वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें छह लाख बच्चे भी शामिल हैं. पूरी दुनिया में करीब 30 करोड़ बच्चे यानी औसतन सात में से एक बच्चा जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है. छह अरब से अधिक लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है. इसमें एक-तिहाई संख्या बच्चों की हैं. ये बच्चे उन इलाकों में रहते हैं जहां सामान्य के मुकाबले छह गुना या ज्यादा वायु प्रदूषण है.
दुनिया के छह अरब से अधिक लोगों को प्रदूषित हवा में सांस लेना पड़ रहा है। इसके कारण उनकी जिंदगी खतरे में पड़ रही है. लोगों को घर के अंदर और बाहर दोनों जगह प्रदूषित हवा में सांस लेना पड़ रहा है. इस वायु प्रदूषण के शिकार सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग होते है. कई वर्षों तक प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण कैंसर, हृदय और श्वास की बीमारी से पीड़ित रहने के कारण दुनिया में हर घंटे 800 लोग अपनी जान गंवा रहे है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की आबोहवा में रहने की वजह से इन बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां हो सकती हैं. इसके अलावा इनके मस्तिष्क का विकास भी रुक सकता है.
पयार्वरण और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर.बॉयड ने कहा कि लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का मूल अधिकार है. कोई भी समाज जहरीली हवा को अनदेखा नहीं कर सकता.उनके मुताबिक वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है. बॉयड ने कहा कि अच्छी परंपराओं के कई उदाहरण हैं, जैसे भारत और इंडोनेशिया में चलाए जा रहे कार्यक्रम. इनके जरिये लाखों गरीब परिवारों को खाना पकाने की स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने में मदद मिली और कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को सफलतापूर्वक हटाया जा रहा है.
बॉयड ने कहा कि लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का मूल अधिकार है. वायु प्रदूषण स्वस्थ पर्यावरण में सांस लेने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.
दुनिया के 155 देश इस अधिकार को मान्यता देते हैं और इसे वैश्विक रूप से मान्यता दी जानी चाहिए. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने विश्व के नेताओं से वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाने की अपील की है.