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लॉकडाउन में पैदल ही 500 km के सफर पर निकल पड़ा ये दिव्यांग

लॉकडाउन में पैदल ही 500 km के सफर पर निकल पड़ा ये दिव्यांग
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गुड़गांव, दिल्ली, गाजियाबाद जैसी जगह काम करने वाले मजदूर अब भुखमरी के कगार पर हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में सरकार ने लॉक डाउन लगाया है जिसके चलते राजधानी के आसपास कारखानों में काम बंद हो चुका है. इसकी वजह से कारखाने में काम करने वाले मजदूरों से लेकर कई गरीब लोग प्रभावित हुए हैं. ऐसे में सैकड़ों लोग शहर छोड़ अपने गांव जाने के लिए मजबूर हैं. वहीं एक दिव्यांग व्यक्ति भी इस बीच बैसाखी के सहारे अपने घर के लिए रवाना हुआ है.
लॉकडाउन में पैदल ही 500 km के सफर पर निकल पड़ा ये दिव्यांग
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गाजियाबाद से पैदल ही सफर पर निकल पड़े दिव्यांग व्यक्ति का नाम सलीम है जिनकी उम्र 50 साल है जो एक पैर से दिव्यांग हैं. गाजियाबाद में रहकर वह अपना गुजारा कर रहे थे. लेकिन अब सलीम अपने भाइयों के साथ बैसाखी के सहारे कानपुर जाने के लिए मजबूर हैं. अभी फिलहाल वे गाजियाबाद से फिरोजाबाद की हाईवे तक पहुंच पाये हैं.
लॉकडाउन में पैदल ही 500 km के सफर पर निकल पड़ा ये दिव्यांग
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तेज धूप, टपकता पसीना, लड़खड़ाते कदम, बैसाखी के दर्द को भूलते हुए पैदल ही अपने कानपुर के गांव के लिए निकल पड़े हैं. उन्हें उमीद है कि शायद वहां उनको दो वक्त की रोटी मिल सके. दिल्ली से सलीम 250 किलोमीटर का सफर बैशाखी के सहारे ही तय करके आए हैं और अभी इनको 250 किलोमीटर आगे और जाना है. दिव्यांग सलीम कि इस समय सुनने वाला कोई नहीं है. इनको सरकार से मदद की उम्मीद है.


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लॉकडाउन में पैदल ही 500 km के सफर पर निकल पड़ा ये दिव्यांग
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सलीम बैसाखी पर चलते हुए कहते हैं, 'मैं गाजियाबाद से आ रहा हूं हम तो मांग कर खा लेते थे अब वहां पर चक्का जाम है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बहुत देर से  इंतजार कर रहे थे. काफी देर तक हमने साधन का इंतजार किया लेकिन फिर हम पैदल ही निकल लिए. हम शिकोहाबाद से होकर कानपुर जाएंगे.'


लॉकडाउन में पैदल ही 500 km के सफर पर निकल पड़ा ये दिव्यांग
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आगे उन्होंने बाताया कि हम लोग सुबह 4:00 बजे से चलते हैं. सरकार से हम चाहते हैं कि हाथ पैर से लाचार हैं पर हमारे पास कोई रास्ता नहीं है. हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है. हमने सुबह बिस्किट के पैकेट खाकर निकले थे. हमारे पास पैसे भी नहीं है मार्केट भी बंद चल रहा है.
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आगे सलीम ने कहा कि हालत ऐसी हो रही है कि अभी खर्च भी नहीं है हमारे पास. वहीं अब देखना यह है कि प्रदेश और केंद्र सरकार ऐसे लोगों की कैसे मदद करेगी. अब इन मजदूरों की जिंदगी पटरी पर कब लौट कर आएगी. फिलहाल कोरोना की मार ने सब को तोड़ कर रख दिया है इनकी जिंदगी भी अब दर बदर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गई है.


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