अगर आपको लगता है कि फोन में बस वही ऐप्स खतरा बनते हैं जिन्हें आप संदिग्ध मानते हैं, तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं. असल डर वहीं छिपा है जहां आप सबसे कम उम्मीद करते हैं. बिल्कुल साधारण, रोज़ इस्तेमाल होने वाले एंड्रॉयड ऐप्स में. ऐसे ऐप्स जो दिखने में बिलकुल नॉर्मल हैं, लेकिन अंदर छिपा कोड आपके फोन को मिनटों में खुली किताब बना देता है.
ये खतरा नया नहीं, लेकिन अब ये पहले से कई गुना ज़्यादा चालाक हो चुका है. ऐप्स उतनी ही आसानी से डेटा चुरा लेते हैं जितनी आसानी से आप उन्हें इंस्टॉल करते हैं. और सबसे बड़ी बात ये बैहै कि यूज़र को पता तक नहीं चलता.
टूल्स के नाम पर स्पाईवेयर का खेल
मार्केट में आज ऐसे सैकड़ों ऐप्स मौजूद हैं जो खुद को फ़ोन क्लीनर, वीडियो कन्वर्टर, फाइल मैनेजर, नोटिफिकेशन बूस्टर या वॉलपेपर ऐप बनकर पेश करते हैं. नाम और आइकॉन इतने सिंपल होते हैं कि किसी को शक ही नहीं होता.
लेकिन जैसे ही इन्हें इंस्टॉल किया जाता है, ये फोन से स्क्रीन रिकॉर्ड कर लेते हैं, कीबोर्ड के बटन यानी कीस्ट्रोक्स नोट कर लेते हैं, बैंकिंग ऐप पर ओवरले बना लेते हैं, और चुपचाप आपके फोन की हर चलती गतिविधि बाहर भेजने लगते हैं.
सबसे खतरनाक हिस्सा ये है कि ये ऐप्स हटाने पर भी पूरी तरह से फोन से नहीं हटते हैं. कई बार ये खुद को छुपाकर बैकग्राउंड में बने रहते हैं और यूज़र समझता है कि खतरा खत्म हो गया, जबकि असल में खेल तब शुरू होता है.
लोगों को ये स्कैम पकड़ में क्यों नहीं आता?
क्योंकि ये ऐप्स अपने आपको यूटिलिटी बताकर ऐसे परमिशन्स लेते हैं जिनकी उन्हें असल में जरूरत ही नहीं होती. मिसाल के तौर पर एक सिंपल फोटो एडिटर ऐप को एसएमएस पढ़ने या नोटिफिकेशन एक्सेस की जरूरत ही नहीं है, लेकिन लोग जल्दी में ओके दबा देते हैं. यही एक क्लिक आपके फोन का कंट्रोल किसी अंजान सर्वर को सौंप देता है.
एक और वजह है. ये ऐप्स धीरे-धीरे काम करते हैं. एकदम से कोई बड़ा फ्रॉड नहीं करते. पहले आपके कॉन्टैक्ट लिस्ट की कॉपी जाती है, फिर लोकेशन, फिर ब्राउज़िंग हिस्ट्री. क्रिमिनल्स पूरा प्रोफाइल बनाते हैं, और फिर सही टाइम देखकर बैंकिंग अटैक करते हैं.
खतरा कितना बड़ा है?
हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि मोबाइल मैलवेयर के केस पिछले कुछ महीनों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं. लाखों फोन ऐसे दिखने में साधारण ऐप्स के ज़रिए ट्रैक हुए हैं.
कई यूज़र्स को तब पता चला जब उनके बैंक अकाउंट से बिना ओटीपी के पैसे निकल गए, या उनके फोन में लॉगिन अलर्ट्स आने लगे जबकि फोन उनके हाथ में था.
इंडिया जैसे देशों में ये खतरा और बड़ा है, क्योंकि यहां थर्ड पार्टी ऐप्स और जल्दी डाउनलोड कल्चर बहुत आम है. क्रिमिनल्स को बस इतना करना होता है कि एक ऐप में दो-तीन चमकदार फीचर डाल दो और बाकी का काम यूज़र खुद कर देता है.
फोन स्लो होना सिर्फ़ लैग नहीं, कभी-कभी चेतावनी भी होता है
कई केस में ये ऐप्स बैकग्राउंड में इतने एक्टिव रहती हैं कि फोन गर्म होने लगता है, बैटरी जल्दी खत्म होने लगती है, और डेटा यूज़ अचानक बढ़ जाता है. परेशानी ये है कि यूज़र इसे फोन पुराना हो गया है कह कर टाल देते हैं. जबकि सच ये है कि आपके फोन की बैटरी आप नहीं, बल्कि कोई और इस्तेमाल कर रहा होता है.
सबसे बड़ा डर : पहचान की चोरी
स्पाइवेयर सिर्फ बैंक का पैसा नहीं उड़ाते, वो आपकी पहचान चुरा लेते हैं. आपके फोन में जो कुछ है. ईमेल, फोटो, दस्तावेज़, चैट बैकअप, कॉन्टैक्ट, इन सबका इस्तेमाल करके अपराधी आपके नाम पर नए अकाउंट खोल सकते हैं, नंबर रजिस्टर कर सकते हैं या किसी दूसरे को धोखा दे सकते हैं. मतलब नुकसान सिर्फ आज का नहीं, महीनों तक पीछा करता है.
ख़तरा ऐप में नहीं, हमारे भरोसे में है
ज्यादातर यूज़र ये मानकर चलते हैं कि अगर ऐप प्ले स्टोर पर है या दिखने में नॉर्मल है तो सुरक्षित होगी. यही सबसे बड़ी भूल है. आज के स्पाइवेयर इतने तेज हो चुके हैं कि वे आम ऐप्स के पीछे छिपकर चलते हैं और यूज़र को पता तब लगता है जब नुकसान हो चुका होता है.
डरने की ज़रूरत नहीं, लेकिन सावधान रहने की बहुत ज़रूरत है. क्योंकि अब खतरा उस ऐप से नहीं जो संदिग्ध दिखे, बल्कि खतरा उस ऐप से है जो संदिग्ध दिखते ही नहीं हैं.