महागठबंधन में आरजेडी नेतृत्व से रिश्ता भले अच्छा नहीं रहा हो, लेकिन कांग्रेस अपनी अहमियत समझाने लगी थी. कांग्रेस अब आरजेडी की पिछलग्गू नहीं है, ये भी बताने और जताने लगी थी. कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु की मानें, तो महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस भी पहले से तय थी, लेकिन घोषणाएं वे नहीं हुईं जो कांग्रेस के हिसाब से होनी चाहिए थी. बिल्कुल भी नहीं.
महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में घोषणाएं वही हुईं, जो लालू यादव चाहते थे, राहुल गांधी कतई नहीं. और बात सिर्फ तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने तक नहीं है, बात ये है कि कांग्रेस के हिस्से आया क्या? और आगे क्या आएगा?
फर्ज कीजिए, अगर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार चुनाव के लिए करीब छह महीने का वक्त नहीं दिया होता, तो भी, सीट बंटवारे में जो मिला है उससे कम मिलता क्या?
महागठबंधन में कांग्रेस की हैसियत क्या है?
महागठबंधन में कांग्रेस की हालत तो VIP यानी विकासशील इंसान पार्टी से भी गई गुजरी लगती है. 15 सीटों पर दावेदारी करने वाले मुकेश सहनी के मुकाबले राहुल गांधी की कांग्रेस ने तो ज्यादा ही गंवाया है. मुकेश सहनी को अपना एक उम्मीदवार वापस लेना पड़ा है, लेकिन को तो दो-दो उम्मीदवारों से नामांकन वापस कराना पड़ा है - और ध्यान देने वाली बात ये है कि आरजेडी ने अपना एक भी उम्मीदवार वापस नहीं लिया है, इसलिए 11 सीटों पर अब भी दोस्ताना मुकाबला हो रहा है.
तेजस्वी यादव का तो मुख्यमंत्री पद का चेहरा होना तय ही था, बस सार्वजनिक तौर पर ऐलान नहीं किया जा रहा था - लेकिन, मुकेश सहनी तो सरप्राइज के रूप में सामने आए हैं. डिमांड तो उनकी पहले से ही थी, लेकिन मान भी ली जाएगी, संशय इस बात पर तो बना हुआ था ही.
हैरानी की बात तो ये है कि कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के हाथ कुछ खास नहीं लगा, और वीआईपी जैसी पार्टी के नेता मुकेश सहनी बड़ी बाजी मार ले गए. ये जरूर है कि अशोक गहलोत ने आश्वस्त किया है कि और भी डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे. हो सकता है, उनमें कांग्रेस का भी हिस्सा हो. लेकिन, वो तो बाद की बात है. अगर कांग्रेस की सीटें कम पड़ीं, तो तेजस्वी यादव मना भी कर सकते हैं.
मुकेश सहनी को तो डिप्टी सीएम बनने के लिए बस अपना चुनाव भर जीतना है, बाकी हार भी गए तो जरूरी नहीं है कि फर्क पड़े. जोश की बात करें, तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मुकाबले मुकेश सहनी के समर्थकों का जोश ज्यादा हाई होगा.
क्या राहुल गांधी इसलिए चूक गए, क्योंकि वोटर अधिकार यात्रा के बाद वो बिहार से दूरी बना लिए? और मुकेश सहनी आखिर तक मैदान में डटे रहे?
राहुल गांधी ने बिहार का दौरा तभी शुरू कर दिया था जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव चल रहे थे. राहुल गांधी ने राबड़ी आवास पहुंचकर लालू परिवार से मुलाकात जरूर की, लेकिन तेजस्वी यादव के जातिगत गणना कराने के दावे की हवा निकालने की कोशिश की. राहुल गांधी ने बोल दिया कि जो बिहार सरकार की तरफ से कराया गया कास्ट सेंसस फर्जी था.
राहुल गांधी ने लालू यादव और तेजस्वी यादव की मर्जी के खिलाफ कन्हैया कुमार की 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा का सपोर्ट करने बेगूसराय तक पहुंचे थे, लेकिन यात्रा तो रोक ही दी गई, कन्हैया कुमार को भी सीन से करीब करीब हटा लिया गया.
आरजेडी और कांग्रेस के बीच झगड़े की असली वजह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहना सार्वजनिक तौर पर न मानना रहा, जो IRCTC केस में तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप तय हो जाने के बाद राहुल गांधी के लिए ज्यादा मुश्किल हो गया.
अब तो कांग्रेस पूरी तरह आरजेडी नेतृत्व की कृपा की पात्र बनकर रह गई है. कांग्रेस नेता भले 'नरेंदर सरेंडर' जैसे जोशीले बयान देते रहे हों, लेकिन अभी तो सच यही है कि राहुल गांधी ने लालू यादव के आगे सरेंडर कर दिया है.
कृष्णा अल्लावरु को बलि का बकरा क्यों बनाया गया?
लेटेस्ट महफिल भले ही अशोक गहलोत ने लूट ली हो, लेकिन कृष्णा अल्लावरु की बिहार में वैसी ही भूमिका मानी जा रही है, जैसी सैम पित्रोदा की राहुल गांधी के विदेशी आयोजनों में मानी जाती है. सैम पित्रोदा और कृष्णा अल्लावरु में फर्क इतना ही है कि वो बोल देते हैं, 'हुआ तो हुआ' - और कृष्णा अल्लावरु चुप हो गए हैं.
महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में तो एक छोर पर कृष्णा अल्लावरु चुपचाप बैठे तो देखे ही गए, एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें उनके सामने कांग्रेस नेता विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. नारेबाजी के बीच कांग्रेस नेता का आरोप है कि राहुल गांधी तो दलितों और पिछड़ों की बातें कर रहे थे, और सारे टिकट संघ के लोगों को दे दिया गया.
वीडियो में कांग्रेस नेता डंके की चोट पर कह रहा है, 'हम इसका विरोध करते है चाहे पार्टी से निकालो जो मर्जी वो करो' - और तभी नारा गूंजता है, 'टिकट चोर गद्दी छोड़'
ये, असल में, राहुल गांधी के 'वोट चोर गद्दी छोड़' नारे का ही जवाब है. कृष्णा अल्लावरु नाराज नेता की बात ध्यान से सुनते हैं. आभार और अभिवादन का भाव दिखाते हैं, मिलाने के लिए हाथ बढ़ाते हैं और उसका हाथ छूकर चुपचाप गाड़ी में बैठ जाते हैं.
कृष्णा अल्लावरु से यूथ कांग्रेस का प्रभार ले लिया गया है. अब मध्य प्रदेश से आने वाले मनीष शर्मा को यूथ कांग्रेस का प्रभारी बना दिया गया है. कांग्रेस के इस एक्ट को कृष्णा अल्लावरु पर एक्शन के तौर पर देखा जा रहा है.
जिस वोटर अधिकार यात्रा के लिए राहुल गांधी ने दो हफ्ते का वक्त दिया. पटना में नया बम फोड़ने का ऐलान किया, उस SIR के मुद्दे का अब कोई नाम लेने वाला भी नजर नहीं आ रहा है. कहां प्रियंका गांधी भी बिहार में रैलियां करने वाली थीं, और पटना से ही दिल्ली लौट आईं. जब यही सब करना था तो पटना में कांग्रेस की कार्यकारिणी बैठक कराने की क्या जरूरत थी?
बिहार चुनाव से पहले राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की तमाम कवायद मॉक ड्रिल बन कर रह गई है - और क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस के स्टैंड के हिसाब से देखें तो पूरा एपिसोड राहुल गांधी और उनकी कोर टीम के लिए बहुत बड़ा सबक है.