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Basat Panchami 2023: यहां है मां सरस्वती के द्वादश रूपों वाला इकलौता मंदिर, जानें खासियत

आज बसंत पंचमी का त्योहार है. इस मौके पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है. बसंत पचंमी के इस खास मौके पर आज हम आपको काशी स्थित मां सरस्वती के द्वादश रूपों वाले एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. भक्तों के बीच इस मंदिर का काफी ज्यादा महत्व है. तो आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से.

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मां वाग्देवी का मंदिर
मां वाग्देवी का मंदिर

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पचंमी तिथि को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. बसंत पंचमी के इस त्योहार को आज 26 जनवरी 2023 गुरुवार के दिन मनाया जाता है है. मां सरस्वती क ज्ञान और बुद्धि की देवी माना जाता है. छात्रों के लिए यह दिन काफी खास होता है. इस दिन मां सरस्वती की सच्चे दिल से पूजा करने पर ज्ञान की प्राप्ति होती है. बसंत पंचमी के इस मौके पर आज हम आपको मां सरस्वती के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो काफी अनोखा है और यहां दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. आइए जानते हैं इस खास मंदिर के बारे में- 

धर्म की नगरी काशी में मां सरस्वती का एक द्वादश रूपों वाला मंदिर है.  दावा किया जाता है कि पूरे उत्तर भारत में अपने आप में ऐसा अनोखा मंदिर सिर्फ काशी में ही है. वाराणसी के संपूर्णानंद विवि में स्थित यह मंदिर ढाई दशक पहले स्थापित हुआ था. तभी से मां वाग्देवी के इस मंदिर का काफी महत्व है. 

माँ वाग्देवी के दर्शन से बढ़ती है एकाग्रता और स्मरण शक्ति

आपने अक्सर द्वादश ज्योतिर्लिंगों का जिक्र सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि धर्म-आध्यात्म की नगरी काशी में मां सरस्वती का भी द्वादश रूपों वाला मंदिर है. लगभग ढाई दशक पहले शहर के बीचोबीच संपूर्णानंद संस्कृत विवि में निर्मित यह मंदिर भक्तों को इस कदर भाता है कि वह अक्सर मंदिर में मत्था टेकने आते हैं. खासकर ना केवल इस विवि के छात्र, बल्कि शहर भर से छात्र-छात्राएं यह मत्था टेकना नहीं भूलते हैं. छात्रों का दावा है कि यहां मां वाग्देवी के दर्शन मात्र से पढाई में एकाग्रता और स्मरण शक्ति में इजाफा होता है.

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Maa VagDevi Mandir

27 मई 1998 को बनकर तैयार हुआ था मंदिर

मां वाग्देवी यानी मां सरस्वती मंदिर के व्यवस्थापक और संपूर्णानंद संस्कृत विवि के वेद विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो महेंद्र पांडेय ने बताया कि 8 अप्रैल 1988 में मंदिर के निर्माण पर लेकर मुहर लगी. मंदिर को लेकर पूर्व प्रति कुलाधिपति डॉ विभूति नारायण सिंह और पूर्व कुलपति वेंकटाचलन ने संकल्पना की थी. जिसके बाद पूर्व कुलपति प्रो मंडल मिश्रा जी के समय पर यह मंदिर बनकर तैयार हुआ. 27 मई 1998 को यह मंदिर बनकर तैयार हुआ और इसका उद्घाटन किया गया और उसी वक्त विश्वविद्यालय को मंदिर का दायित्व सौंप दिया गया. उस वक्त उत्तर प्रदेश के निर्माण और पर्यटन मंत्री कलराज मिश्रा और शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती और तत्कालीन कुलपति मंडल मिश्रा मौजूद थे.

vagdevi maa

क्यों है मां वाग्देवी की मूर्ती का वर्ण काला

उन्होंने आगे बताया कि ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के धार क्षेत्र में राजा भोज के समय स्थापित था, लेकिन खंडित हो जाने के बाद संपूर्णानंद में पूर्व कुलपति वेंकटाचलम जी के प्रयास से इसकी संकल्पना हुई इसके बाद पूर्व कुलपति मंडल मिश्रा जी के प्रयास के बाद यह मंदिर पूर्ण हो सका. इस मंदिर में द्वादश सरस्वती जी के विग्रह हैं जो उत्तर भारत में कहीं और नहीं है. इन द्वादश विग्रहों के अलग-अलग नाम भी हैं. जिसमें सरस्वती देवी, कमलाक्षी देवी, जया देवी, विजया देवी, सारंगी देवी, तुम्बरी देवी, भारती देवी, सुमंगला देवी, विद्याधरी देवी, सर्वविद्या देवी, शारदा देवी और श्रीदेवी है.

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 मां वाग्देवी की मूर्ती के काले वर्ण के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यह मूर्ति तमिलनाडु से मंगाई गई थी और इस मूर्ति का अर्थ इस तरह से निकाला जा सकता है कि हमारे शास्त्र, वेद और पुराण की रक्षा के लिए मां सरस्वती का यह वर्ण काला है, जिस तरह से माता काली का होता है. इसके अलावा मंदिर की शैली भी दक्षिण भारत की तरह ही है. यह पूरा मंदिर दक्षिणा शैली में बना हुआ है. 

बच्चों को दर्शन के लिए लाते हैं अभिभावक

वहीं,  मां वाग्देवी मंदिर के सहायक व्यवस्थापक संतोष कुमार दुबे ने बताया कि द्वादश सरस्वती के रूपों का मतलब है कि सभी प्रकार की विद्या की देवी. वाग्देवी मंदिर में दर्शन के बाद ही उनके संपूर्णानंद संस्कृत विवि के छात्र पढ़ाई करते हैं. मंदिर का मंडप और शिखर काफी अद्भुत है. उन्होंने बताया कि बच्चो की पढ़ाई शुरू करवाने से पहले अभिभावक बच्चों को यहां दर्शन कराने के लिए लेकर आते हैं. 


 

 

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