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Ayodhya Ram Mandir: जानें क्या होती है प्राण प्रतिष्ठा जिसके बाद पत्थर की मूर्ति बन जाती है भगवान

अयोध्या में आज रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू हो चुका है. देशभर में लोगों के बीच खुशी का माहौल है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त, शुभ योग और पूरी प्रक्रिया. साथ ही जानते हैं क्यों किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करनी जरूरी होती है.

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Ayodhya Ram Mandir
Ayodhya Ram Mandir

लंबे इंतजार के बाद अयोध्या में आज यानी 22 जनवरी 2024 को भगवान राम की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू हो चुका है. अयोध्या में रामलला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा की सभी तैयारियां पहले से ही पूरी हो चुकी थी. आज शुभ मुहूर्त में विधि विधान के साथ मंदिर के गर्भगृह में रामलला विराजमान होंगे इसके बाद सभी भक्त भगवान राम के दर्शन कर सकेंगे. बता दें कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान 16 जनवरी 2024 से ही शुरू हो गया था. 

प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त

आज अभिजीत मुहूर्त यानी दोपहर 12 बजकर 29 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट के बीच अयोध्या के नए मंदिर में भगवान की प्राण -प्रतिष्ठा शुरू हो चुकी है. इस दौरान सबसे पहले भगवान राम को जगाया गया. फिर विशेष मंत्रों का उच्चारण करके भगवान राम को स्नान कराया गया और उनका पूरे विधि-विधान से श्रृंगार किया गया. इस तरह से 84 सेकेंड का यह समय प्राण प्रतिष्ठा के लिए काफी खास है.

प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्यों खास है 22 जनवरी की तारीख?

राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए देशभर के विद्वानों और शीर्ष ज्योतिषियों से इसका शुभ मुहूर्त निकलवाया गया था. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा अति सूक्ष्म मुहूर्त में की जा रही है. इसके लिए बस 84 सेकंड का समय है. प्राण प्रतिष्ठा का यह मुहूर्त पंडित गणेश्वर शास्त्री ने निकाला है. राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला की स्थापना के लिए 17 जनवरी से 25 जनवरी के बीच की तारीख बताई थी. इसमें से 22 जनवरी को श्रेष्ठ माना गया. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्योतिष गणना के अनुसार, 22 जनवरी यानी आज की तिथि और मुहूर्त अग्निबाण मृत्यु बाण,चोरवाण, नृपवाण और रोगवान से मुक्त है.

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आज प्राण-प्रतिष्ठा पर बन रहे हैं ये सभी शुभ योग

आज 22 जनवरी यानी की पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर कई तरह के शुभ योग बन रहे हैं. आज के इस शुभ दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, अमृत सिद्धि योग, अमृत योग और इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश का संयोग है. 

क्यों जरूरी होती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा? 

हिंदू धर्म के मुताबिक, किसी भी मंदिर में देवी-देवता की मूर्ति स्थापित करने से पहले उस मूर्ति की विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा करना बेहद जरूरी होता है. प्राण प्रतिष्ठा का मतलब है कि मूर्ति में प्राणों की स्थापना करना या  जीवन शक्ति को स्थापित करके किसी भी मूर्ति को देवता के रूप में बदलना. प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मंत्रों का उच्चारण और विधि-विधान से पूजा करके मूर्ति में प्राण स्थापित किए जाते हैं.  किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करते समय कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है. इन सभी चरणों को अधिवास कहा जाता है. हिंदू धर्म के पुराणों और ग्रंथों में प्राण प्रतिष्ठा का वर्णन किया गया है. हिंदू धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, बिना प्राण प्रतिष्ठा के किसी भी प्रतिमा की पूजा नहीं की जा सकती है. प्राण प्रतिष्ठा से पहले तक प्रतिमा निर्जीव रहती है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही उसमें जीवन आता है और वह पूजनीय योग्य बन जाती है. 

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क्या है प्राण प्रतिष्ठा की पूरी प्रक्रिया?

प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कई चरण होते हैं, जिसे अधिवास कहा जाता है. अधिवास वह प्रक्रिया है जिसमें मूर्ति को विभिन्न चीजों में डुबोया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत मूर्ति को पहले पानी में रखा जाता है. फिर मूर्ति को अनाज में रखा जाता है. इसके बाद मूर्ति को फलों में रखा जाता है और फिर इसे औषधि, केसर और फिर घी में रखा जाता है. 

इस प्रक्रिया के बाद मूर्ति को विधि-विधान के साथ स्नान कराया जाता है. इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से मूर्ति को स्नान और अभिषेक किया जाता है. स्नान के बाद कई तरह के मंत्रों का उच्चारण करके भगवान को जगाया जाता है. इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा की पूजन क्रिया शुरू की जाती है. पूजा के वक्त मूर्ति का मुख पूर्व दिशा में रखा जाता है और इसके बाद सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके उन्हें इस शुभ कार्य में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस दौरान मंत्रों का उच्चारण किया जाता है. 

इसके बाद पूजन की सभी क्रियाएं की जाती हैं.  इस दौरान भगवान को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है. प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति को आइना दिखाया जाता है. माना जाता है कि भगवान के आंखों में इतना तेज होता है कि उसका तेज सिर्फ भगवान खुद की सहन कर सकते हैं. अंत में आरती-अर्चना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है.

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