एक तय तारीख है. बड़ा सा मैदान है, जहां हजारों की संख्या में दर्शक सांसें थामे बैठे हैं. हर ओर उत्साह का समंदर है. अनगिनत कैमरे हर पल को कैद कर रहे हैं. कुछ घंटों का खेल है जिसमें चुना जाना है एक नया विश्व विजेता. नतीजा आता है और विजेता खिलाड़ियों के नाम के आगे हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है- वर्ल्ड चैम्पियन. इसके बाद कहानियों की बाढ़ है. जश्न है, इमोशन है. हीरोज की संघर्ष गाथा है.
लेकिन इस शोर और चमक के बीच एक शख्स है जो मौन है. कैमरों के फ्रेम से दूर, अखबारी सुर्खियों से नदारद, पर उसके चेहरे पर गहरी तसल्ली है. क्योंकि यह जीत सिर्फ खिलाड़ियों की नहीं, उसकी भी है. यह ख्वाब उसका भी था जिन्हें कि पूरा इन 11 लोगों ने किया है. वह शख्स है- कोच. वह जो खुद खेल में नहीं उतरता, लेकिन दूसरों को मैदान का योद्धा बनाता है. जो थकता नहीं, पर दूसरों में ताकत भरता है. जो खिलाड़ियों को गढ़ता है, उन्हें तोड़ता है, फिर जोड़ता है और अंत में उन्हें ऐसा चमकता सोना बना देता है, जिसकी रौशनी पूरी दुनिया देखती है.
यह कोच उस कुम्हार की तरह है जो मिट्टी को आकार देता है. हर चोट, हर दरार के बीच सुंदरता खोज लेता है. वह जानता है कि हर खिलाड़ी का मोल सिर्फ जीत में नहीं, बल्कि उस सफर में है जहां उसने हारकर सीखा, गिरकर संभला और अंत में पूरी दुनिया को झुकने पर मजबूर कर दिया. वह गुमनाम रहता है, मगर हर पदक पर उसके हाथों के निशान होते हैं. वह पर्दे के पीछे रहता है, मगर हर जीत उसकी गवाही देती है.
और आज, जब भारतीय बेटियों ने पहली बार वर्ल्ड चैम्पियन बनने का इतिहास रचा है, तो वक्त है ऐसे हीरोज की कहानी कहने का- जिनकी कोचिंग में भारत ने आठ बार आईसीसी का ताज उठाया है.
पहले कहानी मान सिंह की...
भारत में क्रिकेट की जर्नी की बात करते ही पहला पड़ाव 1983 आता है. वो साल जब हम पहली बार वर्ल्ड चैम्पियन बने थे. इस वर्ल्ड कप की अनगिनत यादें हैं. कई कहानियां हैं. खिलाड़ियों के किस्से हैं. लेकिन इन सबके बीच एक नाम है, जो शायद सबसे कम चर्चा में रहा. उसका नाम है पीआर मान सिंह. 1983 वर्ल्ड कप टीम के मैनेजर.
1983 में जब भारतीय टीम लंदन के लिए रवाना हुई थी. तो शायद ही कोई क्रिकेट एक्सपर्ट रहा होगा जिसे ये भरोसा होगा कि भारत चैम्पियन बन सकता है. यहां तक की एक मैगजीन ने इस वर्ल्ड कप की शुरुआत से पहले ये तक लिख दिया था कि भारत जैसी टीमों को इसमें हिस्सा नहीं लेना चाहिए. वो सिर्फ वक्त बर्बाद करने आए हैं.
उस मैगजीन में लिखे शब्दों को तब शायद ज्यादातर लोगों ने सही मान लिया था. लेकिन मान सिंह को इसकी टीस थी. जब भारत ने विश्वकप जीता तो मान सिंह ने इस आर्टिकल के लेखक डेविड फ्रिथ को लेटर लिखा. आखिरकार फ्रिथ ने एक तस्वीर छापी जिसमें वो भारत के खिलाफ लिखे अपने शब्दों को खाते दिखे. उसकी हेडलाइन थी 'Edible Words'. मान सिंह तब भारतीय टीम के महज मैनेजर भर नहीं थे. वह खिलाड़ियों के लिए अभिभावक भी थे और दोस्त भी. वह उनकी हर जरूरतों का ख्याल रखते रहे. और सबसे बड़ी बात वो ये भरोसा दिलाते रहे कि तुम चैम्पियन बन सकते हो.
जॉन राइट की कहानी साल 2002...
जॉन राइट न्यूजीलैंड के पू्र्व कप्तान हैं. लेकिन साल 2000 से लेकर 2005 तक उन्होंने भारतीय टीम के कोच के तौर पर भी काम किया. ये वही दौर है जब दुनिया में ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत का क्रिकेट में बोलबाला था. राइट ने भारतीय टीम को निखारने में बड़ी भूमिका अदा की है. उनकी कोचिंग में भारतीय टीम साल 2002 में आईसीसी चैम्पियनशिप की संयुक्त विजेता रही. और साल 2003 में वनडे वर्ल्ड कप में फाइनल तक का सफर तय किया. फाइनल में भारत को ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा.

कहानी लालचंद राजपूत की...
टीम इंडिया के पूर्व खिलाड़ी लालचंद राजपूत का कोचिंग करियर बेहद शानदार रहा है. जब पहली बार टी20 वर्ल्ड कप का आयोजन 2007 में हुआ तो लालचंद राजपूत को ही टीम का कोच बनाकर दक्षिण अफ्रीका भेजा गया.
ये वो दौर था, जब भारतीय टीम के अधिकतर खिलाड़ी टी20 फॉर्मेट नहीं खेलने की बात कह चुके थे. भारत के पास भी इस फॉर्मेट का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन लालचंद राजपूत ने भारतीय टीम में जोश भरा और पहली ही बार में टीम विश्व विजेता बन गई. यही नहीं लालचंद राजपूत ने अफगानिस्तान क्रिकेट को संवारने में भी बड़ी भूमिका अदा की है. फिलहाल वो यूएई के कोच हैं.
गैरी कर्स्टन और विश्वविजेता भारत
साउथ अफ्रीका के पूर्व खिलाड़ी गैरी गैरी कर्स्टन को ऐसे समय में भारत का कोच बनाया गया था, जब माना जाता है कि ग्रेग चैपल की कोचिंग में भारतीय क्रिकेट बिखर चुका था. टीम में भी अविश्वसनीयता का माहौल था. 2007 की वनडे वर्ल्ड कप में भारतीय टीम बांग्लादेश से हारकर ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गई थी. साल 2008 में कस्टर्न को कोच बनाया जाता है.

कर्स्टन ने भारतीय टीम को फिर से संभाला. खिलाड़ियों में जोश भरा और आखिरकार भारत ने 2011 का वनडे विश्वकप जीता. एक समय धोनी ने कर्स्टनकी तारीफ करते हुए कहा था कि भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान नहीं भुलाया जा सकता है.
डंकन फ्लेचर का योगदान...
गैरी कस्टर्न के बाद जिम्बॉब्वे के पूर्व खिलाड़ी डंकन फ्लेचर को भारतीय क्रिकेट टीम की कोचिंग सौंपी गई. उनकी कोचिंग में भारत ने इंग्लैंड की धरती पर इंग्लैंड को हराकर चैम्पियंस ट्रॉफी अपने नाम की थी. वो 2015 वर्ल्ड कप में भी भारतीय टीम के कोच रहे. लेकिन भारतीय टीम खिताब नहीं जीत सकी.
यह भी पढ़ें: 'ये 7 घंटे ऐसा खेलो... ', WC फाइनल से पहले कोच मजूमदार ने ऐसे भरा था हरमन ब्रिगेड में जोश
राहुल द्रविड़ और साल 2024...
राहुल द्रविड़ के क्रिकेट करियर को हम सभी जानते हैं. उन्होंने अपने बल्ले से टीम इंडिया को कई मुकाबले जिताए हैं. लेकिन अपनी कोचिंग में भी उन्होंने इतिहास रचा है. अंडर-19 टीम की कोचिंग करते हुए द्रविड़ ने कई युवाओं को हीरो बनाया है. पंत, सुंदर और ईशान किशन जैसे कई खिलाड़ी हैं, जिनके करियर को एक नई दिशा देने में द्रविड़ की बड़ी भूमिका है.
नवंबर 2021 में वह भारतीय टीम के कोच बने थे. उनकी कोचिंग में भारतीय टीम ने साल 2023 वनडे वर्ल्ड कप का सफर फाइनल तक अविजित रहकर किया. हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के हाथों उसे हार मिली. लेकिन अगले ही साल द्रविड़ की कोचिंग में भारत ने 2007 के बाद 2024 में टी20 वर्ल्ड कप अपने नाम किया.
गौतम गंभीर और चैम्पियंस ट्रॉफी
भारतीय टीम ने जब साल 2007 में टी20 और साल 2011 में वनडे वर्ल्ड कप जीता तो इस जीत के हीरो थे गौतम गंभीर. जिन्होंने दोनों फाइनल में भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाए थे. जब उन्हें कोचिंग में मौका मिला तो यहां भी गंभीर छाए हुए हैं. गंभीर की कोचिंग में भारतीय टीम ने इसी साल चैम्पियंस ट्रॉफी का खिताब अपने नाम किया है.

अब बात अमोल मजूमदार की...
अमोल की कहानी सबसे जादुई है. एक खिलाड़ी जिसे एक समय पर टैलेंट की खान कहा जाता था. तेंदुलकर से उसकी तुलना होती थी. घरेलू क्रिकेट का रिकॉर्ड इतना शानदार की उसे कोई देखे तो हैरानी जताए कि ऐसे खिलाड़ी को भला टीम इंडिया में मौका क्यों नहीं मिला. लेकिन किस्मत कहें या संयोग अमोल कभी भारत के लिए नहीं खेले. लेकिन कोचिंग में उन्होंने इतिहास रचा है.
अमोल को साल 2023 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम का कोच बनाया गया था. लेकिन दो ही साल के भीतर उन्होंने भारतीय महिला खिलाड़ियों को वर्ल्ड चैम्पियन बनाया है. यह खिताब पहली बार भारत की बेटियों के नाम आया है. इसका बड़ा क्रेडिट अमोल को जाता है. उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट में एक नया जुनून भरा है जिसके चलते बेटियों ने इतिहास रचा है.