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धर्म

सीता के धरती में समाने के बाद कैसा रहा श्री राम का जीवन?

सीता के धरती में समाने के बाद कैसा रहा श्री राम का जीवन?
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ज्यादातर लोग जानते हैं कि ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में श्री राम की मुलाकात अपने पुत्रों लव-कुश और पत्नी सीता से हुई थी. लोग यह भी जानते हैं कि कैसे अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद सीता ने अपने जीवन का त्याग कर दिया था.  राम अपने पुत्रों के साथ अयोध्या लौट आए और महल में उनके लिए एक नया घर बनाया. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सीता मां के पृथ्वी में समा जाने के बाद राम के शेष जीवन का क्या हुआ?

सीता के धरती में समाने के बाद कैसा रहा श्री राम का जीवन?
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जब राम अयोध्या लौटते हैं

भगवान राम के जीवन का अंत कैसा हुआ, इसकी जानकारी वाल्मीकि की रामायण से नहीं, बल्कि पद्म पुराण से मिलती है. सीता को खो देने के बाद, श्री राम ने कई वर्षों तक अयोध्या में शासन किया. उन्होंने अपने पुत्रों को राज्य का कामकाज संभालने के लिए तैयार किया.

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एक आदर्श राजा

अपने शासन के दौरान राम ने अयोध्या के लोगों के लिए कई यज्ञ भी किए. अयोध्या की प्रजा पहले से ही राम को अयोध्या का सबसे अच्छा और आदर्श राजा मानती थी.

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राम के पास ऋषि का आना

राम का जीवन ऐसे ही चलता रहता है. एक दिन एक बुद्धिमान ऋषि राजा राम से मिलने आए और उन्होंने एकांत में प्रभु राम से कुछ महत्वपूर्ण बात करने की अनुमति मांगी. राम विनम्रतापूर्वक ऋषि की बातें सुनने के लिए भूमि पर बैठ गए.

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लक्ष्मण को राम का निर्देश

ऋषि की सलाह के अनुसार, राम ने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि वह दरवाजे पर ही रहें और इस महत्वपूर्ण बातचीत के दौरान यदि कोई आता है तो उसे प्रवेश करने की अनुमति ना दें.

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काल देव कहते हैं कि राम अवतार खत्म होने वाला है

राम से मिलने आए ऋषि कोई और नहीं बल्कि समय के रूप में काल देव आए थे.  काल देव श्री राम को यह याद दिलाने के लिए आए थे कि पृथ्वी पर उनका 'समय' अब समाप्त हो गया है और उन्हें अब अपने मूल निवास वैकुंठ लौट जाना चाहिए.

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महर्षि दुर्वासा का आगमन

राम और काल देव के बीच चल रही गोपनीय बातचीत के दौरान ही महर्षि दुर्वासा का आगमन होता है. महर्षि दुर्वासा अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते थे. महर्षि दुर्वासा ने राम से तत्काल मुलाकात की अनुमति मांगी.

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लक्ष्मण का इंकार

लक्ष्मण महर्षि दुर्वासा को स्थिति समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन महर्षि दुर्वासा नहीं मानते हैं. वह लक्ष्मण पर क्रोधित हो जाते हैं और यहां तक कह देते हैं कि अगर उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया तो वह लक्ष्मण को श्राप दे देंगे. लक्ष्मण को समझ नहीं आता कि वह भाई के आदेश की अवहेलना करें या श्राप सहें?

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लक्ष्मण स्थान छोड़ने का फैसला करते हैं

लक्ष्मण को इस बात का एहसास होता है कि यह सारी स्थिति उन्हें उनका अंतिम मार्ग दिखाने का संकेत थी. वह सरयू नदी में समा जाते हैं और अनंत शेष का रूप ले लेते हैं.

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राम का अनुगमन

राम, महा विष्णु के राम अवतार को समाप्त करने के तैयारी में होते हैं, तभी उन्हें लक्ष्मण के बारे में पता चलता है. वह भी सरयू नदी में अदृश्य देवों के साथ चलते जाते हैं और इस प्रकार, उनका राम अवतार समाप्त हो जाता है.

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राम फिर से देवता बन जाते हैं

सरयू में समाने के तुरंत बाद महाविष्णु अपने मूल रूप में, उसी स्थान पर प्रकट हुए, जिस स्थान पर लोग पहले से ही इकट्ठा थे. उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया. राम विष्णु और लक्ष्मण आदिशेष हो गए थे.

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ब्रह्मांड के निर्वाहक

हालांकि ज्यादातर लोग मानते हैं कि राम का अंत ऐसे ही हुआ था फिर भी कुछ लोगों की इससे अलग राय है. पुराणों में इस बात का जिक्र है कि ब्रह्माण्ड के पालनहार भगवान विष्णु अपने अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकते हैं.  ब्रह्माण्ड के विनाशक के रूप में केवल शिव ही यह काम कर सकते हैं.

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वराह अवतार

तार्किक नजरिए से समझा जाए तो राम का अंत भी विष्णु के पहले अवतारों की तरह ही हुआ था. जैसे कि कालिका पुराण में जिक्र है कि अपने कर्तव्यों की पूर्ति के बाद विष्णु का वराह अवतार पारिवारिक संबंधों के मोहमाया में फंस गया था. उस स्थिति में वराह ने स्वयं अपना जीवन समाप्त नहीं किया, बल्कि देवताओं ने शिव की मदद लेने के लिए कैलाश का रुख किया.

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शिव का अवतार

देवताओं की विनती के बाद शिव पक्षी-जानवर से बना शरभ अवतार लेते हैं जो वराह से युद्ध करके विष्णु अवतार को मुक्त कराते हैं. इसी तरह भगवान शिव के शरभ अवतार ने नरसिंह अवतार को भी नष्ट किया था.

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राम ने शरीर का त्याग अपनी इच्छानुसार कैसे किया?

भगवान राम स्वेच्छा से अपना अस्तित्व त्यागने वाले पहले अवतार थे क्योंकि उन्होंने एक आदर्श मानव (पुरुषोत्तम) का जीवन जिया. उन्हें लोगों के सामने धर्म का एक उदाहरण स्थापित करना था. एक रहस्यमय जानवर के हाथों एक हिंसक मृत्यु उनके इस अवतार के लिए उचित नहीं था. इसलिए उन्होंने नदी में समाकर इस अवतार को खत्म किया.
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