बांग्लादेश की एक मेडिकल टीम ने दावा किया है कि उन्होंने कोरोना वायरस की दवा को लेकर रिसर्च की है और उन्हें सफलता भी मिल गई है. पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों का कहना है कि दो दवाओं के कॉम्बिनेशन से कोरोना मरीज तेजी से ठीक हो रहे हैं. (प्रतीकात्मक फोटो)
बांग्लादेश की जिस मेडिकल टीम ने कोरोना की दवा ढूंढने का दावा किया है उसमें देश के जाने-माने फिजिशियन शामिल हैं. देश के प्रमुख प्राइवेट संस्थान बांग्लादेश मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (BMCH) के मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. मोहम्मद तारेक आलम ने कहा है कि पहले से मौजूद दो दवाओं का कॉम्बिनेशन इस्तेमाल किया गया.
डॉ. आलम ने कहा कि कोरोना के 60 मरीजों को दवाओं का कॉम्बिनेशन दिया गया तो सभी मरीज ठीक हो गए. आलम बांग्लादेश के प्रतिष्ठित डॉक्टर हैं. उन्होंने कहा कि मरीजों को Ivermectin और Doxycycline नाम की दवा दी गईं. Doxycycline एंटीबायोटिक है, जबकि Ivermectin दवा Antiprotozoal मेडिसिन के तौर पर यूज की जाती है.
डॉ. आलम ने कहा कि उनकी टीम ने इन दोनों दवा का इस्तेमाल सिर्फ कोरोना मरीजों के लिए किया. इन मरीजों में शुरुआत में ही सांस लेने संबंधी समस्याएं थीं और जांच में इनके रिजल्ट कोरोना पॉजिटिव आए थे. बता दें कि बांग्लादेश में कोरोना के 22 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 320 से अधिक लोगों की मौतें हो चुकी हैं.
बांग्लादेश मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (BMCH) के मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. मोहम्मद तारेक आलम ने कहा कि दवा इतनी प्रभावी रही कि बीमार मरीज 4 दिन में ठीक हो गए. मरीजों के आधे लक्षण 3 दिन में ही गायब हो गए थे. उन्होंने यह भी कहा कि दवा का कोई साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिला.
डॉ. मोहम्मद तारेक आलम ने कहा कि वे दवा के प्रभावी होने को लेकर 100 फीसदी उम्मीद कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी अधिकारियों से भी दवा को लेकर बात की गई है ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया अपनाते हुए दुनिया को कोरोना वायरस के इलाज की जानकारी दी जा सके.
डॉ. आलम ने कहा कि उनकी टीम रिसर्च पेपर तैयार कर रही है जिसे इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा. इसके बाद बांग्लादेश के डॉक्टरों के रिसर्च का रिव्यू दुनियाभर के डॉक्टर कर सकेंगे.
आगे पढ़ें, दुनिया में कोरोना के इलाज के लिए और क्या-क्या हो रहा है-
कई देश जुटे हैं वैक्सीन बनाने में-
कोरोना को खत्म करने के लिए कई देश
जोर शोर से काम कर रहे हैं. इटली, इजरायल, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन सहित कई
देश वैक्सीन बनाने के काम में जुटे हैं. दुनियाभर में एक साथ कई वैक्सीन पर
काम चल रहा है. इटली और इजरायल ने हाल ही में दावा किया था कि उन्हें
एंटीबॉडी तैयार करने में सफलता मिली है.
हालांकि, एंटीबॉडी तैयार करने के बाद भी वैक्सीन को सफल करार देने के लिए कई तरह के टेस्ट और ट्रायल की जरूरत होती है. खासकर वैक्सीन के सुरक्षित होने की जांच भी की जाती है. इसके बाद ही आम लोगों पर इस्तेमाल की मंजूरी मिलती है.
वैक्सीन के ट्रायल में कई महीने लग सकते हैं. इसलिए अमेरिका से ब्रिटेन तक ये बात कही जा रही है कि वैक्सीन सितंबर तक आ सकती हैं या फिर इसमें पूरा साल भी लग सकता है.
हाल ही में एक अमेरिकी कंपनी ने दावा किया था कि उसने एंटीबॉडी तैयार कर ली है. कैलिफोर्निया की बायोटेक कंपनी Sorrento Therapeutics ने कहा था कि STI-1499 नाम की एंटीबॉडी तैयार की है.
सोरेन्टो ने बताया था कि पेट्री डिश एक्सपेरिमेंट में पता चला कि STI-1499 एंटीबॉडी कोरोना वायरस को इंसानों के सेल्स में संक्रमण फैलाने से 100 फीसदी रोक देता है. ये एक्सपेरिमेंट लैब में किया गया.
सोरेन्टो न्यूयॉर्क के माउंट सिनई स्कूल ऑफ मेडिसीन के साथ मिलकर कई एंटीबॉडी पर काम कर रही है. कई वैक्सीन कारगर होने पर वैक्सीन के कॉकटेल बनाने की भी योजना है.
दूसरी ओर, ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी वैक्सीन तैयार कर रही है. ऑक्सफोर्ड की टीम वैक्सीन को लेकर आत्मविश्वास से इतनी भरी है कि क्लीनिकल ट्रायल से पहले ही मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने का फैसला कर लिया.
ऑक्सफोर्ड की टीम को उम्मीद है कि इस साल सितंबर या अधिकतम साल के अंत तक इस वैक्सीन की एक मिलियन डोज उपलब्ध हो जाएंगी. हालांकि, ट्रायल असफल रहता है तो तैयार की जा चुकीं वैक्सीन बेकार साबित हो सकती हैं.
प्रोफेसर एड्रियन हिल ने कहा था कि ऑक्सफोर्ड की टीम विश्वास से भरी है. वे सितंबर तक का इंतजार नहीं करना चाहते, जब क्लीनिकल ट्रायल पूरा होगा.
इससे पहले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीनोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रोफेसर सारा गिल्बर्ट ने कहा था कि वैक्सीन के 12 परीक्षण किए जा चुके हैं. उन्होंने कहा कि इस वैक्सीन के एक डोज से ही इम्यून को लेकर बेहतर परिणाम मिले.