नेपाल में सियासी तूफान अब थमता सा दिख रहा है और ये भी कहा जा रहा है कि इस तूफान को रोकने में चीन की अहम भूमिका रही. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को लेकर नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में दरार पैदा हो गई थी. पार्टी केपी शर्मा ओली और प्रचंड के खेमों में बंट गई थी. पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रचंड केपी शर्मा ओली से इस्तीफा मांग रहे थे लेकिन अब पार्टी के भीतर सहमति बनती दिख रही है.
पिछले हफ्ते प्रचंड और ओली के बीच नाटकीय रूप से सहमति बनती दिखी जो पार्टी के सीनियर नेता माधव कुमार नेपाल तक के लिए चौंकाने वाला रहा. प्रचंड खेमे के माधव नेपाल भी ओली के इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब नेपाल की ओली सरकार की मंत्रिपरिषद का विस्तार हो सकता है और उसमें प्रचंड का प्रभाव दिखेगा. 28 जुलाई को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी की बैठक होने जा रही है. इसी में आगे की राह तय होगी और ओली को लेकर जारी विवाद का अंत हो जाएगा.
15 जुलाई को पीएम ओली, पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सहप्रमुख प्रचंड और माधव कुमार नेपाल के बीच बैठक हुई थी. अभी तक साफ नहीं है कि प्रचंड का ओली के प्रति सख्त रवैया मद्धम कैसे और क्यों पड़ा. इससे पहले तक ओली को लेकर प्रचंड का कहना था कि उन्हें प्रधानमंत्री और पार्टी प्रमुख दोनों पदों से इस्तीफा देना होगा. लेकिन ओली ने किसी भी पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था. यहां तक कि उन्होंने भारत पर उनकी कुर्सी को खतरे में डालने का आरोप लगा दिया था. ओली ने कहा था कि उनके खिलाफ काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास और नई दिल्ली में साजिश हो रही है. अब कहा जा रहा है कि प्रचंड कैबिनेट में अपने समर्थकों को और जगह मिलने भर से ही मान गए हैं.
कहा जा रहा है कि पूरे विवाद में काठमांडू स्थित चीन के दूतावास और राजदूत की अहम भूमिका रही. चीन की राजदूत होउ यांकी नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता के दौरान काफी सक्रिय रहीं. उन्होंने ओली से लेकर प्रचंड और सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कई नेताओं से अलग-अलग मुलाकातें की थी. यांकी ने प्रचंड और ओली के साथ भी मुलाकात की थी.
कहा जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच आई दरार को पाटने में यांकी की अहम भूमिका रही. हिन्दुस्तान टाइम्स से काठमांडू स्थित पश्चिमी देश के एक डिप्लोमैट ने कहा है कि ओली सरकार को बचाने में चीन की अहम भूमिका रही है. दरअसल, ओली का झुकाव चीन की तरफ रहा है इसलिए चीन नहीं चाहता कि पार्टी में कोई फूट पड़े और चीन समर्थक ओली सत्ता से बाहर हो जाएं.
नेपाल की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यांकी ने ओली को सत्ता में बनाए रखने के लिए विरोधी खेमे के नेताओं को मनाने के लिए पुरजोर कोशिशें कीं. होउ ने 3 जुलाई को नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या भंडारी से भी मुलाकात की थी. यहां तक कि नेपाल की राष्ट्रपति से चीनी राजदूत की मुलाकात को लेकर विदेश मंत्रालय तक को भी जानकारी नहीं दी गई. यान्की ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल और झालानाथ से मुलाकात की और पार्टी की एकता बनाए रखने की अपील की.
नेपाल की राजनीति में चीनी राजदूत के हस्तक्षेप को लेकर विरोध-प्रदर्शन भी हुए. काठमांडू स्थित चीनी दूतावास के पास नेपाल के छात्र-छात्राओं ने चीन विरोधी पोस्टर लेकर विरोध-प्रदर्शन किया. नेपाल की मीडिया में भी चीनी राजदूत की राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ती सक्रियता को लेकर तीखी आलोचना हुई.
मई महीने की शुरुआत में जब पार्टी के भीतर मतभेद नजर आने लगे थे, उस वक्त भी होउ ने ओली, दहल और पार्टी के अन्य नेताओं से मुलाकात की थी और पार्टी की एकता बनाए रखने की अपील की थी. चीनी दूतावास के प्रवक्ता झांग सी ने कहा कि चीन नहीं चाहता है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी किसी मुश्किल में फंसे और इसीलिए पार्टी के नेताओं को एक रखने और उनके मतभेद सुलझाने की कोशिशें कर रहा है. चीनी प्रवक्ता ने कहा कि चीनी दूतावास के पार्टी के नेताओं के साथ काफी मधुर संबंध हैं और वे किसी भी वक्त साझा हित के मुद्दे पर एक-दूसरे की राय को सुन सकते हैं.
हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि ओली की कुर्सी पर आया संकट हमेशा के लिए नहीं टला है लेकिन चीनी राजदूत की डिप्लोमैसी की जमकर तारीफ हो रही है. होउ यांकी ने मास्टर ऑफ आर्ट किया है. उर्दू जुबान पर भी उनकी अच्छी पकड़ है और साथ ही हिन्दुस्तानी भाषा भी जानती समझती हैं. नेपाल से पहले होऊ पाकिस्तान में डिप्लोमैट थीं.
संयुक्त राष्ट्र में नेपाल के स्थायी प्रतिनिधि रहे दिनेश भट्टारी कहते हैं कि चीनी राजदूत की पार्टी के नेताओं के साथ मुलाकात बेवक्त और असहज करने वाली थी. भट्टारी ने कहा कि चीन अपने हितों के लिए कम्युनिस्ट पार्टी में एकता बनाए रखना चाहता है लेकिन अगर वह बार-बार इस तरह से दखल देगा तो नेपाल में मौजूद अन्य ताकतवर देश नाराज हो सकते हैं. हमारे पड़ोसियों और दोस्तों को समझना चाहिए कि हम राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील क्षेत्र हैं.