चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को कहा कि इसके लिए ‘भरोसेमंद नियामक’ तंत्र की व्यवस्था की जानी चाहिए और पाठ्यक्रम पर गंभीरता से गौर करने की जरूरत है.
जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रिसर्च के तीसरे दीक्षांत समारोह में यहां अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ‘गुणवत्ता में गिरावट की धारणा बन रही है. हम इस स्थिति को लगातार बने रहने नहीं दे सकते. हमें निश्चित तौर पर एक भरोसेमंद नियामक तंत्र और सांस्थानिक तंत्र की व्यवस्था करनी होगी, जो हमारी चिकित्सा शिक्षा के मानदंडों के विकास में मदद करे.’
उन्होंने कहा कि चिकित्सा शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम पर गंभीरता से गौर किए जाने की आवश्यकता है ताकि चिकित्सकों को स्वास्थ्य को संपूर्णता से देखने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके, जो संकीर्ण क्लीनिकल और प्रौद्योगिकी चालित नजरिए से आगे जाता हो. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश लोगों के स्वास्थ्य और खरियत के मामले में भरोसा दिलाने में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य संकेतक खराब बने हुए हैं और उच्च शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर गंभीर चिंता का कारण हैं.
सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रम को लागू किए जाने के दशकों बीत जाने के बावजूद देश अब भी ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है, जहां स्वास्थ्य खर्च का दो तिहाई हिस्सा लोगों को अपनी जेब से भरना पड़ रहा है. इस खर्च का बड़ा हिस्सा दवाओं की खरीद पर जा रहा है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद और अन्य की मौजूदगी में सिंह ने कहा, ‘हमारी सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अगले पांच वर्षों के लिए जारी रखने का फैसला किया है. हम अपने शहरों में स्वास्थ्य चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अब एक नए राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन का प्रस्ताव कर रहे हैं.’
सिंह ने कहा कि चिकित्सकों, नर्सों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी सर्वव्यापी स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक के तौर पर उभर रही है और ग्रामीण क्षेत्रों खासतौर पर देश के उत्तरी, मध्य और पूर्वी क्षेत्र में यह अत्यधिक है. प्रधानमंत्री ने कहा कि 1000 की आबादी पर एक चिकित्सक और तीन नर्स प्रति चिकित्सक होने चाहिए लेकिन देश में 2000 लोगों की आबादी पर एक चिकित्सक और प्रति दो चिकित्सकों पर तीन नर्स हैं.
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को साथ मिलकर रणनीति बनानी चाहिए और इस हालात से निजात दिलाने के लिए आवश्यक कदमों को लागू करना चाहिए. सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य संबंधी प्रभावी देखभाल के लिए बहुस्तरीय कार्यबल होना चाहिए, जिसे एक व्यक्ति के तौर पर अलग-थलग होकर काम करने की बजाय एक टीम के तौर पर साथ मिलकर काम करना चाहिए. सिंह ने कहा कि चिकित्सा शिक्षा ऐसी होना चाहिए जो तकनीकी तौर पर सक्षम, सामाजिक तौर पर संवेदनशील, नैतिक तौर पर सही और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए तैयार रहने वाला स्वास्थ्य पेशेवर तैयार करे, जो विभिन्न स्वास्थ्य आवश्यकताओं की मांगों का जवाब दे सकें.
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘झूठे वरिष्ठता क्रम को छोड़ा जाना चाहिए. पारस्परिक सम्मान और साझा जिम्मेदारी की भावना कारगर टीम वर्क का आधार बनना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया एमबीबीएस पाठ्यक्रम में संशोधन की प्रक्रिया में है और सभी स्तरों पर ‘कम्युनिटी मेडिसिन’ में प्रशिक्षण को शामिल किया जा रहा है.
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प्रधानमंत्री ने कहा कि भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में एम्स जैसे छह संस्थानों के निर्माण का काम जोर-शोर से चल रहा है. इन मेडिकल कॉलेजों के शैक्षणिक सत्र 2012-13 से और अस्पतालों के 2013-14 से काम शुरू करने की उम्मीद है.