साल 1976 में टीम इंडिया का वेस्टइंडीज दौरा खट्टी मीठी यादों वाला रहा था. भारत ने उस दौरे पर पोर्ट ऑफ स्पेन में खेले गए सीरीज के तीसरे टेस्ट मैच में 403 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए इतिहास रच दिया था. चौथी पारी में सबसे बड़े लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा करने का यह रिकॉर्ड 27 साल तक बरकरार रहा. बाद में साल 2003 में वेस्टइंडीज ने 418 रनों के टारगेट को चेज कर इस रिकॉर्ड को तोड़ा था.
लेकिन इसके बाद (21-25 अप्रैल 1976) किंग्सटन में खेले गए चौथे एवं आखिरी टेस्ट मैच में जो वाकया हुआ, उसे यादकर आज भी डर लगता है. कैरेबियाई तेज गेंदबाजों ने उस मैच में ऐसी आग उगली थी की भारतीय खिलाड़ी पिच पर उतरने लायक नहीं बचे. भारत की दूसरी पारी के स्कोर बोर्ड पर पांच खिलाड़ियों के आगे 'एबसेंट हर्ट' लिखा गया.
भारत ने पहली पारी में बनाए 306 रन
दरअसल, सीरीज 1-1 से बराबरी पर थी, और किंग्स्टन के सबीना पार्क में अप्रत्याशित उछाल से विंडीज के तेज गेंदबाजों ने भारतीय टीम को जबर्दस्त निशाना बनाया. भारत को माइकल होल्डिंग और वेन डैनियल, बर्नार्ड जूलियन और वैन होल्डर से सजे तेज आक्रमण के खिलाफ पहली पारी 306/6 के स्कोर पर पारी घोषित करनी पड़ी.
तीन खिलाड़ी हुए बुरी तरह चोटिल
इस पारी में अंशुमन गायकवाड़ (81 रन) और बृजेश पटेल बुरी तरह चोटिल होकर 'रिटायर्ड हर्ट' हुए. गायकवाड़ के बाएं कान पर चोट लगी और उन्हें अस्पताल में दो रातें बितानी पड़ीं. जबकि बृजेश पटेल को मुंह में चोट लगने के बाद टांके पड़े थे. इतना ही नहीं गुंडप्पा विश्वनाथ के दाहिने हाथ की उंगली टूट गई. ये तीनों मैच में आगे खेलने लायक नहीं बचे.
306 रनों के स्कोर पर एस. वेंकटराघवन का विकेट गिरते ही कप्तान बिशन सिंह बेदी ने पहली पारी घोषित कर दी. दरअसल, विकेट पर बेदी के उतरने की बारी थी और इसके बाद आखिर में भगवत चंद्रशेखर का नंबर था. ऐसे में दोनों ने विंडीज की तेज गेंदबाजी से खुद को बचाया.
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भारतीय गेंदबाज रहे बेअसर
जिस पिच पर विंडीज के गेंदबाज ने आग उगली थी, उस पिच का भारतीय पेस अटैक कोई फायदा नहीं उठा सका और वेस्टइंडीज ने अपनी पहली पारी में 391 रन बना डाले. टीम के भरोसेमंद गेंदबाजों मदनलाल और मोहिंदर अमरनाथ क्रमश: 7 और 8 ओवर ही डाल सके. दूसरी तरफ बेदी, चंद्रशेखर और राघवन की स्पिन तिकड़ी थी जिन्होंने ज्यादातर ओवर गेंदबाजी की.
97/5 के स्कोर पर भारतीय पारी हुई खत्म
भारतीय टीम अपनी दूसरी पारी में अपने तीन बल्लेबाजों के बिना उतरी. टीम किसी तरह पांच विकेट पर 97 के स्कोर पर पहुंची. मात्र 12 रनों की बढ़त हो पाई थी और यहीं भारतीय पारी का अंत हो गया. बेदी और चंद्रशेखर फील्डिंग के दौरान चोटिल हो गए थे, जिसके चलते वह बल्लेबाजी करने में भी असमर्थ थे. यानी अंशुमन गायकवाड़, बृजेश पटेल और गुंडप्पा विश्वनाथ तो पहले से ही चोटिल थे और अब बेदी-चंद्रशेखर भी बल्लेबाजी के लिए नहीं उतरे. ये पांचों 'एबसेंट हर्ट' कहे गए.
सभी 17 खिलाड़ी मैदान पर उतरे
चोट से टीम की हालत इतनी खराब थी कि दौरे पर गए सभी 17 खिलाड़ी सब्स्टीट्यूट के तौर पर कभी न कभी मैदान पर दिखे.भारत के लिए मसीबत यहीं पर इस दौरान सब्स्टीट्यूट के तौर पर मैदान पर उतरे सुरिंदर अमरनाथ को मैच के दौरान ही अपेंडिक्स ऑपरेशन के लिए अस्पताल ले जाया गया था.
वेस्टइंडीज ने उस मुकाबले को दस विकेट से जीतकर सीरीज पर 2-1 से कब्जा किया. वेस्टइंडीज के लिए क्वाइव लॉयड की कप्तानी में विश्व क्रिकेट में शीर्ष पर पहुंचने की यहीं से शुरुआत हुई थी. उसने ऑस्ट्रेलिया में पिछली सीरीज 1-5 गंवाई थी, लेकिन इसके बाद वेस्टइंडीज ने 1980 के दशक के अंत तक क्रिकेट की दुनिया पर राज किया.