तेज प्रताप यादव धीरे धीरे अपनी जमीन तैयार करने लगे हैं. अभी तक तो तेज प्रताप यादव की पहचान लालू यादव के बड़े बेटे की ही रही है, लेकिन अब वो उससे आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं. मजबूरी में ही सही, लेकिन वो अकेले निकल पड़े हैं.
धीरे धीरे वो अपना रंग भी दिखाने लगे हैं. अपना अलग रंग और पहचान दिखाने के लिए तेज प्रताप यादव पीले रंग की टोपी पहन रहे हैं. और, पीले रंग का इस्तेमाल करने वाले दूसरे नेताओं को बहुरूपिया करार देते हैं. असल में, बिहार में प्रशांत किशोर और यूपी में ओम प्रकाश राजभर के गले में पीले रंग का गमझा देखा जाता है. ओम प्रकाश राजभर तो पीले रंग के गमछे की अहमियत भी समझा चुके हैं.
बिहार की राजनीति करनी है, इसलिए तेज प्रताप के निशाने पर जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर होते हैं. तेज प्रताप की रैलियों में भीड़ तो पहले से ही होती रही है, अभी के मुश्किल वक्त में ये ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. तेज प्रताप यादव को कभी अपने समर्थकों से संवाद करते, तो कभी उनकी कृष्ण बनकर बांसुरी सुनाते भी देखा गया है - और अपनी पीली टोपी को भी वो कृष्ण से जोड़कर खुद को पेश करते हैं.
समर्थकों की भीड़ को संबोधित करते हुए तेज प्रताप कहते हैं, एक बहरूपिया... व्यापारी इस तरह का झंडा लगाकर घूम रहा है... जबकि ये हमारे भगवान श्रीकृष्ण का कलर है.
बिहार की राजनीति में तेज प्रताप का सक्रिय होना
पार्टी और परिवार से निकाले जाने के बाद कुछ दिनों तक तो तेज प्रताप यादव खामोशी अख्तियार किए हुए थे, लेकिन अब वो बात नहीं है. अब तो वो तेजस्वी यादव का नाम सुनते ही भड़क जाते हैं. ये ठीक है कि खुलकर नहीं बोलते, लेकिन बातों बातों में सब कुछ बोल जाते हैं. कहीं कोई परहेज अब नजर नहीं आता.
तेज प्रताप यादव की एक सार्वजनिक सभा के दौरान अचानक तेजस्वी का नाम लेकर नारा लगने लगा. 'अबकी बार तेजस्वी सरकार'. पहले की बात और थी. खुद को कृष्ण तो पहले भी बताते थे, लेकिन तब तेजस्वी यादव अर्जुन हुआ करते थे. अब सब कुछ बदल चुका है. अर्जुन अपनी जगह डटे हुए हैं, और कृष्ण बने तेज प्रताप को लालू यादव ने पार्टी आरजेडी के साथ साथ परिवार से भी बाहर कर दिया है.
राहुल गांधी तो ऐसी स्थितियों में फ्लाइंग किस देने लगते हैं, लेकिन तेज प्रताप नारेबाजी सुनते ही गुस्सा हो जाते हैं. लेकिन कोशिश ये जरूर होती है कि कोई राजनीतिक गलती न हो जाए. डांटने फटकारने का लहजा तो लालू यादव वाला ही होता है, लेकिन चेहरे पर गुस्सा नहीं छिपा पाते. बरस पड़ते हैं, 'फालतू काम मत करो... तुम आरएसएस का आदमी हो क्या? पुलिस पकड़ेगा और लेकर चल देगा... फालतू वाला बात मत करो... जनता का सरकार आता है... किसी व्यक्ति-विशेष का सरकार नहीं आता है... जो घमंड करेगा, वो जल्दी गिरेगा... अगर नौटंकी करोगे तो रोजगार नहीं मिलेगा.'
जाहिर है घमंड की बात भी तेजस्वी यादव के लिए ही होती है. और, ये बताना भी नहीं भूलते कि घमंड करने का क्या हश्र हो सकता है. समर्थकों को समझाते हैं कि कैसे उनके खिलाफ साजिश की जा रही है. कहते हैं, हमको भी तोड़ने का काम किया, लेकिन भगवान ने हमको मौका दिया है. ये भी बताते हैं कि उनको किसी पद या मुख्यमंत्री बनने का कोई लालच नहीं है.
रामायण और गीता का हवाला देते हुए अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं. याद दिलाते हैं कि भगवान राम को भी वनवास भेजा गया था, 'आदमी का कर्म प्रधान होता है', और बताते हैं कि वो अपने कर्मों के अनुसार काम कर रहे हैं, 'हम चुप बैठने वाले नहीं हैं, हम जनता के बीच में रहकर काम करेंगे.'
अपना इरादा जाहिर करने के साथ ही लोगों को अपने राजनीतिक विरोधियों से सतर्क रहने के लिए भी आगाह करते हैं. इशारा भी साफ तौर पर तेजस्वी यादव की तरफ ही लगता है. कहते हैं, जो अपनों का न हुआ, वो सूबे की जनता का क्या होगा?
तेज प्रताप यादव की ये सक्रियता बिहार की राजनीति में भले ही कोई करिश्मा न दिखाए, लेकिन उसे तो नुकसान पहुंचा ही सकती है, जो उनके टार्गेट पर आता है. और नेताओं की तरह तेज प्रताप ये तो नहीं कहते कि वो बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन महुआ विधानसभा क्षेत्र से निर्दल चुनाव जरूर लड़ेंगे. और, ये पूछे जाने पर कि महुआ से तो आरजेडी का उम्मीदवार भी चुनाव लड़ेगा, वो बिफर उठते हैं. वो तो यहां तक कह चुके हैं कि तेजस्वी यादव के खिलाफ भी चुनाव लड़ने से उनको परहेज नहीं है. कुछ दिन पहले तेज प्रताप को पत्रकारों ने बताया कि हो सकता है तेजस्वी यादव दो सीटों से चुनाव लड़ें, तो तेज प्रताप का जवाब था कि वो भी राघोपुर से चुनाव लड़ जाएंगे - हालात आने वाले दिनों में चाहे जैसे भी हों, लेकिन तेज प्रताप यादव अगर यूं ही अपने रास्ते चलते रहे तो तेजस्वी यादव की मुश्किलें जरूर बढ़ सकती हैं.
तेज प्रताप की सक्रियता तेजस्वी के लिए नुकसानदेह
कुछ दिन पहले तेजस्वी के रुख में थोड़ी नरमी देखी गई थी. तेज प्रताप का जिक्र आने पर जो कुछ भी तेजस्वी यादव ने बोला था, ज्यादातर कटाक्ष ही था लेकिन वैसा बिल्कुल नहीं था जैसा रिएक्शन तेज प्रताप को आरजेडी से निकाले जाने पर था. लेकिन, लालू परिवार की अंदरूनी कलह थमने के बजाए बढ़ती ही जा रही है. बताते हैं कि न तो सुलह के कोई आसार नजर आ रहे हैं, न ही तेज प्रताप की वापसी की कोई गुंजाइश ही.
और झगड़े का असली रूप तो रक्षाबंधन के मौके पर सामने आया था. क्योंकि, सभी बहनों ने तेज प्रताप को राखी नहीं बांधी थी. तेज प्रताप ने सोशल मीडिया के जरिए खुद ही बताया था कि किस किस ने उनको राखी भेजी है. रक्षाबंधन पर भी लालू परिवार में साफ बंटवारा देखने को मिला था. जिन बहनों को राजनीति करनी है, वे तेज प्रताप को छोड़कर तेजस्वी यादव के साथ खड़ी देखी गईं. जिनको राजनीति से मतलब नहीं है, वे ही तेज प्रताप से रिश्ता रख रही हैं.
परिवार जैसा ही बंटवारा पार्टी में भी नजर आता है. लालू यादव और राबड़ी देवी ही नहीं, तेज प्रताप आज भी आरजेडी के बहुत लोगों के दुलारे हैं. पार्टी में तेज प्रताप को पसंद करने वाले बातचीत तो करते ही हैं, मौका देखकर मिल भी लेते हैं. बस सरेआम मिलने से परहेज करना होता है.
बिहार की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले बताते हैं कि आरजेडी के वे नेता तेज प्रताप के लगातार संपर्क में हैं, जो विधानसभा टिकट के दावेदार हैं. जिनको चुनाव लड़ना है, वे तो लड़ेंगे ही. आरजेडी से टिकट नहीं मिला तो कहीं और प्रयास करेंगे. कहीं नहीं मिला तो ऐसे नेताओं को पूरी उम्मीद है कि तेज प्रताप तो चुनाव लड़ाएंगे ही - और अगर ऐसा हुआ तो नुकसान तो तेजस्वी यादव का ही होगा.