आपने श्रवण कुमार की कहानी तो खूब सुनी होगी. वही श्रवण कुमार जिसने अपने अंधे माता-पिता को कंधे पर लादकर तीर्थ यात्रा करवाई. लेकिन यह एक ऐसे पिता की दास्तां है जो अपने शारीरिक रूप से असमर्थ बच्चे को स्कूल पढ़ाने के लिए रोजाना कंधे पर लादकर पहाड़ी रास्ते पर 29 किलोमीटर पैदल चलता है.
यहां बात हो रही है चीन के रहने वाले 40 वर्षीय यू जूकांग की, जो अपने बेटे जियाओ क्यांग को एक खास तौर पर तैयार की गई टोकरी में लादकर उसे स्कूल ले जाते हैं. अब उनकी परेशानी खत्म होने वाली है. उन्हें सरकार की ओर से घर मुहैया कराया जाएगा जो उनके बेटे के स्कूल के नजदीक है.

जूकांग के बेटे की उम्र 12 साल है और उसके हाथ-पैर काम नहीं करते हैं. यही नहीं उसकी कमर भी झुकी हुई है. बेटे की इस हालत के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और उसे पढ़ाने का फैसला किया. उनके मुताबिक, 'मुझे पता है कि मेरा बेटा शारीरिक रूप से असमर्थ है, लेकिन उसका दिमाग पूरी तरह ठीक है. मुझे मेरे घर के पास ऐसा कोई स्कूल नहीं मिला जहां पर्याप्त सुविधाएं हों और जो उसे लेने के लिए तैयार हो जाए'.
जूकांग नौ साल पहले अपनी पत्नी से अलग हो गए और उस वक्त उनके बेटे की उम्र महज तीन साल थी. तब उन्होंने उसे अकेले बड़ा करने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहते थे कि उनके बेटे को इस बात का नुकसान हो कि उसकी मां साथ नहीं है इसलिए वो उसे सबकुछ अच्छा देना चाहते थे.

जिस स्कूल में जूकांग का बेटा पढ़ता है वहां ना तो बस है और न ही कोई दूसरा पब्लिक ट्रांसपोर्ट. ऐसे में जूकांग ने तय कि वह रोज उसे अपने कंधों पर लादकर उसे स्कूल ले जाएंगे. उन्होंने कहा, 'मैं पिछले साल सितंबर से उसे रोज वहां ले जा रहा हूं. हर सुबह मैं पांच बजे उठता हूं. लंच तैयार करता हूं और साढ़े चार मील दूर चलकर उसे स्कूल ले जाता हूं और फिर वापस आता हूं ताकि काम करके पैसे कमा सकूं. उसके बाद फिर पैदल चलकर स्कूल जाता हूं और अपने बेटे को घर लेकर आता हूं'.
उन्होंने कहा कि वह अंदाजन रोज 27 किलोमीटर चलते हैं. वे कहते हैं, 'मेरे बेटे की हालत ऐसी नहीं है कि वह खुद से चल-फिर सके. वह 12 साल का है, लेकिन उसकी लंबाई महज 90 सेंटीमीटर. लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि मेरा बेटा अपने क्लास का टॉपर है और वह आगे भी सफलता के झंडे गाढ़ेगा. मेरा सपना है कि वो कॉलेज जाए'.
जब स्थानीय मीडिया में जूकांग की कहानी छपी तो सरकार ने ऐलान किया कि आने वाले दिनों में उन्हें स्कूल के पास ही एक कमरा दिया जाएगा.
