राज्यों में लोकायुक्त का गठन लोकपाल विधेयक के तहत ही हो या इसे राज्यों पर छोड़ दिया जाए, इस बारे में अब केंद्रीय मंत्रिमंडल विचार करेगा.
23 मार्च को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से इस मुद्दे पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में इस बात पर सहमति बनी थी कि राज्यों में लोकायुक्त के गठन को लोकपाल विधेयक से अलग रखा जाए.
केंद्र सरकार के एक मंत्री ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, 'बहुत से दल राज्यों में लोकायुक्त को लोकपाल विधेयक से अलग रखना चाहते हैं. सरकार को अभी सभी राजनीतिक दलों के रुख पर विचार करना है. केंद्रीय मंत्रिमंडल इस सम्बंध में निर्णय लेगा.' केंद्र सरकार ने कहा है कि वह वर्ष 2012-13 के संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में लोकपाल विधेयक पारित कराना चाहती है, जो 24 अप्रैल से 22 मई तक चलेगा.
सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय सर्वदलीय बैठक में विभिन्न दलों द्वारा सुझाए गए संशोधन केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखेगा. मंत्रिमंडल की सहमति मिल जाने के बाद संशोधन विधेयक राज्यसभा में रखा जाएगा.
यदि राज्यसभा इसे पारित कर देती है तो इसे वापस लोकसभा में भेजा जाएगा, जहां से यह पहले ही मौजूदा स्वरूप में संसद के शीतकालीन सत्र में पारित हो चुका है. अब यहां लोकसभा चाहे तो संशोधनों को जस का तस स्वीकार कर सकती है, इस पर चर्चा करा सकती है या इसे खारिज कर सकती है.
अधिकारियों के मुताबिक, लोकायुक्त को लोकपाल विधेयक, 2011 का हिस्सा बनाया गया है, क्योंकि राज्यों में लोकायुक्त कानून को लेकर एकरूपता नहीं है. लेकिन तकरीबन सभी राजनीतिक दल लोकायुक्त को लोकपाल विधेयक से अलग करने की मांग कर रहे हैं. विपक्षी दलों के अतिरिक्त केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में शामिल तृणमूल कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) भी यही मांग है.