Dussehra 2025: इस साल दशहरा 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हर साल आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है. त्रेतायुग में भगवान राम ने रावण का वध करके अपनी पत्नी सीता को उसकी कैद से आजाद करवाया था. रावण महाबलशाली और अत्यंत ज्ञानी था. उसके पराक्रम से तीनों लोकों में कोहराम मचा रहता था. रामचरितमानस के अनुसार, रावण ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था और उनसे अमरत्व का वरदान मांग रखा था. इसलिए रावण का अंत लगभग असंभव था. इतना ही नहीं, रावण के साथ-साथ उसके भाई कुम्भकर्ण और विभीषण को भी ब्रह्मा जी से विशेष वरदान प्राप्त थे.
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक चौपाई में लिखा है-
कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई। परम उग्र नहिं बरनि सो जाई॥
गयउ निकट तप देखि बिधाता। मागहु बर प्रसन्न मैं ताता॥
अर्थ- तीनों भाई ने अनेकों प्रकार की बड़ी ही कठिन तपस्याएं की, जिसका कोई वर्णन नहीं किया जा सकता. इनकी तपस्या से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और बोले- मैं तुम तीनों की तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूं. मांगो जो वरदान मांगना चाहते हो. तब रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण ने अपनी-अपनी इच्छाएं बताई और वरदान मांगा.
तुलसीदास आगे लिखते हैं-
करि बिनती पद गहि दससीसा। बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा॥
हम काहू के मरहिं न मारें। बानर मनुज जाति दुइ बारें॥
एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा। मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा॥
पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ॥
अर्थ- रावण ने ब्रह्मा जी के चरण पकड़कर अमरत्व का वरदान मांगा. रावण ने कहा हे जगदीश्वर! वानर और मनुष्य इन दो जातियों को छोड़कर इस संसार में मेरा अंत किसी के हाथों नहीं होना चाहिए. रावण के घर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव और ब्रह्मा जी ने उसे वैसा ही वरदान दे भी दिया.
यही कारण है कि भगवान राम की सेना वानरों से भरी थी और वो स्वयं भगवान राम विष्णु के सातवें अवतार के रूप में अवतरित हुए, जो रावण के विनाश की वजह बने.
इसके बाद ब्रह्मा जी कुम्भकरण के पास गए. लेकिन उसे देखकर ब्रह्मा जी बड़े आश्चार्य में पड़ गए. इस विषय में तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है-
जौं एहिं खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू।।
सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नींद मास षट करी।।
अर्थ- कुम्भकरण को देखकर ब्रह्मा जी के मन ख्याल आया कि यदि यह दुष्ट नित्य आहार करेगा तो सारा संसार ही उजाड़ देगा. यही सोचकर ब्रह्मा जी ने सरस्वती की प्रेरणा करके उनकी बुद्धि फेर दी. फलस्वरूप कुम्भकर्ण ने ब्रह्मा जी से छह महीने की नींद मांगी. इसे लेकर किंवदंतियां भी हैं कि कुम्भकरण ने ब्रह्मा जी से इंद्रासन की जगह निद्रासन मांग लिया था.
गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु।
तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु॥
अर्थ- इसके बाद ब्रह्मा जी विभीषण के पास गए और बोले- हे पुत्र! तुम्हारी तपस्या से मैं प्रसन्न हुआ. मांगो जो वरदान मांगना चाहते हो. इस पर विभीषण ने ब्रह्मा जी से भगवान के चरण कमलों में निर्मल प्रेम की मांग की. विभीषण के अंदर स्वार्थ, अहंकार और छल-कपट जैसे भाव नहीं थे. उसका जीवन ईश्वर की भक्ति और सच्ची श्रद्धा को ही समर्पित था.