Hanuman Jayanti 2025: आज हनुमान जयंती है और पूरे देश में हनुमान जयंती बड़े ही धूमधाम के साथ मनाई जा रही है. लोग हनुमान जी के मंदिर पहुंच रहे हैं और उनसे अपनी हर इच्छा की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते देखे जा रहे हैं. हनुमान जन्मोत्सव हिंदू पर्व है और हर साल यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ था और वे चिरंजीवी हैं और भगवान श्री राम के नाम का जाप कर रहे हैं. हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवताओं में से एक माना जाता है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ रामायण ही नहीं, महाभारत में भी भगवान हनुमान दो बार दिखाई देते हैं. रामायण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भगवान हनुमान महाभारत में महाबली भीम से पांडवों के 12 साल के वनवास के दौरान मिले थे, इन्हें चिरंजीवी भी कहा गया है. कई जगह तो यह भी कहा गया है कि भीम और हनुमान जी दोनों भाई थे क्योंकि भीम और हनुमान जी दोनों ही पवन देव के पुत्र थे. अगर आप महाभारत में हनुमान जी की भूमिका की पूरी कथा जानना चाहते हैं तो चलिए जानते हैं.
पहली कथा
जब हनुमान जी ने किया था भीम का घमंड चूर
हनुमान जी की भीम से पहली मुलाकात द्वापर युग में हुई थी. महाभारत की एक कथा के अनुसार, 12 साल के वनवास के दौरान एक बार द्रौपदी ने भीम से कहा कि उसे सौगंधिका फूल चाहिए और भीम उस फूल को ढूंढने वन में चले गए. तभी उनके रास्ते में एक बड़ा सा वृद्ध वानर लेटा हुआ था. यह देख कर भीम ने वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ हटा लें जिसे उन्हें निकलने का रास्ता मिल जाए. इस पर वानर ने कहा कि वह बहुत वृद्ध हैं और वे अपने आप अपनी पूंछ नहीं हटा सकते हैं. तब भीम ने उस वृद्ध वानर की पूंछ हटाने के लिए पूरी ताकत लगा दी. लेकिन, पूंछ जरा भी नहीं हिली. तब भीम को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण वानर नहीं है. भीम ने उनसे पूछ की आप कौन है, तब हनुमान जी अपने असली रूप में आए और भीम को आशीर्वाद दिया.
दूसरी कथा
अर्जुन ने दी हनुमान जी को चुनौति
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ अकेले अर्जुन वन में विहार करने चले गए. घूमते-घूमते वे दक्षिण दिशा में रामेश्वरम चले गए. जहां उन्हें प्रभु श्री राम का बनाया हुआ सेतु दिखाई दिया. यह देख कर अर्जुन ने कहा, ' श्री राम को सेतु बनाने के लिए वानरों की क्या जरूरत थी, श्री राम खुद ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे. उनकी जगह मैं होता तो यह सेतु बाणों से बना देता.' यह सुन कर हनुमान ने कहा कि 'बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार संभल नहीं सकता है.' इस पर अर्जुन ने हनुमान जी को चुनौति देते हुए कहा कि, 'यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से सेतु टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा.' हनुमान जी ने कहा, 'मुझे स्वीकार है. मेरे दो चरण ही इस सेतु ने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा.' तब अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार कर दिया. लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ, हनुमान जी ने विराट रूप धारण कर लिया. फिर, हनुमान जी प्रभु श्री राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए. पहला पग रखते ही सेतु हिलने लगा और दूसरा पैर रखते ही सेतु टूटने लगा.
यह देख कर अर्जुन ने हार मान ली और वह अपने आपको समाप्त करने जा रहे थे, वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और उन्होंने अर्जुन से कहा कि वह फिर से सेतु बनाएं लेकिन इस बार वे प्रभु श्री राम का नाम लेकर सेतु बनाएं जिससे वह नहीं टूटेगा. दूसरी बार सेतु के तैयार होने के बाद हनुमान जी फिर से उस पर चले लेकिन इस बार सेतु नहीं टूटा.
हनुमान जी विराजमान हुए अर्जुन के रथ पर
इससे खुश होकर हनुमान जी ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे. इसलिए, कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज में हनुमान जी विराजमान हुए और अंत तक उनकी रक्षा की. कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंतिम दिन श्री कृष्ण ने हनुमान जी को अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा और उसके बाद श्री कृष्ण रथ से उतरे. श्री कृष्ण ने हनुमान जी का धन्यवाद किया कि उन्होंने उनकी रक्षा की. लेकिन जैसे ही हनुमान अर्जुन के रथ से उतर कर गए, वैसे ही रथ में आग लग गई. यह देख कर अर्जुन हैरान रह गए. श्री कृष्ण उन्हें बताते हैं कि कैसे हनुमान जी उनकी दिव्य अस्त्रों से रक्षा कर रहे थे. इससे हमें पता चलता है कि कैसे हनुमान जी सिर्फ रामायण के ही नहीं बल्कि महाभारत के भी एक सबसे महत्वपूर्ण किरदार रहे.