आयुर्वेदिक एंटीबायोटिक फीफाट्रोल 7 दिन में श्वसन तंत्र के संक्रमण यानी फेफड़ों के इंफेक्शन से निजात दिला सकती है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के शोधार्थियों ने देश के विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों पर रोगियों पर किए एक अध्ययन में पुष्टि की है कि यह दवा ऊपरी श्वसन तंत्र के संक्रमण में फायदेमंद है.
इससे पहले भोपाल स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने फीफाट्रोल को वायरस, बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण का नियंत्रण करने में कारगर बताया था. इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल ऑफ आयुर्वेदा एंड योगा में प्रकाशित स्टडी में शोधार्थियों ने बताया कि फीफाट्रोल में शामिल पांच औषधियां सुदर्शन वटी, संजीवनी वटी, गोदांती भस्म, त्रिभुवन कीर्ति रस और मृत्युंजय रस प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. साथ ही वायरस, बैक्टीरिया व परजीवी संक्रमण से भी बचाता है.

इसमें आठ बूटियां तुलसी, कुटकी, चिरायता, मोथा, गिलोय, दारुहल्दी, करंज, अपामार्ग के भी औषधीय गुण हैं. अपामार्ग और करंज वायरस से होने वाले दुषप्रभावों से बचाता है. कुटकी लीवर को ठीक करती है. तुलसी और गोदांती भस्म में एंटीवायरल गुण हैं. त्रिभुवन कीर्ति रस जुकाम को कम करता है. संजीवनी वटी से पसीना निकलता है जिससे शरीर का तापमान गिरकर सामानय हो जाता है.
दिसंबर 2019 से अप्रैल 2020 में उत्तराखंड के मदरहुड विश्वविद्यालय, गाजियाबाद स्थित आईएमटी और देहरादून स्थित उत्तरांचल आयुर्वेद कॉलेज के शोधार्थियों ने संयुक्त तौर पर पूरा किया है. देश भर के 203 मरीजों पर इस दवा का टेस्ट किया था. उपचार के दौरान पहले, चौथे और सातवें दिन मरीजों के विभिन्न पैरामीटर की जांच की गई. इन्हें दिन में दो बार खुराक दी गई. चौथे दिन मरीजों के लक्षणों में 69.5% तथा सातवें दिन 90.36% सुधार देखा गया.
शोधार्थियों का यह भी कहना है कि ऊपरी श्वसन तंत्र में संक्रमण की वजह से खांसी, कफ या फिर सूखी खांसी की शिकायत होती है. यह सर्दी के अलावा वायु प्रदूषण की वजह से भी हो सकता है. शोधार्थियों के अनुसार, इस तरह के संक्रमण के कारण प्रतिवर्ष दुनिया पर 22 अरब डॉलर का आर्थिक बोझ पड़ता है.