सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह का मानना है कि उच्चतम न्यायालय ने उनकी उम्र से जुड़े विवाद को कारगर तरीके से बंद नहीं किया है. हालांकि, उन्होंने अपने इस्तीफे की संभावना से इनकार किया.
उम्र विवाद पर रक्षा मंत्रालय के साथ कानूनी लड़ाई में जनरल सिंह को हार का सामना करना पड़ा था. उन्होंने कहा, ‘यह कहना बेईमानी होगी कि मुझपर इस्तीफा देने का दबाव नहीं था. यहां तक कि मेरे करीबी सलाहकार भी मीडिया की व्याख्या से प्रभावित थे और हां, मैं बेहद निराश था कि उच्चतम न्यायालय ने इस मुद्दे को कारगर तरीके से बंद नहीं किया.’
उन्होंने कहा, ‘चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ होने के नाते सेना और उसके कर्मियों के प्रति मेरी जिम्मेदारी है और मुझे अधूरे कार्यों को देखना है जिसे मैंने अपने लिए निर्धारित किया है. मैं तब तक नहीं छोड़ सकता जब तक कि मैंने जो शुरू किया है उसे पूरा न कर लूं. सांगठनिक हित सर्वोच्च हैं.’
जनरल सिंह ने कहा कि अनेक टिप्पणीकार इसे असैन्य-सैन्य संबंधों में तनाव के क्लासिक मामले के तौर पर देख रहे थे और उन्होंने उनके इस्तीफे की भविष्यवाणी करने के लिए जनरल के एस थिमैया के अपूर्ण इस्तीफे से तुलना की.
उच्चतम न्यायालय के उनके मामले को बरकरार नहीं रखने पर उनके इस्तीफे संबंधी अटकलों के संबंध में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं उम्र को ऐसी चीज के रूप में देखता हूं जिसका निराकरण मुझे और सेना को करना है और एक बार कानूनी व्यवस्था दिए जाने पर हम इसे करेंगे.’
जनरल सिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश ने मुख्य मुद्दे का निराकरण किए बिना अधिक भ्रम पैदा किया है. वह वैधानिक शिकायत को दो हिस्सों में बांटने की बात करती है, जिसमें एक ओर फैसला करने की प्रक्रिया और दूसरी ओर उसकी विचारणीयता शामिल है.
जनरल सिंह ने कहा, ‘रक्षा मंत्रालय ने कहा कि चूंकि उन्होंने मेरे जन्म का वर्ष 1950 तय करने का फैसला किया है इसलिए मुझे इसे हर हाल में स्वीकार करना है. यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.’
यह पूछे जाने पर कि यह धारणा बनी कि वह कानूनी लड़ाई हार गए हैं और उच्चतम न्यायालय ने उनके खिलाफ व्यवस्था दी है तो उन्होंने कहा कि यह विचित्र स्थिति थी. जब उच्चतम न्यायालय मामले पर सुनवाई कर रहा था तो मीडिया में सुनवाई की मिनट दर मिनट व्याख्या की जा रही थी. टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज और अखबारों ने अगले दिन अपनी हेडलाइन में अपना फैसला दिया जिसमें घोषित किया गया कि ‘जनरल लड़ाई हार गए हैं.’
जनरल सिंह ने कहा कि जब 15 फरवरी को आदेश आया तो मीडिया ने इसे रिपोर्ट नहीं किया और सबने इसके अभिप्राय पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा, ‘यह अहानिकारक आदेश है जो रिकार्ड के आधार पर जन्मतिथि को मान्यता देने की बात सक्षम प्राधिकार पर छोड़ता है. मीडिया काफी बढ़ा-चढ़ाकर टिप्पणी की रिपोर्टिंग कर रहा था.’
यह पूछे जाने पर कि अदालत से उनके याचिका वापस लेने के फैसले से धारणा बनी कि अदालत ने जो कुछ भी कहा उससे वह संतुष्ट हैं तो इसपर जनरल सिंह ने कहा कि उनकी वैधानिक शिकायत के गत 30 दिसंबर को रक्षा मंत्रालय द्वारा खारिज किए जाने के बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. गत तीन फरवरी को अदालत ने निर्णय लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया जिसकी वजह से इसे ठुकराया गया और यह राय दी कि यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है.
गत 10 फरवरी को अटॉर्नी जनरल ने वैधानिक शिकायत के खिलाफ रक्षा मंत्रालय के आदेश को वापस को ले लिया और मौन रूप से स्वीकार किया कि वास्तविक जन्मतिथि 1951 थी और मंत्रालय सिर्फ सिद्धांत के तौर पर विरोध कर रहा है. जनरल सिंह ने कहा कि चूंकि अदालत में और कुछ भी नहीं कहा जाना था और खासतौर पर न्यायाधीशों ने इस बात का भी संकेत दिया था कि अदालत वास्तविक जन्मतिथि के मामले में पड़ना नहीं चाहती.
उन्होंने कहा, ‘अब, जब तक कि रक्षा मंत्रालय की निर्णय करने की प्रक्रिया नहीं बताई जाती, जिसमें मेरी जन्मतिथि 1950 निर्धारित करने के पीछे के तर्क को स्पष्ट किया जाए तो मैं कैसे इसे चुनौती दे सकता हूं. इसलिए मैंने अपनी याचिका वापस ली और एमओडी (रक्षा मंत्रालय) के नए सिरे से कारण बताने का इंतजार करने का फैसला किया है.’
उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बात की व्यवस्था की जाए कि भविष्य में इस तरह के मामलों की कभी पुनरावृत्ति नहीं हो. जन्मतिथि विवाद में पूर्व सेना प्रमुख जनरल जे जे सिंह का हाथ होने की ओर इशारा करने वाले उनकी पुत्री की ओर से लिखे गए लेख के बारे में उनकी राय पूछे जाने पर जनरल सिंह ने सीधा उत्तर नहीं दिया.
उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि समस्या तब बढ़ गई जब रक्षा मंत्रालय ने ऐसा क्यों किया जा रहा है इस बात की पड़ताल किए बिना ‘इस राय का समर्थन करना चुना.’ यह पूछे जाने पर कि क्या आप यह कह रहे हैं कि 2006 का फैसला (जे जे सिंह द्वारा किया गया) अवैध था तो इसपर जनरल सिंह ने कहा, ‘इसके अपने प्रभाव हैं. अगर मैं कहता हूं कि मैं इसे चुनौती नहीं देता हूं, इसे लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि न्यायालय का आदेश जन्म की दो अलग-अलग तारीखों की वैधता पर कुछ भी नहीं कहता.’
यह पूछे जाने पर कि ऐसा लगा कि आप प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़ा होने वाले व्यक्ति के तौर पर दिखे उन्होंने कहा, ‘भारतीय सेना का प्रमुख होने के नाते मैं जनता की राय से बच नहीं सकता और मैं इस बात से वाकिफ हूं कि मैं रक्षा मंत्रालय में लड़ाई को ले जाने में गलत था.’