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भारत के 'लेफ्टी राजीव' इतिहास रचने के लिए तैयार, 58 की उम्र में वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप का टाइटल करेंगे डिफेंड

राजीव शर्मा 7 से 14 सितंबर तक थाईलैंड के पटाया में होने वाली बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. साल 2023 में उन्होंने इंडोनेशिया के खिलाड़ी जोको सुप्रियातो को हराकर गोल्ड मेडल जीता था. 58 साल की उम्र में भी राजीव का जुनून और मेहनत उन्हें नई ऊंचाइयों तक ले जा रहा है.

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वर्ल्ड चैंपियन बैडमिंटन खिलाड़ी राजीव शर्मा  (Photo: Himanshu Sharma/ITG)
वर्ल्ड चैंपियन बैडमिंटन खिलाड़ी राजीव शर्मा (Photo: Himanshu Sharma/ITG)

भारत के राजीव शर्मा के लिए खेल सिर्फ हार और जीत से कहीं आगे की बात है. इसे साबित करने के लिए 58 साल की उम्र में वे बैडमिंटन कोर्ट में उतरेंगे. उनका लक्ष्य वही होगा वर्ल्ड चैंपियनशिप (55+ सिंगल्स कैटेगरी) में गोल्ड मेडल जीतकर दुनिया के नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी बनना. जिन्हें राजीव शर्मा याद नहीं हैं, उनके लिए 16 सितंबर 2023 का किस्सा दोहरा देते हैं. उस दिन राजीव ने साउथ कोरिया के जिओन्जू में जोको सुप्रियांतो जैसे दिग्गज खिलाड़ी को एक संघर्षपूर्ण मुकाबले में हराया था. वह शानदार जीत उनकी सोच और मजबूती को बयां कर रही थी. राजीव जानते थे कि सुप्रियांतो को हराकर विक्ट्री पोडियम पर खड़े होने के मायने क्या हैं.

दिल्ली के बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ी राजीव शर्मा 7 से 14 सितंबर तक थाईलैंड के पटाया में होने वाली बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. इस बार राजीव का लक्ष्य फिर से इतिहास दोहराना है. वहीं, पूर्व अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी मंजू शाह कंवर कहती हैं कि राजीव की सबसे बड़ी मजबूती उनका मानसिक तौर पर मजबूत होना है. यह किसी भी खिलाड़ी की सबसे बड़ी ताकत होती है. वे हर स्ट्रोक बहुत सोच-समझकर खेलते हैं और उनका सरल स्वभाव भी खेल में झलकता है. राजीव जीत-हार के लिए नहीं खेलते, बल्कि उन्हें बैडमिंटन से प्यार है, इसलिए खेलते हैं.

बता दें, साल 2023 में साउथ कोरिया के जिओन्जू में आयोजित बीडब्ल्यूएफ सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में राजीव ने 55+ मैन्स सिंगल्स कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता था. यह जीत उनके करियर की बेहद अहम उपलब्धि रही. उन्होंने बताया कि बड़े खिलाड़ियों को हराने का आत्मविश्वास उन्हें लगातार मेहनत और सीखने की सोच से मिला. पूर्व अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी अजय कंवर कहते हैं कि राजीव बहुत ज्यादा अटैकिंग प्लेयर नहीं हैं, लेकिन खेलते समय उनका दिमाग बहुत अच्छा चलता है. उन्हें मालूम है कि किस समय कौन-सा स्ट्रोक खेलना है. साथ ही, उन्हें यह भी समझ आ गया है कि मास्टर्स टूर्नामेंट्स में किस तरह खेलना चाहिए. शुरुआत से ही वो ड्रॉप और ड्रिबल अच्छा खेलते थे, जिसका फायदा आज भी उन्हें मिल रहा है. वो अभी भी अपनी ट्रेनिंग पर पूरा ध्यान देते हैं और साल में करीब 6 से 7 टूर्नामेंट खेलते हैं.

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वर्ल्ड टाइटल डिफेंड करने के लिए तैयार राजीव

राजीव शर्मा ने अपने बैडमिंटन करियर की शुरुआत 17 साल की उम्र में दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम से की थी. जब उन्होंने स्टेडियम  पहुंचकर एक कोच से कहा कि वो खेलना चाहते हैं, तो कोच ने पहले मना कर दिया और कहा कि तुमसे नहीं हो पाएगा, यहां तो बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी खेलते हैं. लेकिन कुछ देर बाद कोच का मन बदला और फॉर्म पर साइन करते हुए कहा कल से आ जाना. राजीव के मन में उस वक्त खुशियों का ज्वालामुखी फट पड़ा, लेकिन यह तो चुनौतियों की नई शुरुआत थी. कोर्ट पर लड़के उन्हें नजरअंदाज करते और लड़कियों को अभ्यास कराने के लिए खड़ा कर देते. रोज हारना अपमानजनक लगता, पर टूटने के बजाय राजीव ने कोर्ट पर पसीना बहाना शुरू किया. कोच ताना मारते हुए कहते कि हमने एक लेफ्टी प्लेयर बुला लिया है, जो सिर्फ लड़कियों को प्रैक्टिस कराएगा.  राजीव ने इस अपमान को सहते हुए मेहनत शुरू की और धीरे-धीरे छोटे-बड़े टूर्नामेंट जीतने लगे.

अजय कंवर और मंजू शाह कंवर पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी, भारत
अजय कंवर और मंजू शाह कंवर पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी, भारत

राजीव की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट 1989 में आया, जब वे पहली बार दिल्ली स्टेट चैंपियन बने. उन्होंने सिंगल्स और डबल्स मुकाबलों के टीम इवेंट में गोल्ड मेडल जीता. इस शानदार खेल की बदौलत राजीव ने 1990 में भारत के ऑडिट डिपार्टमेंट में नौकरी हासिल की. राजीव ने बताया कि उसी समय उन्हें अहसास हुआ कि वो कुछ बड़ा कर सकते हैं. 1989 से 1994 तक उन्होंने कई ऑल इंडिया टूर्नामेंट्स में सफलता हासिल की. यहीं से राजीव शर्मा को देशभर में लेफ्टी राजीव के नाम से पहचाना जाने लगे. इस दौरान उन्होंने पुलेला गोपीचंद जैसे खिलाड़ियों को भी मात दी. लेकिन एक सपना अब भी अधूरा था भारतीय टीम की जर्सी पहनने का. जिंदगी एक और परीक्षा लेने को तैयार थी.

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राजीव शर्मा साल 2023 में बने थे वर्ल्ड चैंपियन 

साल 1998 में जिंदगी ने उन्हें कठिन परीक्षा ली. टीबी जैसी गंभीर बीमारी ने उन्हें खेल से दूर कर दिया. इसके बाद अस्थमा भी हो गया. एलोपैथिक दवाओं से वजन बढ़ने लगा, पर राजीव ने हार नहीं मानी. उन्होंने आयुर्वेद का सहारा लिया और 1999 में फिर से अभ्यास शुरू किया. साल 2004 में उनकी मेहनत रंग लाई और दिवंगत खिलाड़ी कुलविंदर पाल सिंह के साथ मलेशिया में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप (35+ पुरुष डबल्स) में सिल्वर मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया. लेकिन मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं, घुटने की मेनिस्कस सर्जरी के बाद डॉक्टरों ने खेलने से मना कर दिया और चेतावनी दी कि दर्द हमेशा रहेगा. राजीव ने आत्मविश्वास नहीं खोया और तीन साल तक ताकत, धैर्य और विश्वास के सहारे खुद को फिर खड़ा किया. साल 2011 में उन्हें अपने ध्यान गुरु आर्चना दीदी से दीक्षा मिली. ध्यान और सकारात्मक सोच ने उनकी जिंदगी बदल दी. साल 2015 से उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में दोबारा खेलना शुरू किया. कई बार क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे और जल्दी बाहर भी हो गए. लेकिन जुनून, मेहनत और समर्पण ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया. अंततः 2023 में उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर अपने सपनों को साकार किया.

पुलेला गोपिचंद समेत कई दिग्गज खिलाड़ियों को हरा चुके हैं 

अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी मानसी गोयल कहती हैं कि वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. राजीव फिर से तैयार हैं, इतिहास दोहराने के लिए वो पूरे फोकस के साथ मेहनत कर रहे हैं. उनकी फॉर्म देखकर लगता है कि गोल्ड मेडल फिर से उनकी झोली में आएगा. उन्होंने अपने खेल में मेडिटेशन को शामिल किया, जिसका फायदा उन्हें लगातार मिल रहा है. उम्र के इस पड़ाव में परिवार को खेल के साथ लेकर चलना किसी के लिए भी आसान नहीं होता. इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है.  2025 में फिर से चैंपियन बनने के लिए राजीव रोजाना 4 से 5 घंटे अभ्यास कर रहे हैं. आज भी युवा खिलाड़ियों के लिए उनके सामने एक पॉइंट लेना मुश्किल साबित होता है. उनका मानना है कि खेलने की कोई उम्र नहीं होती. अगर सीखने की सोच के साथ खेला जाए, तो खेल के मायने बदल जाते हैं. अब उनकी नजर थाईलैंड में खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ने पर है.

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