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मनीष सिसोदिया के लिए पटपड़गंज के बजाय जंगपुरा सीट को AAP क्यों सुरक्षित मान रही है? |Opinion

दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए टिकट बांटने में आगे होकर आम आदमी पार्टी ने लीड ले लिया है. पर जिस तरह मनीष सिसोदिया तक की सीट बदली जा रही है उसे देखकर लगता है कि पार्टी एंटी इनकंबेंसी को लेकर बहुत भयभीत है. क्या मनीष सिसोदिया की सीट बदलकर आम आदमी पार्टी उन्हें बचा लेगी?

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दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया

आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए युद्ध स्तर पर लगी हुई है.अभी  दूसरी पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए कमर भी नहीं कसा है, पर आम आदमी पार्टी अब तक 31 प्रत्य़ाशियों की सूची जारी कर चुकी है. स्वयं पार्टी के प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पदयात्रा कर रहे हैं. यही कवायद आम आदमी पार्टी को अन्य पार्टियों से चुनावों में एज दे देती है. अरविंद केजरीवाल ही नहीं पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी झुग्गी झोपड़ियों में पहुंच रहे हैं. सिसोदिया दो हफ्ते पहले सुंदर नर्सरी के पास झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर में पहुंचे. जानकारों ने तभी यह घोषणा कर दी थी कि हो सकता है कि मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज सीट को छोड़कर जंगपुरा को गले लगा लें. सोमवार को, जब आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की, तो इस संभावना की पुष्टि हो गई. सिसोदिया की जंग अब जंगपुरा में ही होगी. पर आम आदमी पार्टी ने मनीष सिसोदिया को जंगपुरा लाने के पीछे क्या कारण रहे? पार्टी को क्यों लगता है कि अगर मनीष सिसोदिया की जीत जंगपुरा से सुनिश्चित है.

1- गढ़वाली और पूरबियों पर नहीं सिखों, पंजाबियों, मुस्लिम बस्तियों पर है भरोसा

जंगपुरा को सिख और पंजाबी बहुल इलाका माना जाता रहा है.दूसरी तरफ पटपड़गंज में उत्तराखंडी और पूर्वी यूपी-बिहार के लोगों की बहुतायत है. आम आदमी पार्टी को लगता है कि उत्तराखंडी और यूपी बिहार के वोट बीजेपी को जा सकते हैं. इसके मुकाबले सिख, मुस्लिम, दलित बस्तियों के वोट आम आदमी पार्टी को मिलेंगे. शायद यही कारण है कि पार्टी जंगपुरा को एक सेफ सीट मानकर चल रही है. पार्टी को लगता है कि नेहरू नगर, सनलाइट कॉलोनी, निजामुद्दीन बस्ती और दरियागंज जैसे क्षेत्रों की दलित और मुस्लिम आबादी आम आदमी पार्टी को वोट ही देगी. हालांकि कांग्रेस अगर आम आदमी पार्ट से कोई समझौता नहीं करती है और किसी मजबूत उम्मीदवार को यहां से उतारती है तो मनीष सिसोदिया के लिए यहां की सीट भी खतरनाक हो जाएगी.  आम आदमी पार्टी ने 2013 के पहले चुनाव में मनिंदर सिंह धीर को उतारा था. उन्होंने जीत हासिल की और दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष बने. हालांकि, उन्होंने 2015 के चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम लिया. धीर के पार्टी छोड़ने के बाद यहां से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बने प्रवीण कुमार ने जीत का प्रतिशत 48% तक बढ़ा दिया और 2020 में इसे 50% तक पहुंचा दिया.

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आम आदमी पार्टी को लगता है कि मनीष सिसोदिया के लिए इससे बेहतर सीट हो ही नहीं सकती है. प्रवीण कुमार अपना नाम कटने के बावजूद पार्टी के प्रति पूरी आस्था दिखा रहे हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा कि दिल्ली में शिक्षा क्रांति के जनक, मनीष सिसोदिया जी को बीजेपी की कठपुतली ईडी-सीबीआई ने झूठे मामलों में फंसा कर 17 महीने तक जेल में रखा. यह केवल अन्याय नहीं था, बल्कि जनता की आवाज को दबाने की साजिश भी थी. मैंने मनीष जी से कहा कि जंगपुरा की जनता इस अन्याय का जवाब देगी. हम उन्हें बड़े अंतर से जीत दिलाएंगे. इस लड़ाई में मैं मनीष जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हूं.

2- पटपड़गंज में सिसोदिया को क्यों थी हारने की नौवत

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि आम आदमी पार्टी के सामने एंटी इंकंबेंसी एक बड़ी चुनौती के रूप में है. शायद यही कारण है कि पार्टी हर सीट से किसी नए प्रत्याशी को लड़ाना चाहती है. साफ है कि लगातार तीन बार पटपड़गंज सीट से विधायक चुने जा चुके सिसोदिया के लिए भी मुश्किलें थीं. पिछले वर्ष 2020 के चुनाव में इसी सीट पर एक समय काफी मुश्किल में फंस गए थे. यहां तक कि वे कई राउंड तक भाजपा प्रत्याशी रविंद्र सिंह नेगी से पीछे चल रहे थे, आखिरी के कुछ राउंड में किसी तरह सिसोदिया ने जीत दर्ज की थी. 

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बता दें कि सिसोदिया साल 2020 के चुनाव में 10वें राउंड तक भाजपा प्रत्याशी रविंद्र सिंह नेगी से लगातार पिछड़ते रहे थे, उन्होंने 11वें राउंड में बढ़त बनाई थी, सिसोदिया ने रविंद्र सिंह नेगी को करीब 3300 मतों के अंतर से हराया था. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में सिसोदिया ने इसी सीट से भाजपा उम्मीदवार विनोद कुमार बिन्नी को और 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के नकुल भारद्वाज को हराया था.

दरअसल पटपड़गंज सीट का गणित काफी उलझा हुआ है. इस सीट पर उत्तराखंड के वोटर ज्यादा हैं. राजपूत वोटर विधानसभा चुनावों में अहम रोल अदा करते रहे हैं. साल 2020 के चुनाव में राजपूत वोटर्स रविंद्र सिंह नेगी के पक्ष में जमकर वोट डाले थे. मनीष सिसोदिया भी राजपूत हैं पर उत्तराखंडी नहीं. 2020 के चुनाव में गढ़वाली राजपूतों ने अपने हमभाई नेगी को ज्यादा वोट किया. कहा जा रहा है कि इस बार भी बीजेपी की तरफ से रविंद्र सिंह नेगी का टिकट मिलना लगभग तय है. ऐसे में सिसोदिया के लिए मुश्किलें बढ़ सकती थीं. 

3- गोपाल राय और मनीष सिसोदिया के अलग-अलग बयान 

आम आदमी पार्टी ने मनीष सिसोदिया की सीट तो बदल दी पर विपक्ष के हमलों से बचने के लिए ठीक से तैयारी नहीं की. आम आदमी पार्टी के दिल्ली संयोजक और आतिशी मंत्रिमंडल के सदस्य गोपाल राय ने सिसोदिया पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और कहीं से भी चुनाव जीत सकते हैं. अवध ओझा को जब पार्टी में शामिल कराया गया तो यह बात आई कि उन्हें कहां से लड़ाया जाए, इस पर सिसोदिया आगे आए कि इन्हें पटपड़गंज मेरी सीट दे दी जाए, मैं कहीं और से लड़ लूंगा. हालांकि इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सिसोदिया कहते हैं कि पटपड़गंज उनके राजनीतिक करियर का जन्मस्थान है. सिसोदिया कहते हैं कि इस जगह उन्होंने केवल इसलिए छोड़ा क्योंकि पिछले हफ्ते पार्टी में शामिल हुए अवध ओझा ने वहां से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. सिसोदिया जोर देते हुए कहते हैं कि जब अवध ओझा ने पार्टी में शामिल होकर पटपड़गंज से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, तो उनके दृष्टिकोण ने मुझे गहराई से प्रभावित किया. मुझे एहसास हुआ कि मुझे उनकी इस इच्छा का सम्मान करना चाहिए. गोपाल राय के अनुसार आम आदमी पार्टी समझ नहीं पा रही थी कि हाल ही में पार्टी में शामिल हुए अवध ओझा को कहां से चुनाव लड़ाया जाए. पर सिसोदिया कहते हैं कि अवध ओझा ने उनसे पटपड़गंज की सीट मांग ली.

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4- टिकट बांटने में सर्वे ही रहा मुख्य आधार

आम आदमी पार्टी की दूसरी सूची में यह बात भी साफ हो गई है कि आप को विधायकों से अधिक पार्षदों पर भरोसा है, शायद यही कारण है कि पार्टी ने अपने सात विधायकों के टिकट काट कर अपने पार्षदों को दिए हैं. सभी पार्षदों का विधायकों ने जनता के बीच अपने काम के आधार बनाकर टिकट हासलि किया है. इनमें मुकेश गोयल, प्रवीन कुमार, प्रेम चौहान, राकेश जाटव, पुनरदीप साहनी, दिनेश भारद्वाज व प्रदीप मित्तल के नाम शामिल हैं. चांदनी चौक से विधायक प्रहलाद सिंह साहनी के पार्षद बेटे को टिकट दिया गया है. मतलब साफ है कि आम आदमी पार्टी में टिकटों का बंटवारा बहुत सोच समझ कर किया जा रहा है. जिस तरह से टिकट काटे गए हैं उसका सीधा मतलब है कि सर्वे रिपोर्ट को महत्वपूर्ण आधार बनाया गया है.

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