दशमी के दिन पूजा पंडालों में पूरी विधि विधान के साथ पूजा अर्चन करके मां दुर्गा की विदाई की जाती है. महिलाएं एक दूसरे के साथ सिंदर खेलती हैं और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं.
पूरे चार दिन पूजा पंडालों से ढाक की आवाज सुनाई देती है.
मां दुर्गा की विदाई के साथ ही उन्हें अगले साल आने का निमंत्रण दिया जाता है.
सुबह से ही पूजा अर्चना के लिए पंडालों में लोग एकत्रित होना शुरू हो जाते हैं.
हर तबके के लोग इन दिनों पूरे उल्लास के साथ दुर्गा पूजा मनाते हैं और पूजा पंडाल में पहुंचकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं.
पूरे देश में 10 दिन तक इस उत्सव को खूब धूमधाम से मनाया जाता है.
दुर्गा पूजा न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत है बल्कि महिला सशक्तिकरण को भी दिखाता है.
पांच दिन मां दुर्गा अपने बच्चों गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ यहां आती हैं और दशमी के दिन लौट जाती हैं.
मां दुर्गा को विदा करने के लिए पंडाल में पहुंचे लोग.
दशमी के दिन मां दुर्गा के विसर्जन से वह अपने ससुराल लौट जाती हैं.
दुर्गा पूजा देश के हर कोने में मनाया जाता है. इस समय मां दुर्गा अपने बच्चों के साथ अपने मायके आती हैं.
कोलकाता के सोवा बाजार राजबाड़ी में पारंपरिक तरीके से तैयार होता भोग.
कोलकाता में सातगाछिया के दॉ परिवार की पूजा बहुत पुरानी है.
दुर्गा पूजा पंडाल में पूजा की विधि करते पंडित.
महाशष्ठी वाले दिन मां दुर्गा की प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है.
महानवमी वाले दिन 'यजना' पूजा पूरे मंत्रोच्चारण के साथ होती है.
दुर्गा पूजा पंडाल में मौज-मस्ती करते लोग.
नवमी के दिन शाम की आरती देतीं महिला.
दुर्गा पूजा पंडाल में लोग मां के दर्शन के लिए सुबह से ही पहुंच रहे हैं.