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पश्चिम की कोई चीज विज्ञान क्यों बन जाती है और पूर्व की चीज अंधविश्वास?

राजनीतिक और दूसरे तरह के प्रभुत्व के कारण हम एक किस्म के नतीजे पर पहुंच गए हैं कि अगर पश्चिम से कुछ आता है तो वह विज्ञान बन जाता है; अगर यह पूरब से आता है तो यह अंधविश्वास हो जाता है.

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विज्ञान बनाम अंधविश्वास
विज्ञान बनाम अंधविश्वास

सद्गुरुः प्राचीन समय से ही तमाम विदेशी यात्री भारत आते रहे हैं. महान अमेरिकन लेखक और विचारक मार्क ट्वेन ने भी ऐसा ही किया. अपने छोटे दौरे के बाद उसने कहा, ‘कोई भी चीज जो मनुष्य या भगवान के द्वारा कभी की जा सकती है, वह इस धरती पर की जा चुकी है.’

अधिकतर भारतीय उस रहस्यवाद और आध्यात्मिक प्रक्रिया की गहराई से अनजान हैं, जो भारत में हुई है और अभी भी जारी है. इस धरती को हमेशा दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में जाना जाता था, क्योंकि किसी दूसरी संस्कृति ने आंतरिक विज्ञान पर इतनी गहराई और समझ के साथ गौर नहीं किया है जितना इस संस्कृति ने किया है.

लेकिन पिछले सौ सालों में, जीवन के प्रति एक बहुत ही उतावले रवैये के कारण, हमने बहुत सी चीजों को छोड़ दिया है. राजनीतिक और दूसरे तरह के प्रभुत्व के कारण हम एक किस्म के नतीजे पर पहुंच गए हैं कि अगर पश्चिम से कुछ आता है तो वह विज्ञान बन जाता है; अगर यह पूरब से आता है तो यह अंधविश्वास हो जाता है.

कई चीजें जो आपकी दादी-नानी ने आपको बताई होंगी, आज शीर्ष वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में मानव प्रकृति के बारे में ‘महान’ खोजों के रूप में खोजी जा रही हैं. वे अरबों-खरबों डॉलर के शोध-अध्ययन के बाद जो कुछ कह रहे हैं, वह सब हम अपनी संस्कृति में पहले ही कह चुके हैं, क्योंकि यह कोई ऐसी संस्कृति नहीं है जो जीने की विवशताओं से विकसित हुई हो. यह एक ऐसी संस्कृति है जिसे ऋषियों और संतों ने सचेतन रूप से विकसित किया था - यह देखते हुए कि आपको कैसे बैठना चाहिए, आपको कैसे खड़ा होना चाहिए, और आपको कैसे खाना चाहिए. इसे ऐसे डिजाइन किया गया था कि वह मानव खुशहाली के लिए सर्वश्रेष्ठ हो और इसमें अत्यधिक वैज्ञानिक महत्व है.

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इस संस्कृति में हम हमेशा से जानते हैं कि पानी में याद्दाश्त होती है. यही कारण है कि पारंपरिक घरों में लोग तांबे का बर्तन रखते हैं, जिसे वे रोज धोते हैं, पूजा करते हैं और उसके बाद ही उसमें पीने का पानी भरते हैं. जिसे आप तीर्थ कहते हैं, वह बस यही है. आपने देखा होगा कि लोग मंदिर से उस एक बूंद को पाने के लिए कैसे संघर्ष करते हैं. भले ही आप एक अरबपति हों, फिर भी आप पानी की उस एक बूंद के लिए मर रहे हैं क्योंकि आप उस पानी को लेना चाहते हैं जिसमें ईश्वरीय स्मृति है.

आज, बहुत सारे अध्ययन हैं जो दिखाते हैं कि एक गर्भवती महिला जैसे खाती है, वह जिस तरह के लोगों के साथ रहती है, वह जिस तरह के लोगों के सामने आती है, उसका अगली पीढ़ी के लोगों पर बहुत बड़ा असर पड़ता है. लेकिन पिछले कुछ दशकों में, पूर्णतः गर्भवती महिलाएं ट्रेन, बस और शराबघरों में रही हैं. वे शराब पी रही हैं और धूम्रपान कर रही हैं. जब पूछा गया, "क्या इससे बच्चे पर असर नहीं पड़ेगा?" लोग कहेंगे, "नहीं. हमने रक्त मापदंडों का अध्ययन किया है, कुछ नहीं हुआ." अब, उस संस्कृति के 50 वर्षों के बाद, बहुत सारे अध्ययन कह रहे हैं कि यह वास्तव में लोगों की कई पीढ़ियों पर असर डाल रहा है.

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भारत में हम इसे लेकर हमेशा सतर्क रहे हैं. एक महिला के गर्भ धारण करने से लेकर प्रसव तक, और बाद में जब तक मां बच्चे को स्तनपान कराती है - एक पूरी प्रक्रिया बनाई गई है - उसे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, उसे किस तरह के लोगों से मिलना चाहिए, उसे कहां जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिए.

विज्ञान ने पिछले सौ सालों में अविश्वसनीय चीजें की हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है. आज हम सभी जिस आराम और सुविधा का आनंद ले रहे हैं, वह अवश्य ही धरती पर वैज्ञानिक प्रयासों का परिणाम है. साथ ही, भौतिक साधनों के माध्यम से - भौतिक चीजों को मापकर, भौतिक नियमों के अनुसार सब कुछ हासिल करने की कोशिश में विज्ञान की सीमा रही है.

मुझे लगता है कि वैज्ञानिक, जिन्होंने अब तक भौतिक वास्तविकता में चीजों को खोजा है, अगर सबसे मौलिक भौतिकता पर सिर्फ थोड़ा ध्यान दें, अगर वे केवल एक दूरबीन या सूक्ष्मदर्शी के माध्यम से देखने के बजाय, उतना ही समय भीतर की ओर मुड़ने में लगाते हैं, तो मुझे लगता है इसमें से कुछ अभूतपूर्व निकल सकता है.

भारतीय संस्कृति में एक आंतरिक शक्ति है जो आंतरिक खुशहाली के एक संपूर्ण विज्ञान और तकनीक से पैदा होती है. अभी पूरी दुनिया इसके लिए आतुर है. उनके पास बाहरी तकनीक है, जिससे उन्होंने बाहरी तौर पर अद्भुत चीजें की हैं, लेकिन वे अंदर संघर्ष कर रहे हैं.

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अगर हम इस देश में मौजूद ज्ञान के भंडार पर वापस जाएं, तो यह सबसे बड़ी संपत्ति हो सकती है - न सिर्फ इस देश की खुशहाली के लिए, बल्कि दुनिया की खुशहाली के लिए भी.

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