नेहरू-गांधी परिवार की पारंपरिक सीटों अमेठी और रायबरेली के लिए हर रोज कयासों का नया दौर शुरू होता है. प्रत्याशी घोषित करने की डेडलाइन के 2 दिन पहले (दोनों ही सीटों के लिए नामांकन दाखिल करने की समय सीमा 3 मई को समाप्त हो रही है) एक राष्ट्रीय अखबार ने अपने सूत्रों के हवालों से दावा किया है कि राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी दोनों चुनाव लड़ने के लिए अनिच्छुक बताए जा रहे हैं. अखबार ने साथ में यह भी लिखा है कि कांग्रेस पार्टी दोनों में से कम से कम एक को मैदान में उतरने के लिए मनाने की कोशिशें लगातार चल रही हैं. इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अमेठी सीट पर टिकट के बारे में एक इंटरव्यू में कहा कि जो होंगे, वहीं के होंगे. इसका मतलब यह निकाला गया कि कोई लोकल शख्स उम्मीदवार हो सकता है. मतलब सीधा लग रहा है कि राहुल और प्रियंका दोनों अमेठी या रायबरेली नहीं आने वाले हैं. पर यह सब कांग्रेस की रणनीति भी हो सकता है. सवाल यह उठता है कि जब माहौल अनुकूल लग रहा है, इसके बावजूद भी दोनों चुनावी जंग में क्यों नहीं उतरना चाहते हैं. आइये देखते हैं क्या कारण है कि गांधी परिवार अपनी इन दो पारिवारिक सीट से उम्मीदवार बनने से बच रहा है.
1-रायबरेली-अमेठी में लगातार 3 लोकसभा चुनावों से गिर रहा वोट प्रतिशत
रायबरेली में पिछले 3 लोकसभा चुनावों के आंकड़ें जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए डरावने हैं.2009 के बाद 2014 और 2019 में कांग्रेस का वोट लगातार कम हुआ है. ये हाल तब है जब रायबरेली से बीजेपी ने कभी भी सोनिया गांधी के कद का प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिलने वाले वोट का परसेंटेज करीब 72.2 प्रतिशत था. जो कि 2014 गिरकर 63.8 परसेंट हो गया. 2019 आते-आते सोनिया गांधी को मिलने वाले वोट का प्रतिशत गिर 55.8 प्रतिशत हो गया है. इसके ठीक उलट बीजेपी यहां लगातार बढ़ रही है. 2014 में बीजेपी को यहां करीब 21 .1 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था जो 2019 में 38.7 परसेंट तक पहुंच चुका है.
अमेठी में भी लगातार कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिर रहा है. 2009 में राहुल गांधी दूसरी बार अमेठी से चुनाव जीते तो उनका वोट शेयर 71.80 था . बीजेपी 2009 में केवल 5.80 परसेंट वोट ही पा सकी थी. 2014 तक आते -आते राहुल गांधी का वोट प्रतिशत में जबरदस्त गिरावट हुई . करीब 25 प्रतिशत की गिरावट होते हुए उनका परसेंटेज 46.70 पर पहुंच गया. जबकि ने बीजेपी 7 गुना छलांग लगाते हुए अपना वोट शेयर 34.40 तक पहुंचा दिया. जाहिर है कि 5 साल बाद कांग्रेस ने इस सीट को गंवा दिया. बीजेपी का वोट प्रतिशत 49.70 हो गया जबकि राहुल गांधी 45.90 पर आ गए.
2-दोनों ही सीटों पर जातिगत गणित गड़बड़ाया
अमेठी और रायबरेली दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ आने के बाद भी जातिगत गणित अब कांग्रेस के पक्ष में नहीं है. अमेठी में करीब 26 प्रतिशत वोटर्स दलित हैं. पिछले चुनाव में बसपा के समर्थन के बावजूद राहुल गांधी चुनाव हार गए थे. इस बार बीएसपी ने अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया है. नतीजतन कांग्रेस का वोट शेयर और कम हो सकता है. अनुमान लगाया जाता है कि करीब 18 प्रतिशत ब्राह्मण और 11 प्रतिशत राजपूत वोटर्स हैं. इनके अलावा 10 प्रतिशत लोध और कुर्मी भी हैं जो बीजेपी के कोर वोटर्स बन चुके हैं. समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के चलते करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट कांग्रेस को एकतरफा मिलने की संभावना है.
रायबरेली लोकसभा चुनाव क्षेत्र में भी जातियों का संतुलन कांग्रेस के फेवर में नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक यहां ब्राह्मण 11 प्रतिशत, ठाकुर 9 प्रतिशत के करीब हैं. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद उत्तर प्रदेश के ठाकुरों का वोट बीजेपी को ही जाता है. शर्त यह होती है कि सामने वाला कैंडिडेट भी ठाकुर न हो. समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मनोज पांडेय के बीजेपी के पाले में आने से ब्राह्मण वोट मिलने की संभावना अब नहीं है. सात प्रतिशत यादव और छह प्रतिशत मुस्लिम वोट में से जितना कांग्रेस अपनी ओर खींच ले. छह फीसदी लोध और चार फीसदी कुर्मी अब बीजेपी के कोर वोटर्स हैं. 23 फीसदी अन्य वोटों में कायस्थ-बनिया और कुछ अति पिछड़ी जातियां हैं जो बीजेपी के वोट देती हैं. 34 फीसद के करीब एससी वोट बीएसपी अपना हिस्सा लगाएगी.
3-विधायकों का बैलेंस भाजपा के पक्ष में
रायबरेली जिले में रायबरेली सदर, हरचन्दपुर, उचांहार, सलोन, सरेनी, बछरावां 6 विधानसभा सीटें हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली सदर, सलोन विधानसभा में भाजपा ने जीत दर्ज की थी. बछरावां, सरेनी, हरचंदपुर, ऊंचाहार में समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की. पर अब ऊंचाहार के विधायक बीजेपी के खेमे में हैं. 5 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस एक भी जीत नहीं सकी. सबसे बड़ी बात यह रही कि करीब 4 सीटों पर कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही. और एक सीट पर कांग्रेस चौथे स्थान पर पहुंच गई थी.
अमेठी में 2022 के विधानसभा चुनावों में दो विधानसभा सीटों पर भाजपा व दो पर सपा को जीत मिली थी. हालांकि कांग्रेस के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के दो विधायक अब बीजेपी के साथ हैं. अमेठी के गौरीगंज विधानसभा से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह अब तक तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग के बाद अब वो बीजेपी के साथ हैं. सरकार ने उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की है. यही किस्सा अमेठी की एक और सपा विधायक का है जो राज्यसभा चुनावों के दौरान अनुपस्थित रहकर अपना इरादा जता दिया था. 2017 के चुनावों में भी कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला. अमेठी जिले की चारों विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा ने एक पर सपा ने जीत दर्ज की थी.
4-बीजेपी ने रणनीति के तहत गांधी परिवार के नजदीकी लोगों को अपने साथ मिलाया
रायबरेली संसदीय सीट के जितने भी मजबूत लोग कांग्रेस के साथ होते थे अब वो बीजेपी के साथ हैं. इन्हीं लोगों के बल पर सोनिया गांधी का रायबरेली में भव्य स्वागत होता था. जाहिर है कि विधानसभा चुनावों, स्थानीय चुनावों में लगातार खराब होती स्थिति के चलते लोगों को अपना भविष्य बीजेपी में दिखता है. बाहुबली अखिलेश सिंह अब नहीं रहे पर उनकी बेटी अदिति सिंह अब बीजेपी से विधायक हैं. दिनेश प्रताप सिंह का परिवार रायबरेली के गांधी परिवार के खास लोगों में शामिल रहा है. अब यह परिवार भी बीजेपी के साथ है. दिनेश प्रताप सिंह पहले कांग्रेस में होते थे. पर 2018 में वो बीजेपी में शामिल हो गए. 2019 में उन्होंने बीजेपी के टिकट पर सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा. दिनेश प्रताप चुनाव तो नहीं जीत सके पर सोनिया गांधी के जीत के अंतर को काफी कम कर दिया. अब बीजेपी ने उन्हें इनाम देकर एमएलसी ही नहीं बनाया बल्कि प्रदेश सरकार में मंत्री भी बना दिया है.यह सब बीजेपी ने काफी सोच समझकर किया है. समाजवादी पार्टी से मनोज पांडेय को भी इसी रणनीति के तहत लाया गया.
5-आम लोगों से दूर हो चुका है गांधी परिवार
गांधी फैमिली पिछले पांच सालों में अमेठी और रायबरेली दोनों जगहों से दूर हो चुकी है. प्रियंका गांधी रायबरेली में अपनी मां सोनिया गांधी का कैंपेन संभालती रही हैं पर उन पर यह आरोप लगता रहा है कि चुनावों के बाद क्षेत्र की जनता का वो कभी ध्यान नहीं रखती हैं. यहां तक कि सोनिया के अधिकृत प्रतिनिधियों को भी प्रियंका से मिलने में बहुत दिक्कतें होती हैं. रायबरेली के ही एक कांग्रेस नेता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया था कि सोनिया गांधी के प्रतिनिधि ने बड़ी मुश्किल से प्रियंका गांधी से एक बार बात हो सकी थी. सुल्तानपुर के पत्रकार राजखन्ना कहते हैं कि शुरूआत में जब प्रियंका यहां आती थीं तो उन्हें देखने के लिए लोगों में उत्साह रहता था पर अब वह क्रेज भी खत्म हो गया है. यही हाल अमेठी का है. स्मृति इरानी के एमपी बनने के बाद राहुल गांधी विरले ही अमेठी में दिखाई देते हैं. हालांकि इन सबके बावजूद अमेठी में लोग राहुल गांधी को लेकर बहुत उत्साहित हैं.
6-बीजेपी का वंशवाद पर हमला
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि प्रियंका और राहुल के अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार बनने से पीछे हटने का असली कारण यह है कि पार्टी बीजेपी को वंशवाद के अनावश्यक हमले से बचना चाहती है. अगर प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ती हैं तो वह कांग्रेस से चुनावी राजनीति में प्रवेश करने वाली नेहरू-गांधी परिवार की आठवीं सदस्य होंगी. इसके साथ ही यदि राहुल और प्रियंका चुनाव जीत जाते हैं तो गांधी परिवार के तीन सदस्य पहली बार संसद में होंगे. क्योंकि सोनिया पहले ही राज्यसभा सदस्य बन चुकी हैं.
हालांकि कांग्रेस का एक धड़ा नेता जो गांधी भाई-बहन के चुनाव मैदान में उतरने के पक्ष में हैं, उसका तर्क है कि उनके चुनाव लड़ने या न लड़ने के बावजूद भाजपा की हमले की शैली नहीं बदलने वाली है.